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Showing posts from May, 2021

isa masih - ईसा मसीह अनमोल विचार

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ईसा मसीह  आज से लगभग दो हजार वर्ष पूर्व 25 दिसंबर को बैथलेहम ( फिलिस्तीन ) में एक यहूदी परिवार में एक बालक का जन्म हुआ जो आगे चल कर लोगो के लिए भगवान बन गया उस बालक का नाम ईसा मसीहा ( जीजस क्राइस्ट ) था।  उनके पिता का नाम युसूफ और माता का नाम मरियम था।  ईसा मसीह अत्यंत निर्धन परिवार  से थे।  उनके पिता बढ़ई का काम करके अपने परिवार का भरण पोषण करते थे।  जिस समय ईसा मसीह जन्म लिया उस समय यहूदीयों के राजा हेरोदस का यहुदियों के प्रति दासो सा व्यवहार था।  गरीब जनता पर इतने अत्याचार किये जाते थे की कोई राजा के विरुध्द आवाज न उठा सके।  इन परिस्तिथियों से ईसा मसीह भली भाती परचित थे।  उन्होंने अपना बढ़ई का पैतृक काम छोड़ दिया और मानव जाती के लिए आगे आए।  उन्होंने लोगो को सान्ति तथा सबको आपसी भाई चारे के साथ मिलकर रहने का  सन्देश दिया।  लोग भी ईसा मसीह की अहिंसा की बातों पर गौर करते धीरे - धीरे उनकी प्रसिद्धि पुरे राज्य में होने लगा।  लोग उनके भाषणों से प्रभावित होकर उन्हें यहूदियों का राजा कह कर पुकारने लगें किन्तु राज्य के कुछ धनिक शा...

anmol vaani mahattv - संतो की वाणियो का महत्त्व

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संतो की वाणियो का महत्त्व   भारत में समय - समय पर अनेको महापुरुषों , ऋषि - मुनियो  और संतो का अवतरण हुआ है।  हमारी भारतीय संस्कृति में संतो की अनमोल वाणियों का अपना अलग ही महत्त्व है।  उनकी वाणियां हमें जीवन जीने की कला सिखाती हैं , हमे जीवन की सच्चाइयों से रूबरू कराती हैं।  महँ संतो के क्रिया - कलाप और कथन में सफलता का अनोखा और चमत्कारी भाव छिपा होता है। उनके कथन और क्रिया - कलाप ,देश  काल , सभ्यता , संस्कृति , धर्म और मर्यादा आदि सभी को अपने प्रभाव से अभिभूत करने की अभिभूत करने क्षमता रखते हैं।  संतो के अनमोल वचनो  सफलता का अथाह समंदर ठाठें मारता रहता हैं।  उनको वचनो में क्रांति की ऐसी तीव्रतम ज्वाला प्रज्वलित रहती है , जो पल - भर में युगांतकारी परिवर्तन का भी आहवाहन कर बैठती है।  इन वचनो के अर्थपूर्ण भीषण ज्वालामुखी से निकले लावे को संसार का कोई भी बाँध नहीं सकता।  ऐसा ही कुछ अजीबो - गरीब है इन संतो की दिव्य वाणियों का प्रताप।  महानता का अर्थ ही तुच्छता से ऊपर उठना है।  ऐसा तभी होता है, जब जाती , वर्ण धर्म यहाँ तक ...

pavan tany sankt haran mangal murti rup - दोहा - पवन तनय संकट हरन ; मंगल मूरती रूप राम लखन सीता सहित। हृदय बसहु सुर भूप

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दोहा - पवन तनय संकट हरन ; मंगल मूरती रूप।  राम लखन सीता सहित।  हृदय बसहु सुर भूप।। हे पवनपुत्र ! आप सभी संकटो का हरण करने वाले हैं , आप मंगल मूरत वाले हैं।  मेरी प्रार्थना है की आप श्रीराम , श्री जानकी एवं लक्ष्मणजी सहित सदा मेरे हृदय में निवास करें।    तुलसीदासजी कह रहे हैं - हे पवन तनय आप तो हर संकट को हर लेने वाले हो अप्रतिम शरीरिक क्षमता , मानसिक दक्षता व् सर्वविध चारित्रिक उचाईयों के उत्तुंग शिखर  हो आप के सद्रश मित्र , सेवक , सखा ,कृपालू वह भक्त परायण मिलना असंभव है।  आप की मंगल की ही  मूरत हो , आप से अमंगल की संभावना नहीं है।  हर समय मंगलमय हो।   मंगलम भगवान् विष्णु , मंगलम गरुड़ध्वजा ,   मंगलाय पुंडरीकाक्ष , मंगलाय तनो हरि।  भगवान विष्णु मंगल हैं उनका वाहन भी मंगल है पुण्डरीकाक्ष भी मंगल  है।  सब मंगल ही है।  इसी तरह पवन तनय  आप भी मंगल ही हैं।  आप का रूप मंगलमय है।  आप से अमंगल संभव नहीं है।  अतः अब आप अपने ह्रदय में बसे राम , लखन सीता सहित हमारे ह्रदय में निवास करें।  राम लख...

