Posts

chankya neeti चाणक्य निति (पुत्र और पिता को कैसे होने चाहिए )

                                                        (पुत्र और पिता को कैसे होने चाहिए )                                                         ते पुत्र पितुभरकता स पिता यस्तु फोसक;                                                      तन्मित्रं यस्य विश्वाश: सा भार्या यत्र नीरवती भवार्थ -  पुत्र वे है जो पिता के भक्...

राष्ट्र की आराधना। rastra ki aaradhna

Image
  सच्ची राष्ट्र की आराधना  गणतंत्र दिवस राष्ट्र की आराधना का पर्व है। भूखंड, उस पर  रहने वाले लोग, वहां की सभ्यता और संस्कृति मिलकर किसी राष्ट्र का निर्माण करती है, परंतु राष्ट्र की वास्तविक पहचान देश के नागरिकों से होती है। जिस देश के नागरिक जागृत होकर देश के योग क्षेम का ज्ञान रखते हैं, उस देश की एकता और अखंडता को कभी खतरा नहीं हो सकता। अतः गणतंत्र की सफलता के लिए राष्ट्र में विवेकपूर्ण जन का भागीदारी आवश्यक है। जिनमें सच्ची राष्ट्रभक्ति हो और जिन का चिंतन तुच्छ स्वार्थों के लिए नहीं, बल्कि राष्ट्रमंगल के लिए हो। इसलिए राष्ट्र की संप्रभुता की रक्षा का भार केवल सैनिकों पर नहीं, बल्कि सभी नागरिकों पर होता है। जब देश का हर नागरिक सजग प्रहरी होगा, तभी सच्चे अर्थ में राष्ट्र की आरधना हो सकेगी। यजुर्वेद में कहा गया है, हम राष्ट्र के लिए सदा जागृत रहे। संत स्वामी रामतीर्थ कहते हैं, कन्याकुमारी मेरे चरण, हिमालय मेरा मस्तक है। मेरे केसों से गंगा यमुना निकलती है। विंध्याचल मेरी मेखला है। पूर्वोत्तर और पश्चिमोत्तर मेरी भुजाएं तथा कोरोमंडल एवं मालाबार मेरे पांव हैं। मैं संपूर्ण भार...

मृत्यु भय। mrityu bhay

Image
मृत्यु भय गीता में भगवान श्री कृष्ण अर्जुन से कहते हैं की हे अर्जुन! इस संसार में जो जन्म लेता है वह एक न एक दिन मरण को अवश्य प्राप्त होता है। यद्यपि जो मरता है, उसका पुनर्जन्म भी होता है। क्योंकि यह दोनों क्रियाएं बहुत अधिक दुख देने वाली होती हैं इसलिए हर व्यक्ति अपने मरण के भय से भयभीत रहता है।व्यक्ति अपना संपूर्ण जीवन इसी इच्छा में बिता देता है कि उसका कभी मरण ही न हो, किंतु सहज भाव में ना तो जन्म मरण को रोका जा सकता है और ना ही व्यक्ति मरण के भय से मुक्त हो सकता है। हालांकि इस सबसे मुक्त होने का एक मार्ग अवश्य आचार्यों ने बताया है कि जो निरंतर भगवान नाम समरण में लीन रहता है, अवश्य एक दिन ऐसा आता है जब जन्म मरण के भयानक भय से बचकर मुक्ति प्राप्त कर लेता है। शास्त्रों के अनुसार जन्म से और मरण से भयभीत होने का मुख्य कारण यह है कि हम उस सच्चिदानंद के स्वरूप को भूल जाते हैं, जो ना कभी जन्म लेता है और ना ही मृत्यु पाता है। हम यह भी ध्यान नहीं रखते कि हम भी उसी परमात्मा के एक अंश है। इसलिए जब वह जन्मता और मरता नहीं है तो हम भी न मरते हैं और ना जन्म लेते हैं। हमारा जो यह पंच भूतआत्मक शरीर ...

