jai jai jai hanuman gosai - जय जय जय हनुमान गोसाईं कृपा करहु गुरुदेव की नाईं

जय जय जय हनुमान गोसाईं। 

कृपा करहु गुरुदेव  की नाईं।।

 हे वीर हनुमानजी ! आपकी सदा जय हो , जय हो , जय हो  आप मुझ पर श्री गुरूजी के समान कृपा करें। 

  हनुमान चालीसा  रचयिता तुलसीदासजी  के गुरु हैं नरहरिदासजी, वे हनुमानजी के अवतार कहे जाते हैं।  तुलसीदासजी यहां हनुमानजी से प्रार्थना  कर रहे हैं की - हे हनुमानजी ! आप मुझपर कृपा करें पर असुरों का संहार करने वाले  संहारकर्ता हनुमान देवता  रूप में कृपा न करें।  आपका बायां हाथ असुरों संहार करता  है तो दायां हाथ संतो को  तारता है।  बाएं भुजा असुर दाल मारे, दाहिने भुजा संतजन तारे। , असुरों की तरह संहार करना यह भी तो  कृपा ही है। पर वह ऐसी कृपा से घबरा रहे हैं कहीं उन  पर भी ऐसी ही कृपा न कर दें हनुमानजी। अतः प्रार्थना कर रहे हैं की आप मेरे परम स्नेही , करुणा  सागर गुरुदेव के समान ही मुझ पर कृपा करें।  कृपा करहु गुरुदेव की नाई।  कह रहे हैं हमारे गुरुदेव नरहरिजी की हम पर बहुत कृपा है।  जब हम अबोध थे तभी बाल्यावस्था में ही माता - पिता मर गए , कोई पूछने वाला तक न था।  अनाथ बालक  को गुरु नरहरिजी आश्रम लाए और माता - पिता दोनों का स्नेह दिया।  पिता की तरह संरक्षण दिया , माता की तरह पालन - पोषण किया , खिलाया।  फिर पढ़ाया , शिक्षक का कार्य किया।  दीक्षा दी , सद्गुरु का कार्य किया।  तो एक ही आदमी जो माता का , पिता का , गुरु का , सद्गुरु का कार्य  कर दे और रामायण की रचना कर सकूं इतना समर्थ और सक्षम बना दे अर्थात दैहिक - दिविक - भौतिक सभी तापों को भी काट दे फिर परमात्मा का दर्शन करा दे ऐसे मेरे गुरु देव के समान ही आप मुझ पर कृपा करे।  और जो गुरु धारण भी नहीं किया है वह भी कहता है , जय  जय जय हनुमान  गोसाईं।  कृपा करहु गुरु देव नाईं।। उन पर कृपा जानते हो कैसे करेंगे जैसी लंका में राक्षसों पर किये हैं।  बाएं भुजा असुर दल मारे , वह भी तो कृपा है।  जब तुम्हारे गुरु नहीं है तब लंका में जैसे कृपा किये वैसे कृपा कर देंगे फिर कहोगे हमने तो हनुमान चालीसा का इतना पाठ किया कोई फायदा नहीं हुआ।  इसलिए पहले गुरु को धारण कर लो।  गुरु की शरण में चले जाओ।  जय जय जय हनुमान गोसाईं।  यह तुलसीदासजी  अपने लिए कह रहे हैं आप जरा अपने बारे में सोच कर मंथन करे।  गुरु धारण करने के पश्चात् उनसे हनुमान चालीसा का अर्थ समझे तब पाठ - धारणा - ध्यान की विधि सीखे।  फीर आपके जीवन में गुरु का चमत्कार प्रारम्भ  होगा।  आप सजह समाधी में प्रवेश करने लगेंगे।  आनंद से भर जायेगे। गुरुत्व का अर्थ समझ में आ जायेगा।  


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