sankat te hanuman chhudavai - संकट तें हनुमान छुड़ावै मन कर्म बचन ध्यान जो लावै

संकट तें हनुमान छुड़ावै। 

मन कर्म बचन ध्यान जो लावै।।


जो मन - कर्म - वचन से अपना ध्यान आप में लगाते हैं, उनको सब दुखों से आप मुक्त कर देते हैं।  

 हनुमानजी किसी भी संकट से आप को मुक्त कर देते हैं एक हीं सत्य है मन व्चन और कर्म से आप को एक होना चाहिए।  हम लोग मन में सोचते कुछ हैं कहते कुछ है करते कुछ हैं। तीनो अलग - अलग।  हम अपने में द्वंद्व में हैं।  अपने हम झगड़े में हैं। अपने हम बेहोसी में हैं।  अपने हम सराब के नसे में हैं। सराब का नाशा क्षमा हो सकता है।  लेकिन अंहकार का नशा क्षमा नहीं है। यह सब अलग अलग कर देता है।  हम सोचते कुछ, कहते कुछ, करते कुछ हैं।  इसलिए हम लोगो को यह समझना चाहिए की क्या कह रहे हैं क्या सोच रहें ? अपने सोचने को पहले नियंत्रण करो।  सोचे सोच न होवई , जो सोचे लख बार।  गुरु नानक देव कहते हैं - सोचते रहो सोचते रहो उससे कुछ  होगा नहीं जैसे ही तुम अपने सोचने को नियंत्रण कर लोगे सोचने की धारा बदल जाएगी।  सोचने की धारा जब बदल जाएगी तब तुम्हारा मन बदल जाएगा मन बदल जायेगा तो कर्म भी बदल जायेगा।  तुम्हारे सोचने की धारा ही गलत है।  जैसे -जैसे हम सोचते है मन भी उसमें रस लेने लगता है।  मन जब उधर चला जाएगा, रस लेने लगेगा, शरीर भी चला जाएगा फिर होगी गड़बड़।  कबीर साहब इसलिए कहते  हैं - मन जाता है तो जाने दे, तू मत वहा से हिल।  मन यदि चला भी गया सोचने में तो उसके साथ तुम मत जाओ। बैठे रहो निश्चिन्त होकर।  यही बात तुलसीदासजी भी कह रहे हैं।  मन -कर्म बचन ध्यान जो लावै।  मन से बचन से कर्म से तीनो से जब तुम गुरु - गोविन्द का ध्यान करने लगोगे तब तम्हारे सब संकट स्वतः कटते चले जाएंगे।  हम पद पैसा प्रतिष्ठा के अहंकार में पाठ करते चले जाते हैं।  इसे समझले तो यहीं पंक्ति हमारा उद्धार कर देगी  संकटो से मुक्त होकर हम हंस हो जाएंगे।  


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