वाणी का महत्व। vani ka mahtv

Image
   वाणी का महत्व जब वाणी ऋत, हित और मीत होती है तो सबको प्रिय लगती है। अर्थात समय अनुसार बोलना, दूसरों के हित के लिए बोलना और मीठा (मधुर) बोलना। जैसे सत्तू को पानी में घोलने से पहले छलनी में छान कर देख लेते हैं की कोई ऐसी अभक्ष्य वास्तु पेट में ना चली जाए जो विकार उत्पन्न न करें, उसी प्रकार बुद्धिमान व्यक्ति शब्द रूपी आटे को मंत्र रूपी छलनी से छानना जानते हैं। ऐसे ही पुरुष तथा स्त्रियों की वाणी में लक्ष्मी, शोभा और संपत्ति निवास करती है। महर्षि व्यास जी लिखते हैं कि इसलिए पूरी छानबीन करके सब प्राणियों की भलाई करने वाले को सत्य बोलना चाहिए। आप सत्य बोले, लेकिन वह कड़वा नहीं होना चाहिए। ऐसा सत्य बोलने से किसी का हृदय घायल नहीं होगा। अर्थात प्राणी मात्र के लिए हितकारी होगा। कुछ लोग मित भाषण का अर्थ कम बोलना समझते हैं। मीत शब्द संस्कृत की मांड धातु से बना है जिसका अर्थ है नाप तोल। इस प्रकार मीत का अर्थ है नापतोल कर बोलना ना आवश्यकता से अधिक बोला जाए। और ना ही इतना कम कि शब्दों के कहे का अर्थ ही न निकले। अथर्ववेद में कहा गया है कि मेरी वाणी के अग्रभाग में मधु रहे और जीभ की जड़ अर्थ...

अमृत और विष । नकारात्मक विचार से बचें

Image
                          अमृत और विष                                     पौराणिक कथा है कि देवताओं और असुरों के बीच संयुक्त प्रयास से जब समुद्र मंथन हुआ तो उसमें अमृत भी निकला और विष भी। अमृत तो देव और असुर दोनों पीना चाहते थे, मगर विष पीने के लिए कोई पक्ष तैयार न था। अंत में देवाधिदेव महादेव ने विषपान किया। महादेव ने उसे कंठ में ही रोक लिया। हृदय तक नहीं जाने दिया। हृदय असल में शरीर का वह महत्वपूर्ण अंग है जो रक्त को पहले मस्तिष्क में भेजता है, और मस्तिष्क आवश्यकतानुसार उसका वितरण पूरे शरीर को करता है। ऐसी ही परिस्थितियां प्रत्येक मनुष्य के समक्ष भी आती हैं। जब मनुष्य मां के गर्भ में पलता है तब वह अमृत पान करता है। उसमें सर्वप्रथम मेरुदंड बनता है और उसके बाद मस्तिष्क। जन्म के बाद से शिशु रोता है, क्योंकि मां के गर्भ में हो रहे अमृत पान से वह वंचित होने लगता है। नवजात शिशु जन्म लेते बाहरी घात प्रतिघात का शिकार होने लगता है। प्रारंभिक...
Image
  स्वामी रामतीर्थ    भारत की पावन भूमि पर अनेक महापुरुषों ने जन्म लिया है , जिन्होंने अपने उपदेशों द्वारा मानव जाती का कल्याण किया।  ऐसे ही एक  महापुरुष थे स्वामी रामतीर्थ , जिन्होंने अपने ज्ञान रूपी प्रकाश द्वारा संपूर्ण विश्व में फैले अज्ञान रूपी अंधकार को दूर किया। 22 अक्टूबर , 1873 को स्वामी रामतीर्थजी का जन्म हुआ। उनके पिता का नाम हीरानंद था। वे जब लगभग  एक वर्ष के हुए तो उनकी माता का निधन हो गया। उनके पिता हीरानंद की एक बहन धर्मदेवी थीं। उन्होंने रामतीर्थ का लालन - पालन किया। स्वामी रामतीर्थ के बचपन का नाम रामतीर्थ था। रामतीर्थ के गुरु का नाम  धन्नाराम था।वे उनसे बड़े प्रभावित थे।उनका  समस्त जीवन अत्यंत विलक्षण , प्रेरणादायक तथा स्फूर्तिदायक था। उन्होंने अद्वैत वेदांत को अति सरल करके , मनुष्य  मात्र के समक्ष इस प्रकार रखा की साधारण बुद्धि वाला मनुष्य  उससे लाभवन्तित हो सकता है। उन्होंने संसार को सत्य का मार्ग निर्मल और स्वच्छ रूप से दर्शाया। उन्होंने त्याग , आत्मविश्वास , कर्म , निष्ठां , निर्भयता , द्रढ़ता , एकता और  विश्वप्रे...

