sankat kate mete sab pira - संकट कटै मिटै सब पीरा जो सुमिरै हनुमत बलबीरा
संकट कटै मिटै सब पीरा।
जो सुमिरै हनुमत बलबीरा।।
हे बलवीर ! जो व्यक्ति मात्र आपका स्मरण करता है , उसके सब संकट कट जाते हैं और पीड़ाएं मिट जाती है।
तुलसीदासजी कह रहे हैं की जो हनुमानजी का सुमिरण करता है अर्थात अपने गुरु का वह उनके द्वारा प्रदत्त मंत्र का सुमिरण करता है उसके सब संकट कट जाते हैं सब पीरा मिट जाती है। मन का राम में रमण करना ही सुमिरण है। सुमिरण करते - करते मन सहज हो जाता है। मन का सहज होना ही दुष्कर है। सारे रोग दुःख कष्ट की जड़ यही है। जैसे किसी बिगड़ैल घोडा को खूब दौड़ा दो। वह थक कर सहज हो जाएगा। मन उस बिगड़ैल घोड़े से भी ख़राब है। यह लगातार सुमिरन से ही थक कर सहज हो जाता है। इसके सहज होते ही शून्यता आ जाती है। शून्य अर्थात न दिन न रात न पाप न पुण्य। अब मन निर्विकार हो गया। विकार हटाने का एक मात्र उपाय है सुमिरण। जो गुरु बिधि बताता है उससे लगातार सुमिरण करते रहना ही साधना है। जैसे ही मन सहज होता है निर्विकार होता है। एकाएक आप प्रकाश से भर जाते हो। वह जोति पहले ही महजूद थी अब अवसर पाते ही प्रगट हो गई। सुमिरण करते - करते अब आप राम में ही रम जाते हो। जब ऐसा प्राप्ति होने लगे की भूक भी लगी है तो उसी की लगी है। प्यास भी लगी है तो उसी की लगी है। तब समझो सुमिरण हो गया। अब आप देखोगे इंगला घर पिंगला जा रही है अर्थात चंद्र स्वर सूर्य स्वर में जा रहा है सुषुम्ना का द्वार खुल रहा है आप समाधी में लीन हो रहे हो। सुमिरण या सुमिरन , स्मरण शब्द का अपभृंश है। यह सुमिरण जीभ से संभव नहीं है। यह तो प्राण से ही संभव है। जो मन से भी गहरा है। इस सुमिरण का इतना प्रभाव है की इसे करने वाला स्वयं राम हो जाता है। सुमिरण करने वाला भी नहीं बचता। द्वैत समाप्त गया अब राम ही रह गया। जब राम ही रह गया तो कैसा संकट कैसी पीड़ा। सब स्वतः समाप्त ही हो गया।
सुन्न सहज मन सुमृते भई एक जोति।
ताहि पुरुष की हौं बलिहारी , निरालंब जो होती।।
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