tulsidas sada hari chera - तुलसीदास सदा हरि चेरा कीजै नाथ हृदय महं डेरा

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तुलसीदास सदा हरि चेरा।  कीजै नाथ हृदय महं डेरा।। हे मेरे नाथ हनुमानजी! तुलसीदास  सदा ही श्रीराम के  दास हैं , इसलिए आप उनके हृदय में सदा निवास कीजिए।  हनुमान चालीसा तुलसीदासजी द्वारा रचित अपने गुरु की वंदना है , स्तुति है।  तुलसीदासजी भक्त है , परमात्म भाव से लीन रहना उनका स्वभाव है।  और जो परमात्म भाव में लीन रहता है उसके मुख जो निकलता है उसे आप कविता कहो या श्लोक कहो।  कविता कहना लक्ष्य या उदेश्य नहीं।  वह तो अंतः प्रेरित स्वतः प्रस्फुटिक परमात्मा स्तुति  है जिसकी ऊर्जा से वह ओत - प्रोत है।  यह ऊर्जा उनका उद्धार कर सकती है और उनके माध्यम से उनके शिष्यों का।  हनुमान  चालीसा का हर एक चौपाई ऊर्जा का श्रोत है पर केवल उनके लिए जो गुरु के माध्यम से इसे पाने में सक्षम है।  जैसे विघुत का नियम है की ग्राहक अपनी आवश्यकता अनुसार आवश्यक ट्रांसफार्मर से ही विघुत प्राप्त कर सकता है।  एक छोटा सा बल्ब यदि एक लाख वाट ऊर्जा से जोड़ दिया जाए तो वह बल्ब तो नष्ट होगा ही , उसके साथ - साथ विघुत उपकरण भी नष्ट हो जाएगा।  जिससे घर में आग...

jo yah padai hanuman chalisa - जो यह पढ़ै हनुमान चालीसा होय सिद्धि साखी गौरीसा - hanuman chalisa padne se kya hota hai

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  जो यह पढ़ै हनुमान चालीसा।  होय सिद्धि साखी गौरीसा।। गौरी के पति शंकर भगवान् ने यह हनुमान चालीसा लिखवाया इसलिए वह साक्षी हैं की जो इसे पढ़ेगा उसे निशचय ही सिद्धि प्राप्त होगी।  जो इस हनुमान चालीसा को जिस तरह मैंने बताया समझकर बूझकर पाठ करता है, होही सिद्धि साखी गौरीसा , वह साधक सिद्ध हो जाता है।  यह गौरीसा कह रहे हैं गौरीसा यानि गौरी के ईस।  यह स्थान ( सद्गुरु आश्रम डुमरी पड़ाव गंगा तट उत्तर प्रदेश ) गौरी का क्षेत्र है।  गौरी का ईस यहीं है।  वही कह रहा है , वह सिद्ध हो जाएगा। ;हमारे जीवन का सारा दुःख अपना है।  हम हर चीज को अपने में बांधना चाहते हैं।  यहीं से दुःख  शुरू होता है।  सारा दुःख सीमाओं का ही दुःख है।   में पूरा नहीं हूं, अधूरा हूं।  मुझे पूरा होने के लिए न मालूम कितनी - कितनी चीजों की जरुरत है।  जैसे - जैसे चीजे मिलती जाती है, मैं पन का विस्तार होता जाता है  अधूरा पन कायम ही  रहता है।  सब कुछ मिल जाने पर भी मैं अधूरा ही रह जाता है।  जब तक मई किसी भी काम म...