रामकृष्ण परमहंस

Image
रामकृष्ण परमहंस    रामकृष्ण परमहंस पोथी पंडित , ज्योतिषी या विचारक नहीं थे , बल्कि वे एक आत्मदर्शी पुरुष थे। उन्होंने आम व्यक्तियों की तरह मोहमाया में न फंसकर परम सत्य की प्राप्ति   स्वयं को मां  जगदम्बा के चरणों में समर्पित किया। मां जगदम्बा के निर्देश पर ही उन्होंने इस नश्वर संसार की भलाई हेतु अपना जीवन न्योछावर कर दिया। रामकृष्णजी का जन्म 17 फरवरी , 1836 को एक निर्धन परिवार में हुआ था। उनका माता - पिता द्वारा रखा नाम गदाधर था , लेकिन आगे  चलकर वे स्वामी रामकृष्ण परमहंस के नाम से प्रसिद्ध हुए। उनका बचपन बड़े दुखों में बिता , और वे अपना पूरा समय आराधना और जगत के उत्थान में  लगाने लगे। उनकी द्रिष्टि में ऊंच - नीच का कोई भेद नहीं था। उन्होंने किसी नए धर्म या पंथ की स्थपना नहीं की , वरन अपने जीवन के अनुभूत तथ्यों का ही वर्णन किया। स्वामी रामकृष्णजी का विवाह शारदामणि देवी के साथ हुआ था। रामकृष्णजी ऐसे महापुरुष थे , जिन्हे प्रत्येक स्त्री में मां  जगदम्बा के दर्शन होते थे। यहां  तक उन्होंने अपनी पत्नी को भी मां  जगदम्बा मानकर पूजन किया। रामकृ...

स्वामी दयानंद सरस्वती

Image
                    स्वामी दयानंद सरस्वती   भारत की पवित्र भूमि पर  अनेक महापुरुषों ने जन्म लिया है ,  जिनमे एक नाम स्वामी दयानन्द सरस्वती का भी है बात सन 1824 की है।  गुजरात राज्य में सदियों पहले एक जिला काठियावाड़ था।  काठियावाड़ में एक गांव था टंकारा।  यह एक छोटा सा गांव था।  इस गांव  में कृष्णलालजी तिवारी का परिवार रहता था।  एक दिन तिवारीजी की पत्नी ने एक अबोध बालक को जन्म दिया।   बालक के मुख पर एक अनोखा तेज व्याप्त था।  यही बालक आगे चलकर स्वामी दयानन्द सरस्वती  के नाम से प्रसिद्ध हुआ।  बालक के माता - पिता उसे प्यार  से मूलशंकर कहकर बुलाते थे।  मूलशंकर की बचपन में भगवान पर आस्था थी , लेकिन एक दिन जब उन्होंने एक चूहे को भगवान् की मूर्ति पर चढ़कर प्रसाद कहते हुए देखा तो उन्हें मूर्ति - पूजा व्यर्थ प्रतीत हुए।  सच्चे ज्ञान की प्राप्ति के लिए उन्होंने घर - बार छोड़ दिया।  उन्होंने समस्त भारत का भ्रमण किया , वन - वन घूमे , अनेक कष्ट सहे ,...

