tumhre bhajan raam ko pave - तुम्हरे भजन राम को पावै जनम - जनम के दुख बिसरावै
तुम्हरे भजन राम को पावै।
जनम - जनम के दुख बिसरावै।।
आपका भजन करने वाले भक्त को श्रीरामजी के दर्शन होते हैं और उनके जन्म - जन्मान्तर के दुःख दूर हो जाते हैं।
तुलसीदासजी यहां राम को पाने की बात कर रहे हैं। राम शब्द अत्यंत महत्वपूर्ण है। ढाई अक्षर का यह शब्द परम रहस्यपूर्ण गुह्म मंत्र है। र + अ + म के संयोग से राम शब्द बना है। र- अग्नि का बीज मंत्र है। र , का उच्चारण करते ही मूलाधार चक्र पर जोर पड़ता है। मूलाधार चक्र के चारो तरफ विजातीय गैस ,अवयव जन्मो - जन्म से पड़े रहते है। उसे यह अग्नि जला देती है। जिससे अंदर का दबाव कम हो जाता है कुण्डलिनी का जागरण एवं उधर्वगमन स्वतः होने लगता है। अ - सूर्य का बीज मंत्र है। सूर्य अर्थात ज्ञान। अ अक्षर का उच्चारण होते ही वह परम ऊर्जा मणि पुर चक्र पर आ जाती है। अ अक्षर वर्णमाला का उदगम स्रोत है। साधक अंदर से परम प्रकाश से प्रकाशित हो जाता है। उसके अंदर स्वतः वेद का उच्चारण होने लगता है। यहां अग्नि है। यहीं भगवान् विष्णु का स्थान है। यहीं से पुरे शरीर का पोषण होता है। यह अ , विशुद्धि चक्र तक ध्वनित होता है। म , - चन्द्रमा का बीज मंत्र है। चन्द्रमा शीतलता प्रदान करता है। वह अमृत देता है , जिससे साधक के सम्पूर्ण शरीर में नव ऊर्जा का संचरण होता है। म , आते ही ऊर्जा आज्ञा चक्र पर आकर रुक जाती है। उच्चारण समाप्त होते ही मुँह स्वतः बंद हो जाता है। राम शब्द के बार -बार उच्चारण मंत्र से साधक की सोयी हुई कुण्डलिनी ऊर्जा मूलाधार चक्र से जागृत हो जाती है। सारे मलों को जला कर भस्म कर देती है तथा साधक के आज्ञा चक्र पर आकर विश्राम करने लगती है। वही गुरु पर्वत भी है। गुरु के इसारे मात्र से वह ऊर्जा सहस्रार में प्रवेश कर जाती है। अब यह अमृत साधक के सहस्रार से अहिर्निश बरसने लगता है। वह अमर लिंग पर आकर गिरने लगता है। पूरा लोक उसी अमृत वर्षा से तृप्त होता है। साधक पर गुरु अनुकम्पा बरसती है। जिससे साधक के सिर अर्थात ब्रह्माण्ड से पाताल अर्थात पैर तक का पोषण करने लगता है साधक की स्थिति वैसी ही हो जाती है। जैसे निचे से गंगा का पानी बढ़ रहा हो जिसमे साधक दुब रहा हो। ऊपर से गुरु अनुकम्पा की वर्षा से भीग रहा हो। प्रभु अनुग्रह रूपी बिजली चमक रही हो। प्रभु रूपी बादल की गड़गड़ाहट में साधक भाव विह्रल हो जाता है। वह सहज समाधी में प्रवेश कर जाता है। अब वह स्वम, तथा पर, का भान भुल जाता है। बांसुरी किसी की हो गीत उस एक को ही सुनता है। दिये किसी के हो - प्रकाश उस एक का ही दिखता है सम्पूर्ण पृथ्वी उसी का पद चिन्ह्र प्रतीत होता है। कण - कण में उसकी ही छवि दिखाई देती है। उस निराकार से आकारों की झीनी सी ओट अनायास ही गिर जाती है। रह जाती है केवल - राम। उसी का हस्ताक्षर है - पूरी प्रकृति तुलसीदासजी यहाँ इसी राम को प्राप्त करने की बात कर रहे हैं। मुख से केवल राम - राम रटने से यह राम नहीं मिलेगा। यह राम मिलेगा भजन के माध्यम से। भज धातु से भजन बना है। जिसका अर्थ है सेवा - सुमिरण। जब सुमिरण के साथ -साथ तन - मन - धन से आप परमात्मा, की समाज की, सेवा में उतर जाते है उस सेवा को परमात्मा स्वीकार कर लेता है वही भजन कहलाता है। इस सुमिरण की बिधि भी समर्थ सद्गुरु ही प्रदान करते हैं। इसलिए तुलसीदासजी यहाँ अपने गुरु रूप हनुमानजी का गुणगान कर रहे की तुम्हरे भजन राम को पावै। यानि आप ही मुझे राम की प्राप्ति करा सकते हैं। आगे कह रहे हैं जन्म -जन्म के दुख बिसरावै , जब राम मिल गया वह परमात्मा मिल गया तो पाने के लिए क्या शेष रह गया। सारे दुःख तो स्वतः समाप्त हो गए। जन्म - जन्म के कष्ट नष्ट हो गए। वह सब कष्ट दुःख तो अज्ञानता वश थे। राम के आभाव में थे। राम की ही भ्रमित मिथ्या खोज के कारण थे। जैसे प्रकाश के होने पर अंधेरा स्वतः चला जाता है वैसे ही राम का आगमन होते ही वह दुःख भी स्वतः चले जाते है। उनसे मुक्ति के लिए अलग से कोई उपाय नहीं करना पड़ता है।
सम्पूर्ण आत्मज्ञान awakeningspiritual.blogspot.com पर मिलेगा।
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