jo sat bar path kar koi - जो सत बार पाठ कर कोई छूटहि बंदी महा सुख होइ

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  जो सत बार पाठ कर कोई।  छूटहि बंदी महा सुख होइ।। जो व्यक्ति शुद्ध हृदय दसे प्रतिदिन इस  हनुमान चालीसा का सौ बार  पाठ करेगा वह सब सांसारिक बन्धनों  से मुक्त हो  जाएगा और उसे परमानन्द की प्राप्ति होगी।   यदि आप को बहुत बड़ा कष्ट है , दुःख है , बन्धन है तो गुरु की आज्ञा लेकर शुक्ल पक्ष के मंगलवार को सुबह गंगा में स्नान कर  हनुमान जी को अखण्ड दीप जला दे घी का या तील के तेल का।  सुबह  शत बार इसका पाठ करले उसमे चार घंटा लगाता है।  तो आप किसी भी तरह के बन्धन से मुक्त हो जाते हैं।  संकट से मुक्त हो जाते हैं।  यदि हनुमानजी का मंदिर हो गंगा तट हो पीपल का वृक्ष हो तुलसी का पेड़ हो और गाय हो तो समझ लें वहां मंगल ही मंगल है।  यह सब इस जगह का जिन्दा ब्रह्म कहा गया है।  रामानंद जी ने इन्हे पृथ्वी के जीवित ब्रह्मा स्वरूप कहा है।  एक छोटी से विधि और बता रहें हैं।  यदि आप का मनोकामना पूर्ण न हो रही हो या कोई मुश्किल आन पड़ी हो तो किसी भी शुक्ल पक्ष का शुभ दिन देख कर मंगलवार से इक्कीस दिन तक एक छोटा सा अनुष्ठान करे इक्...

jai jai jai hanuman gosai - जय जय जय हनुमान गोसाईं कृपा करहु गुरुदेव की नाईं

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जय जय जय हनुमान गोसाईं।  कृपा करहु गुरुदेव  की नाईं।।  हे वीर हनुमानजी ! आपकी सदा जय हो , जय हो , जय हो  आप मुझ पर श्री गुरूजी के समान कृपा करें।     हनुमान चालीसा  रचयिता तुलसीदासजी  के गुरु हैं नरहरिदासजी, वे हनुमानजी के अवतार कहे जाते हैं।  तुलसीदासजी यहां हनुमानजी से प्रार्थना  कर रहे हैं की - हे हनुमानजी ! आप मुझपर कृपा करें पर असुरों का संहार करने वाले  संहारकर्ता हनुमान देवता  रूप में कृपा न करें।  आपका बायां हाथ असुरों संहार करता  है तो दायां हाथ संतो को  तारता है।  बाएं भुजा असुर दाल मारे, दाहिने भुजा संतजन तारे। , असुरों की तरह संहार करना यह भी तो  कृपा ही है। पर वह ऐसी कृपा से घबरा रहे हैं कहीं उन  पर भी ऐसी ही कृपा न कर दें हनुमानजी। अतः प्रार्थना कर रहे हैं की आप मेरे परम स्नेही , करुणा  सागर गुरुदेव के समान ही मुझ पर कृपा करें।  कृपा करहु गुरुदेव की नाई।  कह रहे हैं हमारे गुरुदेव नरहरिजी की हम पर बहुत कृपा है।  जब हम अबोध थे तभी बाल्यावस्था में ही माता -...

sankat kate mete sab pira - संकट कटै मिटै सब पीरा जो सुमिरै हनुमत बलबीरा

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संकट कटै मिटै सब पीरा।  जो सुमिरै हनुमत बलबीरा।।  हे बलवीर ! जो व्यक्ति मात्र आपका स्मरण करता है , उसके सब संकट कट जाते  हैं और पीड़ाएं मिट जाती है।     तुलसीदासजी कह रहे हैं की जो हनुमानजी का सुमिरण करता है अर्थात अपने गुरु का वह उनके द्वारा प्रदत्त मंत्र का सुमिरण  करता है उसके सब संकट कट जाते हैं सब पीरा मिट जाती है।  मन का राम में रमण करना ही सुमिरण है।  सुमिरण करते - करते मन सहज हो जाता है।  मन का सहज होना ही दुष्कर है।  सारे रोग दुःख कष्ट की जड़ यही है।  जैसे किसी बिगड़ैल घोडा को खूब दौड़ा दो।  वह थक कर सहज हो जाएगा।  मन उस बिगड़ैल घोड़े से भी ख़राब है।  यह लगातार सुमिरन से ही थक कर सहज हो जाता है।  इसके सहज होते ही शून्यता आ जाती है।  शून्य अर्थात न दिन न रात न पाप न पुण्य।  अब मन निर्विकार हो गया।  विकार हटाने का एक मात्र उपाय है सुमिरण।  जो गुरु बिधि बताता है उससे  लगातार सुमिरण करते रहना ही साधना है।  जैसे ही मन सहज होता है निर्विकार होता है।  एकाएक आप प्रकाश से भर जाते ...