स्वामी विवेकानंद

Image
स्वामी विवेकानंद  स्वामी विवेकानंद  एक ऐसा नाम है  जिस पर समूची मानव जाती को गर्व है।  वे भारत में जन्मे और पले - बढे हैं तथा भारतीय संस्कृति एवं दर्शन में पारंगत हुए।  उन्होंने मानव जीवन के मर्म को समझा तथा धर्म के वास्तविक रहस्य को शोध कर उजागर  किया और धर्म की एक सर्व - स्वीकारीय परिभाषा तैयार की।  अमेरिका के शिकागो शहर में आयोजित सर्वधर्म सभा में विश्व के कोने - कोने से आए विभिन्न धर्म - प्रतिनिधयों तथा अमेरिका व् यूरोप के सचेतन नागरिको के समक्ष उन्होंने धर्म पर भाषण दिया और विश्व समुदाय के सामने यह साबित करके दिखा दिया की भारत की पवित्र भूमि पर  सनातन हिन्दू धर्म ही वह धर्म है ,जो समूची मानव जाती की समस्त समस्याओं का समाधान प्रस्तुत कर मानव सभ्यता को वास्तविक विकास के लक्ष्यों की और ले जा सकता है।  उस महापुरुष का जन्म 13 जनवरी 1863 को कोलकाता में हुआ था उनका बचपन का नाम नरेन्द्रनाथ था।  उनके पिता नाम विश्वनाथ दत्त और माता नाम भुनेश्वरी देवी था।  वह बड़ी विनम्र स्भाव की महिला थी।  स्वामी विवेकानंद जी शुरू से ही बड़े कर्म...

संत कबीर - sant kabir

Image
संत कबीर संत कबीर का जन्म आज लगभग  600 वर्ष  पूर्व हुआ था।  उस समय  में पाप अपनी चर्म सिमा पर पहुँच चूका था।  जाती - पाती , ऊंच - नीच , अन्धविश्वाश धर्म के नाम पर मार - काट आदि ने मानव जाती को अपने वश में किया हुआ था।  संत कबीर के माता - पिता का नाम तो अज्ञात है।  वे वाराणसी के पास लहरतारा तालाब के पास निरु नामक व्यक्ति को मिले।  वह  निःसंतान था।  उसकी पत्नी का  नाम नीमा था।  निःसंतान होने के कारण दोनों ने उस बालक का पालन पोषण का निश्चय किया। जुलाहा दंपति मुसलमान थे।  बालक का नामकरण किया गया और कबीर नाम रखा गया।  कबीरदास बालयवस्था से ही साधू - संतो की संगत करते थे , उन्हें उनके आचार - विचार बहुत भाते थे।  बाल्यावस्था से ही उन्हें भजन - कीर्तन में बहुत आनंद आता था।  रामानंदजी से कबीरदासजी बहुत प्रभावित थे। वे उन्हें  अपना गुरु बनाना चाहते थे।  रामानंदजी प्रतिदिन भोर होने से कुछ पहले स्नान करने गंगा के घाट पर जाते थे।  एक दिन कबीरदासजी  रात्रि में ही गंगा के घाट की सीढ़ियों पर...

भगवान महावीर

Image
भगवान महावीर  भारत की इस पावन भूमि   पर समय - समय पर अनेक महापुरुषों ने  जन्म लिया है।  जिन्होंने  सदुपदेशों द्वारा न केवल इस देश का बल्कि समूचे विश्व का कल्याण किया है।  ऐसे ही महापुरुष ने आज से लगभग ढाई हजार वर्ष पूर्व जन्म लिया था उनका जन्म बिहार की प्रसिद्ध नगरी वैशाली के निकट बसे कुंडग्राम (कुंडलपुर ) में हुआ।  उनके पिता राजा सिद्धार्थ थे तथा माता महारानी  त्रिशला देवी थीं।  जब महारानी त्रिशला देवी गर्भस्थ थीं  तब महाराज सिद्धर्थ के यहां धन - धान्य  की बृद्धि होने , लगी इसलिए उनका नाम वृद्धमान रखा गया।  आगे चलकर ये भगवान महावीर के नाम से प्रसिद्द हुए।  भगवान महावीर जैन धर्म के चौबीसवें एवं अंतिम  तीर्थकर थे।  उस समय समाज को अनेक बुराइयों ने आ घेरा था।  सर्वत्र , हिंसा छल - कपट , अन्याय , अत्याचार , पाखंड व् बाह्म आडंबरों का बोलबाला था।  चोरी , डकैती , लूट - खसोट अपनी   मानवता  जैसे लुप्त - सी हो गई थी।  इन विषम परिस्थितियों में मानव जाती के कल्याण हेतु भगवान महावीर...

