pavan tany sankt haran mangal murti rup - दोहा - पवन तनय संकट हरन ; मंगल मूरती रूप राम लखन सीता सहित। हृदय बसहु सुर भूप
दोहा - पवन तनय संकट हरन ; मंगल मूरती रूप।
राम लखन सीता सहित। हृदय बसहु सुर भूप।।
हे पवनपुत्र ! आप सभी संकटो का हरण करने वाले हैं , आप मंगल मूरत वाले हैं। मेरी प्रार्थना है की आप श्रीराम , श्री जानकी एवं लक्ष्मणजी सहित सदा मेरे हृदय में निवास करें।
तुलसीदासजी कह रहे हैं - हे पवन तनय आप तो हर संकट को हर लेने वाले हो अप्रतिम शरीरिक क्षमता , मानसिक दक्षता व् सर्वविध चारित्रिक उचाईयों के उत्तुंग शिखर हो आप के सद्रश मित्र , सेवक , सखा ,कृपालू वह भक्त परायण मिलना असंभव है। आप की मंगल की ही मूरत हो , आप से अमंगल की संभावना नहीं है। हर समय मंगलमय हो।
मंगलम भगवान् विष्णु , मंगलम गरुड़ध्वजा ,
मंगलाय पुंडरीकाक्ष , मंगलाय तनो हरि।
भगवान विष्णु मंगल हैं उनका वाहन भी मंगल है पुण्डरीकाक्ष भी मंगल है। सब मंगल ही है। इसी तरह पवन तनय आप भी मंगल ही हैं। आप का रूप मंगलमय है। आप से अमंगल संभव नहीं है। अतः अब आप अपने ह्रदय में बसे राम , लखन सीता सहित हमारे ह्रदय में निवास करें। राम लखन सीता सहित , ह्रदय बसहु सुर भूप। सुर यानी देवता। इस पृथ्वी के देवता जब आप जाएंगे मंगल की मूरत बन जाएंगें तब आप के ह्रदय में राम , लखन , का वास स्वतः हो जाएगा। एक बार हनुमानजी को कुछ मणि दान में मिले। वह मणियों को तोड़ -तोड़कर देखने लगे। लोगो ने पूछा क्या देख रहे हैं ? बोले - सीता राम मणि में कहीं दिखाई ही नहीं पड रहे हैं ? सब मणि फेक दिए। लोग हसने लगे की कहीं मणि में भी सीता राम होते हैं कभी देखें हैं किसी वस्तु में ? तो बोले हाँ देखे। हैं। कहाँ ? ह्रदय में। लोगो ने कहा हमें भी दिखाओ। हनुमानजी ने हृदय चीरा और सीता राम जी के दर्शन करा दिए। यह कैसे संभव हुआ ? यह सम्भव हुआ श्रदा से। श्रद्धा से ही हम परमात्मा को प्राप्त कर सकते हैं। अभी आप यदि अपना ह्रदय चिरो तो खून - खून दिखाई देगा। सीता राम नहीं। लेकिन श्रध्दा भाव होने पर पूर्ण समर्पण होने पर ह्रदय में आप सीता राम को दर्शन कर लेंगे। यह दिव्य गुप्त विज्ञान का ही चमत्कार है। हनुमानजी दिया गुप्त विज्ञान का ज्ञान रखते थे। दिव्यास्त्र देवस्रों का प्रयोग कर हृदय चिर दिया फिर उसे पुनः सील भी दिया। यह श्रध्दा का प्रेम का ही विस्तृत रूप है। भक्त के पास तो प्रेम की आंख होती है। जब प्रेम संसार की तरफ प्रदार्थ की तरफ होता है तो लोभ , वासना बन जाता है। जब यही प्रेम जगत से हटकर गुरु की तरफ भीतर चैतन्य की तरफ मुड़ता है तो श्रध्दा बन जाता है , भक्ति बन जाता है। परमात्मा से मिला देता है। ह्रदय ही इस प्रेम का स्थान है। यहां द्वैत समाप्त हो जाता है। आत्मा परमात्मा में लीन हो जाता है। अब , मैं , नहीं रहता। इसलिए तुलसीदासजी हृदय में वास करने की बात कर रहें हैं कबीर दासजी भी कहते है।-
जब मैं था तब हरि नहीं। अब हरि है मैं नहीं।।
सम्पूर्ण हनुमान चालीसा यह तुलसीदासजी द्वारा हनुमानजी की गुरु रूप में आराधना ही है। उनके माध्यम से वे अपने इष्ट को प्राप्त करना चाहतें हैं। इसलिए उनके गुणों का बखान करने के पश्चात् अब अंत में उनसे , उनके हृदय में बसे राम , लखन , जानकी सहित अपने हृदय में वास करने की प्रार्थना कर रहें हैं। हृदय प्रेम का प्रतिक है। श्रध्दा का प्रतिक है। जहाँ श्रध्दा होगी। वह परमात्मा उस हृदय में अवश्य निवास करेगा। राम के रूप में सीता के साथ अर्थात श्री के साथ। श्री भक्त सम्पन्नता , पद , प्रतिष्ठा , लक्मी , वैभव , यश , कीर्ति का प्रतिक है। लक्ष्मण वैराग के प्रतिक हैं। अर्थात हमारे हृदय में श्री राम का निवास भक्ती एवं वैराग के साथ हो। तब हम इस संसार में माया के प्रभाव से प्रतिक नहीं होंगे। राग ,द्वेष से रहित राजा जनक कबीर , नानक की तरह आनंद से रहेंगे।
।। हरि ॐ।।
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