aur devta chint n dharai - और देवता चिन्त न धरई हनुमत सेइ सर्ब सुख कराई

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 और देवता चिन्त न धरई।  हनुमत सेइ सर्ब सुख कराई।। हे हनुमानजी ! जो भक्त सच्चे मन से  सेवा  करते हैं उन्हें सब प्रकार के सुख प्राप्त होते हैं।  उन्हें अन्य किसी देवता की पूजा करने की आवश्यकता नहीं रहती।  यह सृष्टि एक उल्टा वृक्ष है। निःक्षर पुरुष , सत पुरुष जड़ है। अक्षर पुरुष ( परब्रह्म ) जमीन से ऊपर का तना है।  डार है जोति निरंजन।  तीनो देवता ब्रह्मा , विष्णु , एवं महेश शाखा हैं।  छोटी - छोटी टहनियां देवी देवता हैं।  पत्ते संसारी जिव है।    अक्षर पुरुष एक पेड़ है निरंजन वाकी डार।  त्रिदेवा शाखा हैं पात रूप संसार है। ।   अतः एक परम पिता की साधना करने पर सभी देवी देवता अपने पास सिद्ध हो जाते हैं।   एक साधे सब सधै सब सधै एक जाय।  माली सींचै मूल को , फूलै फलै अघाय।। सभी पत्ते यानी देवी देवता का साधना करने पर वह एक परम पुरुष छूट  जाता है।  आप उससे चूक जाते है।  लाख चौरासी के चक्कर में पड़ जाते हैं।  जैसे माली वृक्ष की जड़ पानी देता है।  वह वृक्ष स्वतः फल  फूल से भर जाता है।  ...

ant kaal raghubarpur jaai - अन्तकाल रघुबरपुर जाई जहां जन्म हरी भक्त कहाई

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 अन्तकाल रघुबरपुर जाई।  जहां जन्म हरी भक्त कहाई।। आपके भजन के प्रभाव से प्राणी अन्त समय श्री रघुनाथजी के धाम जाते हैं।  यदि मृत्युलोक में जन्म लेंगे तो भक्ति करेंगे और श्री हरी भक्त कहलायेंगे।   जिसने गुरु अनुकम्पा द्वारा भजन से राम को प्राप्त कर लिया उसकी जीते जी जन्मो - जन्म के सारे दुखो का नाश होगा और वह अंत काल रघुबर के पुर उस परमात्मा का पुर यानी , बैकुण्ठ , में जायेगा।  यह आशवासन दे रहे हैं तुलसीदसजी वह भी लिखित।  बुध्दपुरुष जो बुध्दत्व को प्राप्त हो जाता है रामत्व को प्राप्त हो जाते हैं , उन्हें अपने लोक ले जाने स्वयं परमात्मा आते हैं।  बुध्दपुरुष सद्गुरु स्वामी आत्मा दास जी के भी जाने का समय जब आया तो वह साहेब वह परमात्मा वह परम पुरुष सवयं उन्हें लेने आया।  ज्येष्ठ शुक्ल सप्तमी मंगलवार वि. स. २०३५ दी. १३ जून १९७८ प्रातः सात बजे वह बोले कुछ पूछना है तो पूछ लो में चलूंगा हजारो आंखोंवाला आया है ले जाने।  डॉक्टरों ने बोला की उनको खून की कमी है।  में खून देने को तैयार था ब्लड ग्रुप की जाँच हुई उनका ब्लड ग्रुप बी पॉजिटिव था।...

tumhre bhajan raam ko pave - तुम्हरे भजन राम को पावै जनम - जनम के दुख बिसरावै

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तुम्हरे भजन राम को पावै।   जनम - जनम के दुख बिसरावै।।  आपका भजन करने वाले  भक्त को श्रीरामजी के दर्शन होते हैं  और उनके जन्म - जन्मान्तर के दुःख दूर हो जाते हैं।  तुलसीदासजी यहां  राम को पाने की बात कर  रहे हैं।  राम शब्द अत्यंत महत्वपूर्ण है।  ढाई अक्षर का यह शब्द परम रहस्यपूर्ण गुह्म मंत्र है।  र + अ + म के संयोग से राम शब्द बना है।  र- अग्नि का बीज मंत्र है।  र , का उच्चारण करते ही मूलाधार चक्र पर जोर पड़ता है।  मूलाधार चक्र के चारो तरफ विजातीय गैस ,अवयव जन्मो - जन्म से पड़े रहते है।  उसे यह अग्नि जला देती है।  जिससे अंदर का दबाव कम हो जाता है कुण्डलिनी का जागरण एवं उधर्वगमन स्वतः होने लगता है।  अ - सूर्य का बीज मंत्र है।  सूर्य अर्थात ज्ञान। अ अक्षर का उच्चारण  होते  ही वह परम ऊर्जा मणि पुर चक्र पर आ जाती है।  अ  अक्षर वर्णमाला का उदगम स्रोत है।  साधक अंदर से परम प्रकाश से प्रकाशित हो जाता है।  उसके अंदर स्वतः वेद का उच्चारण होने लगता है।  यहां अग्नि है। यह...