gautam buddh vaani - गौतम बुद्ध वाणी

Image
भगवान गौतम बुद्ध   भारत की पवित्र भूमि पर महापुरुषों ने जन्म लिया है।  उन्हें महापुरुष इसलिए कहा गया , क्योकि वे सांसारिक सुखो में लिप्त नहीं हुए। उन्होंने संसार के सभी भोगो को  ठोकर मारी और एक साधारण मनुष्य से बढ़कर कष्ट सहे।  ससर के लोगो को सत्य , ज्ञान , अहिंसा व्  कलयाण का मार्ग दिखाया।  दिन - दुखियों की सहायता व्  प्रेरणा दी तथा अंत में ईश्वर के परमधाम को लौट गए।  ऐसे ही एक महान अवतार थे भगवान गौतम बुद्ध।  उनके बचपन का नाम  सिद्धार्थ था।  उनका जन्म प्रकृति की अनूठी गोद लुम्बिनी वन में हुआ था।  उनके पिता शुद्धोधन कपिलवस्तु के राजा थे।  उनकी दो माताए थी।  जन्म देने वाली माँ का नाम महामाया था , जबकि पालन - पोषण करने वाली मां का नाम प्रजावती था।  राजकुमार होने के कारण सिद्धार्थ को  सारे सुख प्राप्त थे। लेकिन उनका मन प्रायः उदास रहता था। ससर के सभी सुख सुख उन्हें तुच्छ लगते थे। एकांत में रहकर  वे न  क्या - क्या सोचा करते थे।  सिद्धार्थ के पिता महाराज शुद्धोधन ने जब अपने पुत्र को ...

saai baba anmol vichar - साईं बाबा अनमोल विचार

Image
  साई बाबा  अट्ठारहवीं शताब्दी के  उत्तरार्ध में भारतीयों पर अंग्रेजो  के अत्याचारों की अति  हुई थी , जिसे समस्त भारतवर्ष त्राहि - त्राहि कर रहा था।  अपने क्षुद्र स्वार्थ  खातिर अंग्रेजो ने भारतीओं को हिन्दू मसलमान में बाँट रखा था।  पुरे भारत में अराजकता का माहौल था।  अंग्रेजो की नीतियों ने सारे देशवासियों को बांट रखा था और स्वयं उनकी आपसी फुट का फायदा उठाकर राज कर रही थी।  तब एक महापुरुष ने जन्म लिया और मानव कल्याण के लिए अपना संपूर्ण जीवन होम कर दिया।  फ़क़ीर के रूप में रहते हुए उन्होंने मनुष्य को हिन्दू - मुसलमान से पहले एक - दूसरे का भाई होने का उपदेश दिया और जहां आम व्यक्ति की सामर्थ्य खत्म होती है , उससे कहीं आगे जाकर दिन - दुखीयों का दुःख - दर्द दूर किया।  श्री साईं बाबा के माता - पिता , उनके जन्म और बचपन संबंधी कोई प्रामाणिक जानकारी उपलब्ध नहीं है।  उन्हें सर्वप्रथम महाराष्ट्र के एक गाँव के मुखिया चांद पाटिल द्वारा जंगल में देखा गया।  चांद पाटिल वहां उनके चमत्कार देखकर हैरान रह गया।  गाँव वापिस आक...

