chankya neeti चाणक्य निति (पुत्र और पिता को कैसे होने चाहिए )

                                                        (पुत्र और पिता को कैसे होने चाहिए )

 

                                                      ते पुत्र पितुभरकता स पिता यस्तु फोसक;

                                                     तन्मित्रं यस्य विश्वाश: सा भार्या यत्र नीरवती

भवार्थ -  पुत्र वे है जो पिता के भक्त हैं पिता वही है जो पुत्रो का पालन पोषण करता है मित्र वही है जिसका विश्वाश  किया जा सके और स्त्री वही है जिससे सुख की प्राप्ति होती है | 

व्याख्या - यहां पुत्र का पिता का भक्त होने से तात्पर्य यही है की जो तन मन से  पिता की सेवा करें उसकी आज्ञा का पालन करें | माता पिता के प्रति पूर्ण रूप से समर्पित हो वही वास्तव में पुत्र कहलाने का अधिकारी है इसी प्रकार चाणक्य कहते हैं की पिता भी वही है जो तन मन धन से पुत्र का लालन पालन कर पड़ा लिखाकर उसे योग्य बनाये तथा उसका जीवन सुधारे  पैदा करके छोड़ देने वाला व्यक्ति पिता कहलाने का अधिकारी नहीं है |  संतान का ठीक से लालन पालन न करने वाला व्यक्ति, अपने फर्ज को ठीक से अंजाम न देने  वाला व्यक्ति अपने पुत्र से सेवा सम्मान की अपेक्षा न करे | इसी प्रकार हर कोई किसी का मित्र नहीं होता | मित्र वही होता है जिस पर व्यक्ति का पूर्ण विश्वास हो जो सुख दुःख में सामान रूप से साथ दे |  घर में स्त्री  का होना पत्नी सुख नहीं कहा जा सकता यदि वह स्त्री पति की  सेवा करने वाली न हो,  पति के लिए कलेश उत्पन्न्न करने वाली ,उसकी आज्ञा न मानने वाली ,जानबूझकर पति की इच्छा और आज्ञा के विरुद्ध कार्य करने वाली स्त्री पति के लिए जंजाल  हो सकती है सुख देने वाली पत्नी नहीं |

  

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