asht siddhi nav nidhi ke daata - अष्ट सिद्धि नव निधि के दाता अस बर दीन जानकी माता

अष्ट सिद्धि नव निधि के दाता। 

अस बर दीन जानकी माता।। 

हे केसरीनन्दन ! माता जानकी ने आपको ऐसा वरदान दिया  हुआ है जिसके कारण आप किसी भी भक्त को आठों सिद्धियां और नौ निधियां प्रदान कर  सकते हैं। 


आठ सिद्धियां :

१. अणिमा : इससे साधक अदृश्य रहता है और कठिन - कठिन से पदार्थ में प्रवेश कर  जाता है। 

२. महिमा  :  इसमें योगी अपने को बहुत बड़ा बना लेता है।  

३. गरिमा   :  इससे साधक अपने को चाहे जितना भारी बना लेता है।  

४. लघिमा  :  इसमें साधक अपने को जितना चाहे हल्का बना लेता है। 

५. प्राप्ति    :  इससे मनवांछिंत प्रदार्थ का प्राप्ति हो जाती है 

६. प्रकाम्य :  इच्छा करने पर वह पृथ्वी में समा सकता है।  

७. ईशत्व : इससे सब पर शासन करने की सामर्थ्य प्राप्त  हो जाती है। 

८. वशित्व : इससे  दुसरो को वश में किया जा सकता है। 

नौ निधियां : 

पदम महापदम , शंख , मकर , कच्छप , मुकुन्द , कुन्द , निल , बर्च्च - ये नौ निधियां कही गई है।  

राम से विहाह के पश्चात् जानकी को विदा के समय उनके पिता जनक धीरे से अष्ट सिद्धि नौ निधि प्रदान करते हैं क्यों की वे जानते है की समयानुसार इसे आपातकाल आएगा तब इसे अष्ट सिद्धि नौ निधि के जरूरत पड़ेगी। सीता जब आपातकाल आया रावण आया तब अष्ट सिद्धि नौ निधि प्रयोग कर सकती थी।  गरिमा का प्रयोग करती तो ये धरती की पुत्री उठती ही नहीं।  जब वह रावण शिव का धनुष ही नहीं उठा पाया जिसे जानकी उठा कर लिप देती थी , पोत देती थी। उस जानकी को रावण हरण करके कैसे ले जाता यदि वह अष्ट सिद्धि नौ निधि का प्रयोग करती। लेकिन कहीं नहीं प्रोयोग किया।  जब हनुमानजी गए अशोक वाटिका में और माँ कह कर प्रणाम किया वहां राम जी की मुद्रिका दी तब सीता ने उन्हें वह अष्ट सिद्धि नौ निघि आशीर्वाद के रूप  प्रदान किया।  वह आठ सिद्धियां थी अणिमा , लघिमा , , गरिमा , प्राप्ति , प्राकाम्य , महिमा , ईशित्व और विशित्व। 

अणिमा लघिमा गरिमा प्राप्तिः प्राकाम्यं महिमा तथा। 

ईशित्वं च वशित्वं च सर्वकामवशियताः।। 

अणिमा द्वारा सूक्ष्म रूप धार कर अदृश्य हुआ जा सकता है।  लघिमा द्वारा मच्छर की तरह लघु रूप धारण किया जा सकता है।  इसी रूप में हनुमानजी ने सीता जी की खोज में लंका  मे प्रवेश किया।  यह सिद्धि उनके पास पहले से थी।   गरिमा द्वारा शरीर को भारी बना सकते हैं।  प्राप्ति द्वारा अप्राप्य प्राप्त हो जाता है।  प्राकाम्य द्वारा व्यक्ति जो चाहता है वही ही हो जाता है।  महिमा से शरीर को विशाल किया जा सकता है।  ईशित्व द्वारा प्रभुत्व और अधिकार प्राप्त किया जा सकता है।  वशित्व से किसी को वश में किया जा सकता है।   सीता जी ने कहा की हे पुत्र में इन सिद्धियों को लेकर कहा घुमू अब तू ही इसे लेले यह माँ का ही व्यक्तित्व है।  सीता ने अपने पुत्र के लिये  नहीं बचा कर रखा हनुमानजी महाराज को दे दिया की ले पुत्र तुम्हारे काम आयेगा हमारे किसी काम का नहीं है।  तुम हो की अष्ट सिद्धि नौ निधि के लिए रात दिन नाक दबा रहे हो।  जानकी कह रही है यह तो हमारे किसी काम ही नहीं है इसलिए हनुमानजी को दे दिया की तुम्हारे काम का है इसका प्रयोग  कर काम करना।   सिद्धि नौ निधि के साथ सीता जी उन्हें अजर अमर बनाने का आशीर्वाद भी दिया _

अजर -अमर गुण निधि  सूत होहु। 

करहु बहुत रघुनायक छोहू।।


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