guru nank dev anmol vichar - गुरु नानक देव अनमोल विचार

Image
गुरु नानक देव गुरु नानक देव सिक्म धर्म के संस्थापक थे।  वे सिक्खो  के पहले गुरु थे।  गुरु नानक देवजी का जन्म 15 अप्रैल , 1469 को लाहौर के तलवंडी नामक  गांव में हुआ था।  इस स्थान को नानक साहब कहते हैं।  यह स्थान लाहौर पाकिस्तान के दक्षीण - पशिचम में 65 किलोमीटर की दुरी पर है।  उनके  क्षत्रियों के वेदी वंश में जन्मे थे।  उनका नाम कालू मेहता था।  उनकी माता का नाम तृप्ता देवी था।  वे धार्मिक विचारों वाली  महिला थीं।  गुरु नानक देव बचपन से ही धर्म के पक्षधर रहे।  बचपन से ही उनकी रूचि खेल आदि में न होकर अध्यात्म में थी और वे अपना अधिकतर  समय उसी में व्यतीत करते थे।  साधु - संत की संगत उन्हें बहुत भाति थी। गुरु नानक देवजी एक समाज सुधारक थे , उन्होंने मानव जाती को शांति  और प्रेम का सन्देश दिया।  वे धार्मिक आडंबरों के खिलाफ थे।  गुरु नानक देवजी ने धर्म और  विरोधिक की कड़ी आलोचना की।  उन्होंने अपने उपदेशों द्वारा धर्म का प्रचार - प्रसार किया।  भाईचारे और मानव - कल्याण के लिए उन्हें कई कठि...

isa masih - ईसा मसीह अनमोल विचार

Image
ईसा मसीह  आज से लगभग दो हजार वर्ष पूर्व 25 दिसंबर को बैथलेहम ( फिलिस्तीन ) में एक यहूदी परिवार में एक बालक का जन्म हुआ जो आगे चल कर लोगो के लिए भगवान बन गया उस बालक का नाम ईसा मसीहा ( जीजस क्राइस्ट ) था।  उनके पिता का नाम युसूफ और माता का नाम मरियम था।  ईसा मसीह अत्यंत निर्धन परिवार  से थे।  उनके पिता बढ़ई का काम करके अपने परिवार का भरण पोषण करते थे।  जिस समय ईसा मसीह जन्म लिया उस समय यहूदीयों के राजा हेरोदस का यहुदियों के प्रति दासो सा व्यवहार था।  गरीब जनता पर इतने अत्याचार किये जाते थे की कोई राजा के विरुध्द आवाज न उठा सके।  इन परिस्तिथियों से ईसा मसीह भली भाती परचित थे।  उन्होंने अपना बढ़ई का पैतृक काम छोड़ दिया और मानव जाती के लिए आगे आए।  उन्होंने लोगो को सान्ति तथा सबको आपसी भाई चारे के साथ मिलकर रहने का  सन्देश दिया।  लोग भी ईसा मसीह की अहिंसा की बातों पर गौर करते धीरे - धीरे उनकी प्रसिद्धि पुरे राज्य में होने लगा।  लोग उनके भाषणों से प्रभावित होकर उन्हें यहूदियों का राजा कह कर पुकारने लगें किन्तु राज्य के कुछ धनिक शा...

