raam rasayan tumhre paasa - राम रसायन तुम्हारे पास सदा रहो रघुपति के दासा
राम रसायन तुम्हारे पासा।
सदा रहो रघुपति के दासा।।
आप सदैव श्रीरघुनाथजी की शरण में रहते हैं इसलिए आपके पास वृद्धावस्था और अन्य असाध्य रोगों के नाश के लिए राम - नाम रूपी रसायन (औषधि ) है।
तुलसीदासजी आगे भेद खोल रहे हैं की यह राम रसायन जब तुम्हारे पास आ जाएगा तब बिना मांगे अष्ट सिद्धि - नवनिधि दौड़ते हुई आ जाएंगी , तुम कहोगे न, न हमको जरूरत नहीं है। वे कहेंगी हम तुमको देंगे ही देंगे क्योकि यह राम रसायन तुम्हारे पास है। राम रसायन यह महामंत्र है इस पृथ्वी के लिए इसलिए इस पृथ्वी पर हनुमानजी के बाद हम ही लोग राम रसायन यज्ञ कर रहे हैं। बहुत लोग चौंक रहे है की राम रसायन यज्ञ हम लोग पहली बार सुन रहे हैं। वह जो यज्ञ है उसमें केवल ब्राह्मण ही मंत्रवेत्ता होता है और सब लोग दर्शक या दान देने वाले होते हैं। राम रसायन यज्ञ में सभी लोग चाहे किसी भी जाती के हों , वर्ण के हो , संप्रदाय के हो , पंथ के हों सब इसके मंत्र का आवाहन करते हैं। सुबह शाम यज्ञ में भाग लेते हैं। यह इस पृथ्वी पर सबके लिए सामान रूप से भाग लेने का अवसर प्रदान करता है। जो राम रसायन यज्ञ में सम्मिलित होता है उसका मनोरथ स्वयं हनुमानजी महाराज पूरा करते हैं। यदि यज्ञ करने पर किसी की कामना पूरी नहीं हुई कोई घाटा लग गया तो उसका भी हिसाब - किताब कर हर्जाना दे देंगे। इतना तुमको गारंटी के साथ कहा जा रहा है इसलिए अब तो अपना तन - मन इसमें लगाओ। धन हम छोड़ देते हैं छिपकर रख दो। धन के लालच में निकलोगे ही नहीं। सदा रहो रघुपति के दासा, दास के भावना से करो शरीर से सेवा, मन से हर समय राम नाम का सुमिरन। धन इस यज्ञ में आहुति होती है उसमे लगाओ हवन यज्ञ के आलावा सुबह शाम साधू महात्मा ब्राह्मण वह अन्य भक्त गाडो को भोजन की जलपान की बेवस्था होती है उसमे लगावो। यह राम रसायन सबके लिए सर्वसुलभ है। यहां नहीं की फला ही इसमें आहुति देगा फला इसका मंत्र उच्चारण करेगा। यह हर प्रकार के बंधन से मुक्त है। हनुमानजी ने इसे बंधन मुक्त कर दिया है। राम रसायन तुम्हरे पासा , यह राम रसायन कब पास रहेगा जब तुम सदा रहो रघुपती के दासा
सियाराम में सब जग जानी। करहु प्रनाम जोर जुग पानी।।
जो भी आश्रम में आ रहा है उसे रघुपति समझलो। सृष्टि परमात्मा का विस्तार है उसका अंतिम छोर है। केंद्र बिंदु परमात्मा ही है। जब उसी का सब विस्तार है तो तुम उसी के रूप हुए इसलिए समझ लो की जो आ रहा है वो रघुपति ही है। में उसका दास हूं। जब दास भावना आ जाएगी तब सब में रघुपति का ही वास नजर आएगा।
निज प्रभु मैं जग देखहुँ , केहि सन करहुं। विरोध।
तुलसीदासजी उत्तरकाण्ड में कह रहे हैं चारो और में अपने ही प्रभु को देख रहा हु किसमे में दोस निकलू इसलिए तुम लोग भी यह समझ लो जो यहां आ रहा है रघुपति ही है। एक बार चक्रवती सम्राट राम जी द्वारा सूर्यपर्यन्त राम राज्य व्यवस्था लागु करने के उद्देश्य से अयोध्या पृथ्वी के समस्त राज्यों की एक सभा आमंत्रित की गई। इस सभा में नारदजी भी पहुंच गए। वह भी श्री मननरायण - नारायण जपते हैं। इसमें भी श्री लगा है। नारद जी बोले हे हनुमानजी। आप ने यह कौन सा आविष्कार कर दिया की राम राज्य की पूरी व्यवस्था इस रसायन ने कर दी। दैहिक - दैविक - भौतिक तापा राम राज्य काहू नहीं व्यापा। ऐसा राम लगा दिया की इसमें किसी तरह का दैहिक - दैविक - भौतिक ताप होता ही नहीं दुःख होता ही नहीं। नारदजी ने मंत्र का प्रभाव परखने के उद्देश्य से अंगदेश के राजा को इसारा किया की जब इनके गुरु वशिष्ट जी आएंगे तब तुम उनके स्वागत में खड़ा मत होना। क्षत्रिय तो अंहकारी होता ही है। और राजा हो जाए तो अहंकार और बड़ जाएगा। वशिष्ट जी आये तो भूमण्डल के सारे राजा खड़े हो गए अंगदेश के राजा को छोड़ कर। और जब सब खड़े हों और एक बैठा रहे तो सबकी निगाहे उधर ही चली जाती हैं। वशिष्ट जी कुछ दुखी हुए। सभा के विसर्जन पर उनसे पूछा गया की आप दुखी क्यों नजर आ रहे हैं ? वे बोले आप का एक राजा अंहकारी क्रूर अन्यायी बैठा रहा इस कारण उसे दण्डित कीजिये राम। राम जी ने तो देखा ही था लेकिन सोचा की नजर अंदाज कर दिया जाए। राम जी ने पूछा कौन सा उसे दण्ड दिया जाये ? आगे वशिष्ट बोले मृत्यु दण्ड। राम ने कहा ठीक है कल संध्या तक इसे मृत्यु दण्ड दे दिया जायगा। अंग नरेश सोचने लगे की कहां आफत में फस गए। नारदजी के बहकावे में आकर। नारदजी को खोजने लगे। अध्य रात्रि के बाद नारद जी किसी तरह से मिले अंग नरेश बोले आपने यह क्या कर दिया हमारे लिए मृत्यु दंड निश्चित हो गया ? नारद जी बोले घबड़ाओ मत। नारदजी सुबह सुबह अंग नरेश को लेकर हनुमानजी की माता जी अंजनी के यहाँ चले गए। हनुमानजी सुबह होते भगवान राम के यहाँ चले जाते थे। अंजनी माता स्नानकर पूजा - पाठ ध्यान करने बैठी हीं थी की इन्होने जाकर पैर पकड़ लिया। नारद जी ने समझा ही दिया था की कहना मुझे एक राजा मारना चाहता है आप मेरी रक्षा करे। नाम मत बताना राजा का। अंजनी का जब ध्यान टुटा तो बोली बेटा कौन हो ? वर मांगो। अंग नरेश बोले माँ मुझे एक राजा मरना चाहता। हैं। आप मेरी रक्षा करे। आज भर का समय दिया है। अंजनी ने पूछा कौन है वो राजा ? राजा बोला माँ इतना भयभीत हु की उसका नाम स्वरूप सब भूल गया हु। अंजनी बोली ठीक है। में तुम्हरी रक्षा। करुँगी। हमारा पुत्र हनुमान विद्यावान है राम रसायन का। इधर अंग नरेश माता अंजनी के यहां शरणागत हुए उधर भगवान् राम उन्हें चारो और उसे खोज रहे है वह मिल नहीं रहें हैं। अंत में नारदजी ही रामजी के दरबार में पहुचें। पूछा भगवान् किसे खोज रहें हैं। राम जी बोले ऐसे - ऐसे आज अंग नरेश को फांसी देनी हैं। वह मिल नहीं रहें हैं। नारदजी बोले आप जाइए हनुमानजी के माता अंजनी के पास उन्ही के कुटिया में वह छिपे हैं। नारदजी ने पूछा भी बात बता भी दीया भगवान् राम गए धनुष की टंकार किए। शाम को हनुमानजी अपनी माँ के सेवा में जा चुके थे। उनकी माता कहा बेटा देखा कोई आततायी राजा इसे मारना चाहता है। इनकी रक्षा। करो। हनुमानजी ने पूछा कौन राजा है कहां है ? अंग नरेश सामने आगए। परिचय पूछने पर बोले हनुमानजी ! हम भूल गए हैं इतना भय उत्प्नन हो गया है की नाम सवरूप सब भूल गए हैं। हनुमानजी बोले निर्भय हो जाओ। अब तुम्हे में किसी को मारने नहीं दूंगा यदि काल भी आगया तो उससे भी तुम्हारी रक्षा करूँगा। में व्चन का पक्का हूँ। उधर भगवान राम भी आगए। वह भी कहते हैं प्राण जाए पर वचन न जाए ? जब राम जी के धनुष की टंकार हुई तो हनुमानजी बाहर आए। बोले प्रभु आप यहां। राम जी बोले हमारा दोसी तुम्हारे घर में छिपा हुआ है हनुमान उसे बाहर निकालो कौन ? अंग नरेश। उनकी रक्षा का वचन तो हमारी माँ दे चुकी है प्रभु राम बोले तुम यह जानते हो की में वचन का पक्का हूँ। हनुमान बोले हमारी माँ भी वचन की