raam rasayan tumhre paasa - राम रसायन तुम्हारे पास सदा रहो रघुपति के दासा

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राम रसायन तुम्हारे पासा।  सदा रहो रघुपति के दासा।। आप सदैव श्रीरघुनाथजी की शरण में रहते हैं इसलिए आपके पास वृद्धावस्था और अन्य असाध्य रोगों के नाश के लिए राम - नाम रूपी रसायन (औषधि ) है।   तुलसीदासजी आगे भेद खोल रहे हैं की यह राम रसायन जब तुम्हारे पास आ जाएगा तब बिना मांगे अष्ट सिद्धि - नवनिधि दौड़ते हुई आ जाएंगी , तुम कहोगे न, न हमको जरूरत नहीं है।  वे कहेंगी हम तुमको देंगे ही देंगे क्योकि यह राम रसायन तुम्हारे पास है।  राम रसायन यह महामंत्र है इस पृथ्वी के लिए इसलिए इस पृथ्वी पर हनुमानजी के बाद हम ही लोग राम रसायन यज्ञ कर रहे हैं।  बहुत लोग चौंक रहे है की  राम रसायन यज्ञ हम लोग पहली बार सुन रहे हैं। वह जो यज्ञ है उसमें केवल ब्राह्मण ही मंत्रवेत्ता होता है  और सब लोग  दर्शक या दान देने वाले होते हैं।  राम रसायन यज्ञ में सभी लोग चाहे किसी भी जाती के हों , वर्ण के हो , संप्रदाय के हो , पंथ के हों सब इसके मंत्र का आवाहन करते हैं।  सुबह शाम यज्ञ में भाग लेते हैं।  यह इस पृथ्वी पर सबके लिए सामान रूप से भाग लेने का अवसर  प्...

asht siddhi nav nidhi ke daata - अष्ट सिद्धि नव निधि के दाता अस बर दीन जानकी माता

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अष्ट सिद्धि नव निधि के दाता।  अस बर दीन जानकी माता।।  हे केसरीनन्दन ! माता जानकी ने आपको ऐसा वरदान दिया  हुआ है जिसके कारण आप किसी भी भक्त को आठों सिद्धियां और नौ निधियां प्रदान कर  सकते हैं।  आठ सिद्धियां : १. अणिमा : इससे साधक अदृश्य रहता है और कठिन - कठिन से पदार्थ में प्रवेश कर  जाता है।  २. महिमा  :  इसमें योगी अपने को बहुत बड़ा बना लेता है।   ३. गरिमा   :  इससे साधक अपने को चाहे जितना भारी बना लेता है।   ४. लघिमा  :  इसमें साधक अपने को जितना चाहे हल्का बना लेता है।  ५. प्राप्ति    :  इससे मनवांछिंत प्रदार्थ का प्राप्ति हो जाती है  ६. प्रकाम्य :  इच्छा करने पर वह पृथ्वी में समा सकता है।   ७. ईशत्व : इससे सब पर शासन करने की सामर्थ्य प्राप्त  हो जाती है।  ८. वशित्व : इससे  दुसरो को वश में किया जा सकता है।  नौ निधियां :  पदम महापदम , शंख , मकर , कच्छप , मुकुन्द , कुन्द , निल , बर्च्च - ये नौ निधियां कही गई है।    ...

sadhu sant ke tum rakhware - साधु संत के तुम रखवारे असुर निकन्दन रामदुलारे

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  साधु संत के तुम रखवारे।  असुर निकन्दन रामदुलारे।। हे श्रीरामचन्द्र के दुलारे हनुमानजी ! आप साधु - सन्तों तथा सज्जनों अथार्त धर्म की रक्षा करते हैं तथा दुष्टों का सर्वनाश करते हैं।    तुलसीदासजी  कहते हैं की चारों युग में  एक ही इनको सेवा मिली है , साधु  संतो की रखवाली करना।  असुरो का संहार करना , संतजन को तारना यही हनुमानजी का परम  कर्तव्य है।   बाएं भुजा असुर दल मारे , दाहिने भुजा संतजन तारे।  वे दोनों हाथों से अपने इस कर्म में प्रवित्त हैं।  साधु  संतों को बिना तनख्वाह के अंगरक्षक मिल गए हैं।  नेता अभिनेता  पैसे देकर बॉडीगॉर्ड रखते हैं पर साधु संतो को बिना पैसा के ये बॉडीगार्ड मिल गए हैं।  संसारी बॉडीगार्ड तो हो सकता है चूक जाए या रक्षक से भक्षक बन जाए।  बहुत हुआ है।  बॉडीगार्ड ने ही अमेरिका के राष्ट्रपति को मारा।  भारत की प्रधानमंत्री को मारा।  लेकिन यह बॉडीगार्ड चूक नहीं सकता है।  यह ऐसा कमांडो है मारने वाले को ही मार देगा।  असुरों को समाप्त कर देगा और अपने भक्तों को ...

