jo sat bar path kar koi - जो सत बार पाठ कर कोई छूटहि बंदी महा सुख होइ

 जो सत बार पाठ कर कोई। 

छूटहि बंदी महा सुख होइ।।


जो व्यक्ति शुद्ध हृदय दसे प्रतिदिन इस  हनुमान चालीसा का सौ बार  पाठ करेगा वह सब सांसारिक बन्धनों  से मुक्त हो  जाएगा और उसे परमानन्द की प्राप्ति होगी। 


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यदि आप को बहुत बड़ा कष्ट है , दुःख है , बन्धन है तो गुरु की आज्ञा लेकर शुक्ल पक्ष के मंगलवार को सुबह गंगा में स्नान कर  हनुमान जी को अखण्ड दीप जला दे घी का या तील के तेल का।  सुबह  शत बार इसका पाठ करले उसमे चार घंटा लगाता है।  तो आप किसी भी तरह के बन्धन से मुक्त हो जाते हैं।  संकट से मुक्त हो जाते हैं।  यदि हनुमानजी का मंदिर हो गंगा तट हो पीपल का वृक्ष हो तुलसी का पेड़ हो और गाय हो तो समझ लें वहां मंगल ही मंगल है।  यह सब इस जगह का जिन्दा ब्रह्म कहा गया है।  रामानंद जी ने इन्हे पृथ्वी के जीवित ब्रह्मा स्वरूप कहा है।  एक छोटी से विधि और बता रहें हैं।  यदि आप का मनोकामना पूर्ण न हो रही हो या कोई मुश्किल आन पड़ी हो तो किसी भी शुक्ल पक्ष का शुभ दिन देख कर मंगलवार से इक्कीस दिन तक एक छोटा सा अनुष्ठान करे इक्कीस दिन के लिए चना गुड़ व् अगरबत्ती एक ही दिन खरीद कर रख ले वह हनुमानजी  का कोई पुराना मंदिर चुन ले जो सिद्ध महात्मा के द्वारा स्थापित हो।  नहीं तो , पत्थर पानी पूजे अन्तर्यामी न मिले , यह बात चरितार्थ हो जायेगी।  सिद्ध द्वारा स्थापित मूर्ति ही जीवित होती है।  बद्रीनाथ इसलिए सिद्ध हैं क्यों की उसे नारद जी ने स्थापित किया।  वहा पूजा की , तप किया।  रामेश्वरम इसलिए सिद्ध है क्यों की इसकी स्थापना में भगवान् राम और जानकी की हाथ है।  मंत्र हो या मूर्ति दोनों की महत्वता के पीछे किसी सिद्ध का ही हाथ होता है यह डुमरि वाराणसी सद्गुरु आश्रम स्तिथ , संकट मोचन आंजनेय , की मूर्ति सर्वप्रथम श्री रामानंद स्वामी जी द्वारा स्थापित की गई जो गंगा के बाढ़ वह कटाव में अस्त - व्यस्त होती रही।  पुनः उसी मूर्ति की स्थापन श्री तुलसीदासजी के द्वारा हुई जो एक बार फिर माँ गंगा के गर्भ में विलीन हो गई।  हनुमानजी की ही प्रेरणा से तथा माँ भगवती राजा देवदास यहाँ स्थित हजारो सूक्ष्म आत्माओ की प्रेरणा से एक बार फिर हमने उस मूर्ति का जिंर्णोध्दार किया और पुनः स्थापना की।  यह पांच मंगलवार जो भक्त श्रदा पूर्वक पूजा करता है उसकी मनोकामना अवश्य पूर्ण होती है।  आप भी ऐसे ही सिद्ध मंदिर में किसी सिद्ध द्वारा मंत्र ग्रहण कर थोड़ा गुड़ की ढेली मुट्ठीभर चना अगरबत्ती लेकर मंत्र के जाप करते हुए जाए।  मंगलवार से इक्कीस दिन तक प्राप्त स्नान कर के सीधे जाना है सीधे ही आना है पीछे मुड़ कर हरगिज़ नहीं देखना है चाहे जो हो जाए।  मंदिर में १०८ बार मंत्र का जाप कर , अगरबत्ती जला कर आचमन करे फिर चना गुड़ का भोग लगाए थोड़ा प्रसाद स्वम भी ले और सीधे जाए जहाँ से यात्रा सुरु की वही लौट आए।  एक ही वस्त्र मंदिर आने जाने हेतु रखे।  उसे पहन कर मल मूत्र आदि के लिये न जाएं।  आते जाते समय किसी से बात भी नहीं करनी है।  वैसे इक्कीस दिन करने पर मनोकामना पूर्ति के साथ से बंधन छूट जाएंगे।  आज कल बांधने की बड़ी प्रथा है जो गुरु कह दे तुम्हे बाँधा गया है वहीं तुम्हे सच्चा गुरु लगेगा।  उसके हाथ सहर्ष लूटने को तैयार हो जायेगें।  हम भी जिससे कह दे तुम्हे बाँधा गया है।  वह प्रभावित हो जाता है कहता है आप ठीक कह रहे  हैं  चार पांच और बाबाओ ने भी हमसे यही कहा।  आप तो सचमुच पहुंचे हुए है, बिना कहे जान गए।  लेकिन सत्य यही  है की यह बांधना - वांधना सब बकवास है।  तुम्हारे मस्तिष्क की उपज है मन का भ्रम है।  तुम्हारे मन ने ही तुमको बाँध दिया है।  तुलसीदासजी इसी मन के बंधन से छुटकारे का उपाय बता रहे है की भक्त के द्वारा , प्रभु के सुमिरण के द्वारा इस बंधन से छूट जाओ।  शत बार पाठ करोगे तो कुछ तो परिवर्तन आयेगा।  कुछ तो बंधन टूटेंगे।  बंधन टूट जाएंगे तो खुसी हो जाओगे बांधने के चिंता दर से मुक्त हो जाओगे।  यदि बांधना सम्भव होता तो सबसे पहले आतंकवादियों को ही बाँध दिया जाता जो समाज में दहसत फैला रहे हैं।  उन बमो को बाँध दिया जाता जो मनुष्य को अपाहिज बना रहे हैं।  और कुछ नहीं तो उन देशो की सिमा को बाँध दिया जाता जहाँ से आतंकवादी प्रवेश करते हैं।  उन्हें कोई क्यों नहीं बांधता ये भी तो हमारे दुश्मन हैं।  तो जो अनुष्ठान में बता रहा था 21 दिन के बाद उसका समापन भी मंगलवार को ही कुछ मिठाई प्रसाद वह द्रव्य चढ़ाकर करें।  तब तक पूजा जारी रखें।  हनुमानजी बहुत सस्ते में ही प्रसन्न हो जाते हैं।  इस पूजा के निर्विघ्न  संपन्न होने पर आप का कार्य पूर्ण हो जायेगा।  अब आप अपने ही स्वम को बांधे और खोल ले।  आप की मनोकामना पूर्ण हो जायेगी।  


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