anmol vaani mahattv - संतो की वाणियो का महत्त्व

Image
संतो की वाणियो का महत्त्व   भारत में समय - समय पर अनेको महापुरुषों , ऋषि - मुनियो  और संतो का अवतरण हुआ है।  हमारी भारतीय संस्कृति में संतो की अनमोल वाणियों का अपना अलग ही महत्त्व है।  उनकी वाणियां हमें जीवन जीने की कला सिखाती हैं , हमे जीवन की सच्चाइयों से रूबरू कराती हैं।  महँ संतो के क्रिया - कलाप और कथन में सफलता का अनोखा और चमत्कारी भाव छिपा होता है। उनके कथन और क्रिया - कलाप ,देश  काल , सभ्यता , संस्कृति , धर्म और मर्यादा आदि सभी को अपने प्रभाव से अभिभूत करने की अभिभूत करने क्षमता रखते हैं।  संतो के अनमोल वचनो  सफलता का अथाह समंदर ठाठें मारता रहता हैं।  उनको वचनो में क्रांति की ऐसी तीव्रतम ज्वाला प्रज्वलित रहती है , जो पल - भर में युगांतकारी परिवर्तन का भी आहवाहन कर बैठती है।  इन वचनो के अर्थपूर्ण भीषण ज्वालामुखी से निकले लावे को संसार का कोई भी बाँध नहीं सकता।  ऐसा ही कुछ अजीबो - गरीब है इन संतो की दिव्य वाणियों का प्रताप।  महानता का अर्थ ही तुच्छता से ऊपर उठना है।  ऐसा तभी होता है, जब जाती , वर्ण धर्म यहाँ तक ...

pavan tany sankt haran mangal murti rup - दोहा - पवन तनय संकट हरन ; मंगल मूरती रूप राम लखन सीता सहित। हृदय बसहु सुर भूप

Image
दोहा - पवन तनय संकट हरन ; मंगल मूरती रूप।  राम लखन सीता सहित।  हृदय बसहु सुर भूप।। हे पवनपुत्र ! आप सभी संकटो का हरण करने वाले हैं , आप मंगल मूरत वाले हैं।  मेरी प्रार्थना है की आप श्रीराम , श्री जानकी एवं लक्ष्मणजी सहित सदा मेरे हृदय में निवास करें।    तुलसीदासजी कह रहे हैं - हे पवन तनय आप तो हर संकट को हर लेने वाले हो अप्रतिम शरीरिक क्षमता , मानसिक दक्षता व् सर्वविध चारित्रिक उचाईयों के उत्तुंग शिखर  हो आप के सद्रश मित्र , सेवक , सखा ,कृपालू वह भक्त परायण मिलना असंभव है।  आप की मंगल की ही  मूरत हो , आप से अमंगल की संभावना नहीं है।  हर समय मंगलमय हो।   मंगलम भगवान् विष्णु , मंगलम गरुड़ध्वजा ,   मंगलाय पुंडरीकाक्ष , मंगलाय तनो हरि।  भगवान विष्णु मंगल हैं उनका वाहन भी मंगल है पुण्डरीकाक्ष भी मंगल  है।  सब मंगल ही है।  इसी तरह पवन तनय  आप भी मंगल ही हैं।  आप का रूप मंगलमय है।  आप से अमंगल संभव नहीं है।  अतः अब आप अपने ह्रदय में बसे राम , लखन सीता सहित हमारे ह्रदय में निवास करें।  राम लख...

tulsidas sada hari chera - तुलसीदास सदा हरि चेरा कीजै नाथ हृदय महं डेरा

Image
तुलसीदास सदा हरि चेरा।  कीजै नाथ हृदय महं डेरा।। हे मेरे नाथ हनुमानजी! तुलसीदास  सदा ही श्रीराम के  दास हैं , इसलिए आप उनके हृदय में सदा निवास कीजिए।  हनुमान चालीसा तुलसीदासजी द्वारा रचित अपने गुरु की वंदना है , स्तुति है।  तुलसीदासजी भक्त है , परमात्म भाव से लीन रहना उनका स्वभाव है।  और जो परमात्म भाव में लीन रहता है उसके मुख जो निकलता है उसे आप कविता कहो या श्लोक कहो।  कविता कहना लक्ष्य या उदेश्य नहीं।  वह तो अंतः प्रेरित स्वतः प्रस्फुटिक परमात्मा स्तुति  है जिसकी ऊर्जा से वह ओत - प्रोत है।  यह ऊर्जा उनका उद्धार कर सकती है और उनके माध्यम से उनके शिष्यों का।  हनुमान  चालीसा का हर एक चौपाई ऊर्जा का श्रोत है पर केवल उनके लिए जो गुरु के माध्यम से इसे पाने में सक्षम है।  जैसे विघुत का नियम है की ग्राहक अपनी आवश्यकता अनुसार आवश्यक ट्रांसफार्मर से ही विघुत प्राप्त कर सकता है।  एक छोटा सा बल्ब यदि एक लाख वाट ऊर्जा से जोड़ दिया जाए तो वह बल्ब तो नष्ट होगा ही , उसके साथ - साथ विघुत उपकरण भी नष्ट हो जाएगा।  जिससे घर में आग...