charon jag partap tumhara - चारों जुग परताप तुम्हारा है प्रसिद्धि जगत उजियारा

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चारों जुग परताप तुम्हारा।  है प्रसिद्धि जगत उजियारा।। आपका यश चरों युगों ( सतयुग , त्रेतायुग ,द्वापरयुग तथा कलियुग ) में विद्यमान  है।  सम्पूर्ण संसार में आपकी कीर्ति प्रकाशमान है। हनुमानजी अमर हैं उनका प्रताप चारों युग में   रहता है।  आठ अमर विभूतियों अश्वत्थमा , बलि , व्यास , विभीषण , परशुराम , कृपाचार्य , मार्कण्डेय मुनि  हनुमानजी भी है।  तुलसीदासजी ऐसा राम के विषय में रामायण में नहीं कह रहे है क्यों की राम का प्रताप केवल त्रेतायुग में हैं।  कृष्ण का प्रताप द्वापर युग में है।  विष्णु का प्रताप सतयुग में है।  हनुमानजी का प्रताप चरों युग में समान हैं।  सद्गुरु का प्रताप चरों युग में सामान रहता है क्योकि जब वेद नहीं था तब भी गुरु था।  पुराण नहीं था उस समय भी गुरु था।  गुरु  परमात्मा का नाम  स्मरण कराया।  गुरु ने ही  वेद - पुराण लिखा।  वही निति नियामक है।  उसका प्रताप चारों युग में  रहता है।  तुम वस्त्र की तरह केवल शरीर बदलते हो।  आत्मा के तल पर परमात्म भाव में तुलसीदासजी यह...

aur manorath jo koi lavai - और मनोरथ जो कोई लावै सोई अमित जीवन फल पावै

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और मनोरथ जो कोई लावै।   सोई अमित जीवन फल पावै।। आपकी कृपा का पात्र जीव कोई भी अभिलाषा करे , उसे तुरंत फल मलता है।  जिव जिस फल की प्राप्ति की कल्पनाक भी  नहीं कर सकता , उसे मिल जाता है।   तुलसीदासजी गुरु स्वरूप में हनुमानजी का स्तुति करते हुए गुरु व गुरु भक्त माहिमा का वर्णन कर रहे हैं।  गुरु भक्त के रूप में हनुमानजी ने अपने गुरु श्रीराम जी के सकल काज संवारे  है।  संजीवनी  बूटी लाकर लखन को जिलाये।  समुद्र लांघ कर  राम जी सन्देश सीता माता तक पहुंचाया।  लंका में आग लगा  कर सदविप्रों की शक्ति से अशुरों को पराजित कराया।  महाभारत युद्ध में विजय श्री प्राप्त करने में महत्व पूर्ण भूमिका निभाई।  वह ही गुरु भक्त हनुमान गुरु के रूप में सुग्रीव को विभीषण को वह अपने पुत्र मकर ध्वज  को राम रसायन के माध्यम से राजा बनाते है।  वह सबके मनोरथ पूर्ण कर असम्भव कार्य भी संभव कर देते है।  इतने वह सक्षम हैं।  वह तुम्हारे भी जन्मो - जन्म सवार देंगे।  अमित जीवन अर्थार्त कई जीवन है एक जीवन नहीं है।  करोडो...

sab par raam tapsvi raaja - सब पर राम तपस्वी राजा तिनके काज सकल तुम साजा

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सब पर राम तपस्वी राजा।  तिनके काज सकल तुम साजा।।  राजा श्री रामचन्द्रजी सर्वश्रेष्ठ तपस्वी हैं , उनके सब कार्यो को आपने ही पूर्ण किया है।  ध्यान करना तपस्या करना यह सम्राटो का कार्य है।  वह परमात्मा सम्राटो का सम्राट है।  जो तपस्वी बन जाएगा  उस परमपिता से एक हो जायेगा।  वह भी सम्राटो का सम्राट बन जाएगा।   राजा बन जाएगा तुलसीदासजी उसे हीं यहां तपस्वी राजा कह रहें। जिसने राम को धारण कर लिया जो राम मय हो गया यह तपस्वी  राजा राम ही हो जाएगा।  राजा बहोत है इस सृष्टि में।  अभी भारत स्वतंत्र हुआ तब साढे पांच सो क्षत्री  राजा थे।  लेकिन यहां  है तपस्वी राजा।  राम एक धारा है, लहर है , उसमें जैसे ही मिल जाते हो तुम भी तपस्वी राजा बन जाते हो। तपस्वी तो राजा होते ही हैं।  तपस्वी को महाराज कहते  हो न।  जैसे ही तुम तपस्या में चले जाते हो तो तुम राम स्वरूप हो जाते हो और  जब तुम राम स्वरूप हो गए तब तुम्हे क्या करना है तुम्हारा सारा काम अब हनुमानजी स्वयं करने लगते हैं।  सेवा में खुद जुट जातें है...

