tulsidas sada hari chera - तुलसीदास सदा हरि चेरा कीजै नाथ हृदय महं डेरा
तुलसीदास सदा हरि चेरा।
कीजै नाथ हृदय महं डेरा।।
हे मेरे नाथ हनुमानजी! तुलसीदास सदा ही श्रीराम के दास हैं , इसलिए आप उनके हृदय में सदा निवास कीजिए।
हनुमान चालीसा तुलसीदासजी द्वारा रचित अपने गुरु की वंदना है , स्तुति है। तुलसीदासजी भक्त है , परमात्म भाव से लीन रहना उनका स्वभाव है। और जो परमात्म भाव में लीन रहता है उसके मुख जो निकलता है उसे आप कविता कहो या श्लोक कहो। कविता कहना लक्ष्य या उदेश्य नहीं। वह तो अंतः प्रेरित स्वतः प्रस्फुटिक परमात्मा स्तुति है जिसकी ऊर्जा से वह ओत - प्रोत है। यह ऊर्जा उनका उद्धार कर सकती है और उनके माध्यम से उनके शिष्यों का। हनुमान चालीसा का हर एक चौपाई ऊर्जा का श्रोत है पर केवल उनके लिए जो गुरु के माध्यम से इसे पाने में सक्षम है। जैसे विघुत का नियम है की ग्राहक अपनी आवश्यकता अनुसार आवश्यक ट्रांसफार्मर से ही विघुत प्राप्त कर सकता है। एक छोटा सा बल्ब यदि एक लाख वाट ऊर्जा से जोड़ दिया जाए तो वह बल्ब तो नष्ट होगा ही , उसके साथ - साथ विघुत उपकरण भी नष्ट हो जाएगा। जिससे घर में आग भी लग सकती है जिसमे गृह और गृहपति भी जल कर समाप्त हो सकते है। यह विधि निर्माण मूलक न होकर विध्वंसमुलक हो जायेगी। वैसे ही परमात्मा भी ऊर्जा का अंत स्रोत है। उससे आप सीधे नहीं जुड़ सकते हैं उससे जुड़ने के लिए आप को समय के सद्गुरु रूपी ट्रांसफार्मर की हीं आवश्यकता है। वे समय विशेष , पात्र विशेष, स्थान विशेष के अनुशार हर मंत्र हर विधि प्रदान करते हैं। उनके इस धारा धाम से चले जाने पर ये मंत्र , ये सूत्र स्वतः कालित हो जाते हैं। चूंकि इन मंत्र वह सूत्रों की ऊर्जा का माध्यम सद्गुरु ही होता है। जैसे पीपल पाकड़ बरगद के बीजो को यदि आप सीधे बो देंगे तो इनमे से एक नहीं अंकुरित होगा चाहे दस किलो बो दें। जब पक्षी उसे खा कर बिट में निकाल देंगे तभी वह अंकुरित होगा। इसी प्रकार समय के सद्गुरु जब आते है तो सद्गुरु भी ऊर्जा के स्रोत इन बीज मंत्रो को सिद्ध कर के उत्कीलन करके ऊर्जान्वित करके आप को प्रदान करते हैं तब ही आप इनसे लाभन्वित हो पाते हैं।
तुलसीदास सदा हरी चेरा। अर्थात तुलसीदास या अपने लिए प्रार्थना कर रहे है की में सदैव हरि का दास बना रहूं। कीजे नाथ ह्रदय महं डेरा। जब दास बन गए तो परमात्मा सदैव अब उनके ह्रदय में ही निवास करने लगेंगे। भक्त तुलसी के शिष्य जब इस पंक्ति को दोहराते हैं तो गुरु के माध्यम से वे भी परमात्म ऊर्जा से ऊर्जान्वित हो जाते हैं। अब तुलसीदासजी को इस धारा धाम से गए लगभग 500 वर्ष हो गए इसलिए वर्तमान समय के सद्गुरु के शिष्य वर्तमान समय के सद्गुरु के द्वारा उत्कीलन करने पर ही, हनुमान चालीसा के माधयम से उस परमात्म ऊर्जा को ग्रहण कर सकते हैं। तुलसीदास चले गए उनके शिष्य भी चले गए। इसलिए मैंने यहां पर जोड़ दिया है जानकर -
स्वामी कृष्णायन सदा हरी चेरा।
कीजै नाथ हृदय महं डेरा।।
अर्थात स्वामी कृष्णायन जी भी सदा हरि के दास हैं। में तुलसीदासजी को ही क्यों सदा हरि का दास कहूं ? लेकिन तुम लोग कहते हो। क्या तुम उस हरि के चेरे नहीं बन सकते हो या हरि दास नहीं बन सकते हो। तुम पाठ कर रहे हो उसका तो यही मतलब है की तुलसीदास ही सदा हरि के साथ रहे मैं नहीं रहने वाला। चूँकि इसी में तुम्हारे मन की अनुकूलता है। दास होने पर तो मन से सब बुराईयां स्वतः दूर हो जाएगी। मन का असितत्व खतरे में पड़ जाएगा। इसलिए पाठ कर लेते हो तुलसीदास सदा हरि चेरा यानी सदा बने तो तुलसीदास बने हमको क्या जरूरत है ? हम झूठ बोलेंगे सच बोलेंगे झगड़ा करेंगे फसाद करेंगे धोखाधड़ी करेंगे। इसी में तुम्हारे मन को आराम हैं। कीजै नाथ ह्रदय में डेरा, जब तुम दास बन जाओगे तब वह परमात्मा सदैव तुम्हारे हृदय में निवास करने लगेंगे। दिन बनन की देर है दिनानाथ मत हेर , दिन बनते ही दीनानाथ प्रत्यक्ष हो जाते हैं। अति दीनता की स्थिति है यह। लेकिन आप लोग दिन बनना नहीं चाहते हैं , मालिक बनना चाहते है। मालिक बनेगें तब वह कैसे निवास करेंगें आपके हृदय में।
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