jo yah padai hanuman chalisa - जो यह पढ़ै हनुमान चालीसा होय सिद्धि साखी गौरीसा - hanuman chalisa padne se kya hota hai

Image
  जो यह पढ़ै हनुमान चालीसा।  होय सिद्धि साखी गौरीसा।। गौरी के पति शंकर भगवान् ने यह हनुमान चालीसा लिखवाया इसलिए वह साक्षी हैं की जो इसे पढ़ेगा उसे निशचय ही सिद्धि प्राप्त होगी।  जो इस हनुमान चालीसा को जिस तरह मैंने बताया समझकर बूझकर पाठ करता है, होही सिद्धि साखी गौरीसा , वह साधक सिद्ध हो जाता है।  यह गौरीसा कह रहे हैं गौरीसा यानि गौरी के ईस।  यह स्थान ( सद्गुरु आश्रम डुमरी पड़ाव गंगा तट उत्तर प्रदेश ) गौरी का क्षेत्र है।  गौरी का ईस यहीं है।  वही कह रहा है , वह सिद्ध हो जाएगा। ;हमारे जीवन का सारा दुःख अपना है।  हम हर चीज को अपने में बांधना चाहते हैं।  यहीं से दुःख  शुरू होता है।  सारा दुःख सीमाओं का ही दुःख है।   में पूरा नहीं हूं, अधूरा हूं।  मुझे पूरा होने के लिए न मालूम कितनी - कितनी चीजों की जरुरत है।  जैसे - जैसे चीजे मिलती जाती है, मैं पन का विस्तार होता जाता है  अधूरा पन कायम ही  रहता है।  सब कुछ मिल जाने पर भी मैं अधूरा ही रह जाता है।  जब तक मई किसी भी काम म...

jo sat bar path kar koi - जो सत बार पाठ कर कोई छूटहि बंदी महा सुख होइ

Image
  जो सत बार पाठ कर कोई।  छूटहि बंदी महा सुख होइ।। जो व्यक्ति शुद्ध हृदय दसे प्रतिदिन इस  हनुमान चालीसा का सौ बार  पाठ करेगा वह सब सांसारिक बन्धनों  से मुक्त हो  जाएगा और उसे परमानन्द की प्राप्ति होगी।   यदि आप को बहुत बड़ा कष्ट है , दुःख है , बन्धन है तो गुरु की आज्ञा लेकर शुक्ल पक्ष के मंगलवार को सुबह गंगा में स्नान कर  हनुमान जी को अखण्ड दीप जला दे घी का या तील के तेल का।  सुबह  शत बार इसका पाठ करले उसमे चार घंटा लगाता है।  तो आप किसी भी तरह के बन्धन से मुक्त हो जाते हैं।  संकट से मुक्त हो जाते हैं।  यदि हनुमानजी का मंदिर हो गंगा तट हो पीपल का वृक्ष हो तुलसी का पेड़ हो और गाय हो तो समझ लें वहां मंगल ही मंगल है।  यह सब इस जगह का जिन्दा ब्रह्म कहा गया है।  रामानंद जी ने इन्हे पृथ्वी के जीवित ब्रह्मा स्वरूप कहा है।  एक छोटी से विधि और बता रहें हैं।  यदि आप का मनोकामना पूर्ण न हो रही हो या कोई मुश्किल आन पड़ी हो तो किसी भी शुक्ल पक्ष का शुभ दिन देख कर मंगलवार से इक्कीस दिन तक एक छोटा सा अनुष्ठान करे इक्...