sankat te hanuman chhudavai - संकट तें हनुमान छुड़ावै मन कर्म बचन ध्यान जो लावै

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संकट तें हनुमान छुड़ावै।  मन कर्म बचन ध्यान जो लावै।। जो मन - कर्म - वचन से अपना ध्यान आप में लगाते हैं, उनको सब दुखों से आप मुक्त कर देते हैं।    हनुमानजी किसी भी संकट से आप को मुक्त कर देते हैं एक हीं सत्य है मन व्चन और कर्म से आप को एक होना चाहिए।  हम लोग मन में सोचते कुछ हैं कहते कुछ है करते कुछ हैं। तीनो अलग - अलग।  हम अपने में द्वंद्व में हैं।  अपने हम झगड़े में हैं। अपने हम बेहोसी में हैं।  अपने हम सराब के नसे में हैं। सराब का नाशा क्षमा हो सकता है।  लेकिन अंहकार का नशा क्षमा नहीं है। यह सब अलग अलग कर देता है।  हम सोचते कुछ, कहते कुछ, करते कुछ हैं।  इसलिए हम लोगो को यह समझना चाहिए की क्या कह रहे हैं क्या सोच रहें ? अपने सोचने को पहले नियंत्रण करो।  सोचे सोच न होवई , जो सोचे लख बार।  गुरु नानक देव कहते हैं - सोचते रहो सोचते रहो उससे कुछ  होगा नहीं जैसे ही तुम अपने सोचने को नियंत्रण कर लोगे सोचने की धारा बदल जाएगी।  सोचने की धारा जब बदल जाएगी तब तुम्हारा मन बदल जाएगा मन बदल जायेग...

naase rog hare seb pira - नासै रोग हरै सब पीरा जपत निरंतर हनुमत बीरा

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  नासै रोग हरै सब पीरा।  जपत निरंतर हनुमत बीरा।। हे हनुमानजी ! आपके नाम का निरन्तर जप करने से सब रोग नष्ट हो जाते हैं और सभी कष्ट भी दूर हो जाते हैं।  तुलसीदासजी अपना अनुभव बताकर आपको भी प्रेरित करने का प्रयास कर रहे हैं की आप सब भी मेरी तरह अपने गुरु की भक्ति में लग जाएंगे तो आपके भी सारे पाप - ताप , रोग कष्ट नष्ट हो जाएंगे , उनका वे  हरण कर लेंगे।  रोग का कारण  नकारात्मकता  का भाव है जब यह भाव सकारात्मक हो जाता है ,परिवर्तित हो जाता है भक्त में बदल जाता है तब सभी रोग स्वतः नष्ट हो जाते हैं और सब पीड़ा स्वतः समाप्त हो जाती है।  यह तुलसीदासजी का स्वयं का अनुभव है वह अपने गुरु रूप हनुमानजी द्वारा प्रदन्त मंत्र के जाप में नरंतर लगे रहते हैं जिससे उनके सारे रोग कष्टों का हनुमानजी हरण कर लेते हैं। सृष्टि में बहुत प्रकार के रोग हैं।  शारीरिक रोग तो अस्पताल में ठीक हो जाएंगे लेकिन मानसिक रोगो का क्या होगा ? सूक्ष्म शरीर क्या होगा ? मानस शरीर का क्या होगा ? यह रोग बड़े भयंकर हैं।  सबसे पहले रोग तुम्हारे मन में आती है उसके आठ -दस वर्ष बाद वह ...

