रामकृष्ण परमहंस

रामकृष्ण परमहंस 

 

रामकृष्ण परमहंस पोथी पंडित , ज्योतिषी या विचारक नहीं थे , बल्कि वे एक आत्मदर्शी पुरुष थे। उन्होंने आम व्यक्तियों की तरह मोहमाया में न फंसकर परम सत्य की प्राप्ति   स्वयं को मां  जगदम्बा के चरणों में समर्पित किया। मां जगदम्बा के निर्देश पर ही उन्होंने इस नश्वर संसार की भलाई हेतु अपना जीवन न्योछावर कर दिया। रामकृष्णजी का जन्म 17 फरवरी , 1836 को एक निर्धन परिवार में हुआ था। उनका माता - पिता द्वारा रखा नाम गदाधर था , लेकिन आगे  चलकर वे स्वामी रामकृष्ण परमहंस के नाम से प्रसिद्ध हुए। उनका बचपन बड़े दुखों में बिता , और वे अपना पूरा समय आराधना और जगत के उत्थान में  लगाने लगे। उनकी द्रिष्टि में ऊंच - नीच का कोई भेद नहीं था। उन्होंने किसी नए धर्म या पंथ की स्थपना नहीं की , वरन अपने जीवन के अनुभूत तथ्यों का ही वर्णन किया। स्वामी रामकृष्णजी का विवाह शारदामणि देवी के साथ हुआ था। रामकृष्णजी ऐसे महापुरुष थे , जिन्हे प्रत्येक स्त्री में मां  जगदम्बा के दर्शन होते थे। यहां  तक उन्होंने अपनी पत्नी को भी मां  जगदम्बा मानकर पूजन किया। रामकृष्णजी की छत्र - छाया में अनेक शिष्यों ने ज्ञान रूपी प्रकाश की प्राप्ति की। उनके शिष्यों में एक महान ज्ञानी शिष्य स्वामी विवेकानंदजी भी हुए जिन्होंने देश - विदेश जाकर अपने गुरु द्वारा दिए गए ज्ञान का प्रचार - प्रसार किया। स्वामी विवेकानंदजी रामकृष्ण परमहंसजी के परम शिष्य थे। रामकृष्णजी को अपने इस मेधावी शिष्य पर गर्व था। विवेकानंदजी भी अपने गुरु के प्रति पूर्ण समर्पित थे। उन्होंने अपने गुरु के नाम पर रामकृष्ण परमहंस मठ की स्थापना की और 1897 में रामकृष्ण मिशन की स्थपना की। रामकृष्ण परमहंस एक महान संत थे। उन्होंने लोगो को सत्य और ज्ञान का मार्ग दिखाया और जन -जन मे मानवता का सन्देश फैलाया। रामकृष्णजी की वाणी को सभी धर्मो का सार कहा गया। उन्होंने  समाज को एक नई चेतना प्रदान की। भारत के राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने लाइफ ऑफ रामकृष्ण नामक रचना में लिखा है - श्री रामकृष्णजी जीवन धर्म का आदर्श उदाहरण हैं , उनके जीवन से प्रेरणा लेकर हम ईश्वर से साक्षत्कार का सकते हैं। अपनी मृत्यु के समय संसार के कल्याण के लिए उन्होंने अपनी सारी शक्तियां अपने परम शिष्य स्वामी विवेकानंदजी को सौंप दी। इस तरह एक महान संत ने अपने ज्ञान द्वारा मानव कल्याण किया। ऐसे महान संत को हमारा बारम्बार प्रणाम। 

1- जब तक मनुष्य मन से सब कुछ त्याग नहीं देता तब तक भगवान को पा नहीं सकता।  

2- वही सच्चा वीर है जो संसार माया के बिच रहकर भी पूर्णता को प्राप्त करता है। 

3- आचार्य को सभी अवस्थाओं का स्वयं अनुभव प्राप्त करना होता है।  

4- लज्जा , घृणा और भय - तीनो के रहते ईश्वर लाभ नहीं हो सकता।  

5- मन के हाथी को विवेक के अंकुश से वश में रखो। 

6- सज्जनो का क्रोध जल पर खींची गई रेखा के समान है , जो शीघ्र विलुप्त हो जाती है।  योगी मन को वश में रखता है , मन के वश में नहीं होता। 

7- जीवन  में आए अवसरों को व्यक्ति साहस तथा ज्ञान की कमी के कारण खो देता है।  अज्ञान के कारण वह अवसर का महत्त्व नहीं समझ पाता।  

8- ईश्वर जब मनुष्य देह धारण करके इस संसार में आते हैं , तब उन्हें मनुष्य के समान ही सुख - दुःख का भोग करना पड़ता है।  उन्हें मनुष्य के समान ही परिश्रम और प्रयत्न करना पड़ता है तथा सभी विषयों में पूर्णता प्राप्त करनी पड़ती है।  

9- अत्यंत व्याकुल होकर ईश्वर को पुकारो।  फिर देखो, वह कैसे प्रकट नहीं होते।  

10- हम ईश्वर को साक्षात् देख सकते हैं।  हम जिस प्रकार मित्रों के साथ बैठकर गप्पें लड़ाते रहते हैं , उससे भी स्पष्ट रूप से ईश्वर से बातचित कर सकते हैं।  

11- वही ईश्वर , जिसकी तू सेवा करता है, तेरी जरूरतें पूरी करेगा।  उसने तुझे इस दुनिया में भेजने से पहले तेरे भरण - पोषण का इंतजाम कर दिया है।  

12- जिस समय ईश्वरीय प्रेम की तरंगे बिना किसी निमित्त , मनुष्य के मन में उठने लगती है , उस समय उन्हें हजार प्रयत्न करने पर भी पीछे नहीं हटा सकते।  

13- सबसे पहले ईश्वर की प्राप्ति करनी चाहिए।  ईश्वर ही साध्य हैं।  इसके बाद दूसरे काम करने चाहिए।  जब तक ईश्वर का साक्षात्कार नहीं होता , तब तक इस बात का मानव को ज्ञान नहीं होता की वे भक्त के लिए विभिन्न रूप और भाव में व्यक्त होतें हैं।  ईश्वर के चरण कमल में लीन होने वाला ही इस ससर में धन्य है , इस शुक्र योनि में भले ही उतपन्न हो , पर उसका उध्दार अवश्य होता है।  

14-  पानी में डूबा दिए जाने पर ऊपर आने के लिए जैसे प्राण व्याकुल हो उठते हैं , उसी प्रकार यदि ईश्वर दर्शन के लिए हो जाए तभी उसका  दर्शन हो सकता है।  

15- सती का पति के प्रति प्रेम , माता का बालक के प्रति प्रेम और विषयी मनुष्य का विषय के प्रति प्रेम , इन तीनो प्रेमों को एकत्रित करके ईश्वर की और लगा देने से उसका दर्शन हो सकता है।  

16- सच्चे और सरल हृदय से प्रार्थना कर , तेरी प्रार्थनाएं अवश्य सुनी जाएंगी। 


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