aur devta chint n dharai - और देवता चिन्त न धरई हनुमत सेइ सर्ब सुख कराई

 और देवता चिन्त न धरई। 

हनुमत सेइ सर्ब सुख कराई।।


हे हनुमानजी ! जो भक्त सच्चे मन से 
सेवा  करते हैं उन्हें सब प्रकार के सुख प्राप्त होते हैं।  उन्हें अन्य किसी देवता की पूजा करने की आवश्यकता नहीं रहती। 

यह सृष्टि एक उल्टा वृक्ष है। निःक्षर पुरुष , सत पुरुष जड़ है। अक्षर पुरुष ( परब्रह्म ) जमीन से ऊपर का तना है।  डार है जोति निरंजन।  तीनो देवता ब्रह्मा , विष्णु , एवं महेश शाखा हैं।  छोटी - छोटी टहनियां देवी देवता हैं।  पत्ते संसारी जिव है। 

 अक्षर पुरुष एक पेड़ है निरंजन वाकी डार। 

त्रिदेवा शाखा हैं पात रूप संसार है। 

अतः एक परम पिता की साधना करने पर सभी देवी देवता अपने पास सिद्ध हो जाते हैं।  

एक साधे सब सधै सब सधै एक जाय। 

माली सींचै मूल को , फूलै फलै अघाय।।

सभी पत्ते यानी देवी देवता का साधना करने पर वह एक परम पुरुष छूट  जाता है।  आप उससे चूक जाते है।  लाख चौरासी के चक्कर में पड़ जाते हैं।  जैसे माली वृक्ष की जड़ पानी देता है।  वह वृक्ष स्वतः फल  फूल से भर जाता है।  जिस दिन माली जड़ की बजाय  पत्तो पर पानी छिड़कने लगेगा वृक्ष सुख जाएगा। उसी तरह तीन सौ पैसठ करोड़ देवी - देवता है आप किस - किस की पूजा करेंगे।  आप कभी इस देवता के यहां  तो कभी उस देवता के यहाँ भटकते रहेंगे। बहु पुरुषन लागते वेश्या रह गई बाँझ। 

जैसे बहुत पुरुषो से बंधन के कारण वेश्या बाँझ रह जाती है वैसे ही बहुत देवी - देवताओं को पूजने के कारण आप की भी चिंतवृतियाँ भ्रमित हो जायेगीं।  आप न यह संसार पा सकेंगे न वह संसार।  जब उस एक परम पुरुष से सम्बन्ध बना लेंगे उस एक  पर चिन्त स्थिर कर लेंगे तब आप को दोनों मिल जाएंगे।  आप इस संसार सागर से पार हो जाएंगे।  एक बार एक आदमी विपत्ति में फस गया।  उससे निकलने के लिये वह देवताओं की प्राथना करने  लगा। सबसे पहले उसने राम जी को पुकारा।  राम जी दौड़े आये।  तब तक उसने हनुमानजी को पुकार लिया राम जी वापस चले गए।  हनुमानजी दौड़े आये।  तब तक वह सीता जी को पुकारने लगा।  हनुमानजी भी लौट गए।  सीता जी आई।  अब वह किसी और को पुकारने लगा।  सीता जी भी लौट गई।  एक एक कर के कई देवी - देवता उसकी मदद करने आये पर कोई भी उसकी मदद नहीं कर पाया।  वह अपने अस्थिर चिन्त के कारण विपत्ति में ही फसा रह गया।  यही स्थिति हम सबकी भी हो जाती है जब उस एक से भटक जाते है।  दिव्या गुप्त विज्ञान , में बताया जाता है की शरीर के अंदर कहां - कहां  कौन से देवी - देवता बैठे हैं।  परमात्मा का स्थान कहा है आत्मा का स्थान कहां है गुरु का स्थान कहा  है।  यह देवी - देवता जल्दी से आप को परमात्मा की ओर जाने नहीं देते।  प्रलोभन देते हैं  वरदान मांगने को कहते हैं।  विषय वासना रूपी झोको को और हवा देकर उनमे फसा देते हैं।  लेकिन उस  परम पुरुष का भजन करने पर यह सभी सांसारिक मायाबद्ध देवी - देवता उस भजनानन्दी की सेवा में जुट जातें हैं।  वैसे ही जैसे राष्ट्रपति से संबंध होने पर तमाम अधिकारी आपकी सेवा में स्वतः लग जाते हैं।  आप को खुश रखने में अपनी भलाई समझते हैं।  वह देवी - देवता भी उस परम पिता के मातहत कर्मचारी ,अधिकारी हैं। वह तभी तक आप को दुःख कष्ट देतें हैं जब तक आप का परिचय सदगुरु से नहीं हुआ है।  यहीं बात यहां तुलसीदासजी हनुमानजी की स्तुति करते हुए कह रहें हैं की हे हनुमनजी, और देवता मेरे चिंत को भ्रमित कर देंगे एक आप ही मुझे सद्गुरु के रूप में सर्व सुख रूप परमात्मा से मिला सकते हैं।  आप उनके द्वार के रखवाले जो हैं।  सांसारिक सुख क्षण भंगुर हैं।  केवल वही स्थायी है।  परमानन्द को देने वाला है।   


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