bhut pichas nikat nahin aavai - भुत पिचास निकट नहीं आवै महाबीर जब नाम सुनावै

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  भुत पिचास निकट नहीं आवै।  महाबीर जब नाम सुनावै।। हे अंजनीपुत्र  ! जो आपके महावीर नाम का जप करता है , भुत - पिचास जैसी दुष्ट आत्माएं  उससे दूर ही रहती हैं। यहां  तुलसीदासजी भुत - प्रेत से नहीं डर रहे हैं।  बल्कि साधना के मार्ग में  और भी जो भुत  हैं उनकी ओर इंगित कर रहे हैं।  ये है काम क्रोध , मद , मोह ,लोभ ,अहंकार।  ये सब वृत्तियाँ बहुत है।  जब हनुमानजी का नाम सुना देंगे तब काम , क्रोध , मद , मोह ,लोभ ,अहंकार ये साड़ी वृत्तियाँ भागने लगेगी और साधक उस परमानन्द की समाधी में निरन्तर बैठा रहे गा जो तुम्हारे तथाकथित चिंतन है तुम्हारे अंदर जो दैत्य की भावना बानी हुई है उची नीची की भावना बनी हुई है हनुमानजी की कृपा से ये नहीं रहेगी।  तुम्हारे अखण्ड समाधि में घंटो बैठने में सफलता मिलेगी।  यह हनुमानजी की  कृपा हो जायेगी।  काम , क्रोध , लोभ ,मोह , अहंकार की वृत्तियाँ ही भुत  है।  लेकिन तुम लोग कहीं अकेले में जाते हो तो जपने लगते हो भुत पिचास निकट नहीं आवै।  कहां साधु को भी भुत पकड़ता है। ...

aapan tej samharo aapai - आपन तेज सम्हारो आपै तीनों लोक हांक ते कापै

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आपन तेज सम्हारो आपै।  तीनों लोक हांक ते कापै।। आपके वेग को केवल आप ही सहन कर सकते हैं।  आपकी सिंह गर्जना से तीनों लोक कांप उठते हैं।    यहाँ तुलसीदासजी कह रहे हैं की हनुमानजी ने अपने तेज को स्वयं संभाल लिया है और इतना संभाल लिया हैं की अब उनकी हांक से उनकी हुंकार से शत्रु की तो सामर्थ्य ही क्या  है तीनो लोक तक कापने लगते हैं।  हम  लोग अपने तेज को नहीं संभाल पाते हैं।  तेज का एक मतलब ब्रह्मचर्य तो है ही।  तेज का एक मतलब समर्थवान भी है।  जब हम सामर्थशाली होते हैं हममें बहुत सी शक्तियां या रिद्धि -सिद्धियां  आती हैं तो अपने सामर्थ का प्रदर्शन कर हम उनका दुरूपयोग करने लगते हैं उससे बहोत से लोगों को बिगाड़ने लगते हैं।  अष्ट सिद्धि नव निधि यह बहुत बड़ी चीज़ नहीं है।  यह साधना के प्रार्थमिक अवस्था है।  चूँकि यह मूलाधारचक्र पर है।  मूलाधारचक्र पर गणेश बैठे हैं और गणेश की पत्नी रिद्धि और शिद्धि बैठी हैं।   प्रथम तल यही है।  बहुत सारे साधक जन्मो जन्म इसी में लगे रह जाते हैं और तुम लोग समझते हो वह बहुत...

sab sukh nahai tumhari sarna - सब सुख लहै तुम्हारी सरना तुम रच्छक काहू को डर ना

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सब सुख लहै तुम्हारी सरना।  तुम रच्छक काहू को डर ना।।    आपकी शरण में आने वाले व्यक्ति को सभी सुख प्राप्त हो जाते हैं और किसी प्रकार का भय नहीं रहता।  भक्ति और श्रद्धा जब आ जाएगी तो सब सुख तो स्वतः आ ही जाऐंगें।  मैं सदैव कहता हूं - सकारात्मक सोचो,सकारात्मक करो , सकारात्मक हो जाओ।  जब सकारात्मक हो गए तब दूसरे की चिंता छोड़ों , कौन - क्या कह रहा है , नाते - रिश्तेदार - पडोसी? तुम अपने तक सिमित हो जाओ।  तुम्हारा फलाफल तुमको मिलने लगेगा।  तुम अपने को नकारात्मक कर लेते हो तो दुःख - दर्द मिलने लगता है , यह तत्काल मिलने लगता है।  जब भक्ति आ गयी , श्रद्धा आ गयी तब क्या आप सुख से वंचित रह सकते हो ? जब आप किसी से घृणा करते हो , गाली देते हो या किसी के प्रति बुरा सोचते हो तो उसका बुरा हो या न हो पर आपमें बुरे हारमोन का स्त्राव होने लग जाता है।  जो आपमें रोग पैदा करता है।  आपकी आभा , ऊर्जा घटने लगती है और आप स्वतः रोगी होने लगते हैं।  वह रोगी हो या न हो आप रोगी होने लगोगे।  आपसे ऐसी तरंगे निकलने लगेंगी की आपसे लोग घृणा करने ...