aur manorath jo koi lavai - और मनोरथ जो कोई लावै सोई अमित जीवन फल पावै

और मनोरथ जो कोई लावै।  

सोई अमित जीवन फल पावै।।

आपकी कृपा का पात्र जीव कोई भी अभिलाषा करे , उसे तुरंत फल मलता है।  जिव जिस फल की प्राप्ति की कल्पनाक भी  नहीं कर सकता , उसे मिल जाता है। 

 तुलसीदासजी गुरु स्वरूप में हनुमानजी का स्तुति करते हुए गुरु व गुरु भक्त माहिमा का वर्णन कर रहे हैं।  गुरु भक्त के रूप में हनुमानजी ने अपने गुरु श्रीराम जी के सकल काज संवारे  है।  संजीवनी  बूटी लाकर लखन को जिलाये।  समुद्र लांघ कर  राम जी सन्देश सीता माता तक पहुंचाया।  लंका में आग लगा  कर सदविप्रों की शक्ति से अशुरों को पराजित कराया।  महाभारत युद्ध में विजय श्री प्राप्त करने में महत्व पूर्ण भूमिका निभाई।  वह ही गुरु भक्त हनुमान गुरु के रूप में सुग्रीव को विभीषण को वह अपने पुत्र मकर ध्वज  को राम रसायन के माध्यम से राजा बनाते है।  वह सबके मनोरथ पूर्ण कर असम्भव कार्य भी संभव कर देते है।  इतने वह सक्षम हैं।  वह तुम्हारे भी जन्मो - जन्म सवार देंगे।  अमित जीवन अर्थार्त कई जीवन है एक जीवन नहीं है।  करोडो जीवन तुम लेकर आये हो करोडो जीवन तुम जियोगे।  सब जीवन तुम्हारा यह पार करने का  ठिका लिलेंगे यदि तुम आत्मा राम की भक्ती में ऊपर जाओगे। इनके जैसा परमात्म भक्त बन जाओगे।  एक बार तुलसीदासजी के पास एक औरत पुत्र प्राप्त हेतु आश्रीवाद पाने की अभिलासा लेकर आई।  तुलसीदासजी ने उसे अगले दिन आने के लिए कहा।  अगले दिन उन्होंने भगवान से पूछ कर बताया की तुम्हारे भाग्य में तो सात जन्म तक पुत्र नहीं है।  यह रोती - रोती जाने लगी।  उसके रोने का कारन  जानकर एक आदमी उसे कबीरदास के पास भेज दिया वह उस समय परमात्मा भाव में लीन थे।  उस औरत ने उनसे जब प्राप्ति के लिए  प्रार्थना की तो वह छड़ी उठा कर पीटने लगे।  एक दो तीन चार चौथी छड़ी पड़ते ही उनके शिष्य श्रुतिगोपालदास ने छडी खिच ली और आश्चर्य चकित खड़ी औरत से बोले जा भाग जा तूने एक माँगा था तुझे  चार चार पुत्र होंगे।  वह खुशी -ख़ुशी चली गई।  जब पुत्र जन्म हुआ तो पुनः तुलसीदासजी के पास नामकरण कराने पहुंची।  बोली आपने तो कहा था सात  जन्म पुत्र  नहीं होगा ये कैसे हो गया ? तुलसीदासजी ने रात्रि में भगवान से पूछा भगवान् यह क्या लीला है ? मुझे तो आपने ही कहा की उसे सात जन्मो तक पुत्र नहीं होगी भगवान् अपनी पीठ दिखाते हुए बोले देखो यह छड़ी के चार निशान।  में क्या करता ? में तो भक्तो के आधीन हु।  जब मेरे भक्त कबीर ने वार किया तो देना ही पड़ा। विधि का विधान बदलना पड़ा।  इसलिये गुरु की इतनी महिमा है ,वे ही आप के सकल मनोरथो को पूर्ण करने का सामर्थ रखते हैं।  वह ही आप का भाग्य बदल सकते हैं।  देवी देवता केवल वही दे सकते हैं जो आप के भाग्य में है।  गुरु आप को वह भी दे सकता है जो आप के भाग्य में नहीं है।  आप अपने मनोरथ को गुरु पर पूर्ण रुपेण  छोड़ दें।  चूंकि की आप अपनी मांग के सम्बन्ध में नहीं जानते है की इस मांग से आप भस्मासुर बनेगें या रावण।  गुरु आप को अपने समान्य बना लेता है अब आप अमित से मुक्त  हो जायेगें।  


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