पक्की है। एक तरफ आप एक तरफ माँ। में क्या करू प्रभु ? रामजी बाण चलाने लगे। हनुमानजी अपनी गदा जिसमे रसायन भरा हुआ था उसे आगे कर खड़े हो गए। वह गदा से केवल यही कहते - श्री राम जय राम जय जय राम। जितना बाण चलाते राम लक्षमण सब गदा से टकरा के गिर जाते। ऐसा होते होते संध्या हो गई। सूर्य डूबने लगा। चिंतित हो गए राम, की अब क्या करें ? नारद जी तो भक्त और भगवान् से झगड़ा लगा ही दिए अंत में जब परेशान हो गए राम संधि के लिए किसी को खोजने लगे। तब तक से श्री मननारायण करते हुए नारद जी पहुंच गए। बोले प्रभु हम समझ गए की हमरे मंत्र का उतना प्रभाव नहीं है जीतना राम रसायन का प्रभाव है। प्रभु आज मुझे बताइये की आप की आप का नाम बड़ा। राम बोले हम बड़े परेशान हैं। पहले हमारी समस्या का समाधान करो। नारदजी बोले आप की समस्या का समाधान दो मिनट में हो जाएगा। राम बोले यह समस्या आयी कैसे ? नारदजी बोले यह मैंने दी है ? नारदजी कभी झूट नहीं बोलते हैं। राम बोले क्यों ? नारदजी हम श्री मननारायण का जाप करते थे। हमने हनुमनजी के राम रसायन की चर्चा सुनी। देखा की इससे पृथ्वी पर राजा ही बना रहा है। हम तो निहंग होकर इस पृथ्वी पर घूम रहे हैं। न रहने को घर न झोपड़ी। यह जिसको मंत्र देते हैं वह राजा बनते चला जा रहा है इसलिए हमने इसकी परीक्षा लेनी चाही की चलो यह राजा बने हैं इनको हम मरवा दे। तब तो यह मंत्र फेल होगा। राम बोले देख नहीं रहे हो हम स्वयं प्रत्यक्ष होकर मार रहे है वह गदा से प्रहार ही नहीं कर रहा है। श्री राम जय राम जय जय राम कह कर सारा मेरा बाण ध्वस्त करते जा रहा है हमारी शक्ति समाप्त हो गई। में हार गया हनुमान का राम रसायन जित गया हनुमानजी को बाहर बुलाया गया की आप छोड़ दीजिये दोसी राजा को। हनुमानजी बोले कैसे में छोड़ दू ? मेरी माँ उसकी रक्षा के लिए वचन बाध्य है। राम बोले आप की माँ मेरी भी माँ है। आप छोड़ दीजिये उसको। में उसे मार देता हूं और आप उसे राम रसायन से उसे जिला दीजिये। दोनों का वचन पूरा हो जाएगा। माता अंजनी बोली बेटा ठीक है तथास्तु। हनुमानजी ने अंग नरेश को बाहर निकाला। राम जी ने बाण चला कर उन्हें मारा। अपना वचन पूरा किया। हनुमानजी ने श्री राम जय राम जय जय राम , कहते हुए गदा से स्पर्श किया। राजा जीवित हो उठकर खड़ा हो गया। हनुमानजी बोले - राजन अब आप जाइये। आप पहले से ज्यादा शक्ति सम्पन्न हो ऐश्वर्य से राज करोगे। यह राम रसायन का प्रभाव है। हमसे इस मंत्र की दीक्षा ले लीजिये और दक्षिणा यही है की अपने राज्य में इस राम रसायन का यज्ञ करते हुए चारो तरफ इस मंत्र का प्रचार करते हुए राम राज्य की स्थापना करे। उस दिन से नारदजी भी राम रसायन महत्व को समझ गए। हनुमानजी के राम रसायन की ऐसे महिमा है। आज के युग में इस राम रसायन का प्रचार किया जाए तो भ्र्ष्टाचार स्वतः दूर हो जाएगा। राम राज्य अर्थात सदविप्र समाज की स्थापना हो जाएगी। सभी सुखी होंगे सभी प्रसन्न होंगे। सभी आनन्दित होंगे। कबीर साहब भी इस राम रसायन की महिमा के विषय में कहते हैं -
हम न मरे मरिहैं संसार। हमको मिला सिरजनहारा।।
अब न मरौ मोर मन माना। सोइ मुआ जी जिन राम न जाना।।
साकट मरै संतजन जीवै। भर भर राम रसायन पीवै।।
हरी मरिहैं तो हमहुं मरिहैं। हरी न मरै हम काहे को मरिहैं।।
सम्पूर्ण आत्मज्ञान awakeningspiritual.blogspot.comपर मिलेगा।
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