स्वामी विवेकानंद

स्वामी विवेकानंद 


स्वामी विवेकानंद  एक ऐसा नाम है  जिस पर समूची मानव जाती को गर्व है।  वे भारत में जन्मे और पले - बढे हैं तथा भारतीय संस्कृति एवं दर्शन में पारंगत हुए।  उन्होंने मानव जीवन के मर्म को समझा तथा धर्म के वास्तविक रहस्य को शोध कर उजागर  किया और धर्म की एक सर्व - स्वीकारीय परिभाषा तैयार की।  अमेरिका के शिकागो शहर में आयोजित सर्वधर्म सभा में विश्व के कोने - कोने से आए विभिन्न धर्म - प्रतिनिधयों तथा अमेरिका व् यूरोप के सचेतन नागरिको के समक्ष उन्होंने धर्म पर भाषण दिया और विश्व समुदाय के सामने यह साबित करके दिखा दिया की भारत की पवित्र भूमि पर  सनातन हिन्दू धर्म ही वह धर्म है ,जो समूची मानव जाती की समस्त समस्याओं का समाधान प्रस्तुत कर मानव सभ्यता को वास्तविक विकास के लक्ष्यों की और ले जा सकता है।  उस महापुरुष का जन्म 13 जनवरी 1863 को कोलकाता में हुआ था उनका बचपन का नाम नरेन्द्रनाथ था।  उनके पिता नाम विश्वनाथ दत्त और माता नाम भुनेश्वरी देवी था।  वह बड़ी विनम्र स्भाव की महिला थी।  स्वामी विवेकानंद जी शुरू से ही बड़े कर्मनिष्ठ व्यक्ति थे।  अपने कॉलेज के समय में वह समाजिक कार्यो में भाग लेते थे  इसलिए वह समाजिक कार्यकर्ता के रूप में प्रसिद्द थे।  विवेकानंद जी ने 23 वर्ष की अल्प आयु में ही गृह त्याग दिया और धर्म की खोज में निकल पड़े परन्तु बिना गुरु के ज्ञान प्राप्त नहीं होता अतः विवेकानंद जी ने रामकृष्ण परमहंस जी को अपना गुरु बनाया।  इस समय उन्हें विवेकानंद नाम प्राप्त हुआ और वह इसी नाम से पुरे संसार में प्रसिद्ध हुए।  स्वामी विवेकानंद जी ने जन - जन में सत्य प्रेम और मानवता का सन्देश फैलाया।  उनकी द्रिष्टि में प्रत्येक मानव समान था।  वह उच्च नीच जात - पात को नहीं मानते थे।  उन्होंने अपना सारा जीवन जन कर्यो में लगाया।  स्वामी जी का भाषण इतना पराभव शाली होता था। की श्रोता मन मुग्ध हो जाते थे।  स्वामी जी सच्चे सन्यासी थे इसलिए उन्होंने धन एकत्रित करने और धर्म बेचने के लिए साफ़ मना कर दिया।  उन्होंने सम्पूर्ण विश्व को ज्ञान ,  श्रध्दा और  पवित्रता का उपदेश दिया।  उन्होंने गरीब जनता के हितो के लिए अनेको  कार्य किये इसी उदेश्य से उन्होंने सन 1897 में रामकृष्ण मिशन की स्थपना की।  स्वामी जी द्वारा एक मठ भी स्थापित किया गया जो रामकृष्ण मठ कहलाया।  स्वामी जी धर्म सत्य, और प्रेम का मार्ग कभी नहीं छोड़ा और अपने उपदेशो में भी लोगो को इन चीजों को अपनाने को कहा।  अहंकार को उन्होंने मनुष्य का सबसे बड़ा शत्रु माना उसकी प्रतिभा से सम्पूर्ण विश्व प्रचित था।  उनके दिये  गए धर्म उपदेश न्याय के पथ चलने की प्रेरणा देते हैं।  जुलाई 1902 को स्वामी जी ने 40 वर्ष की अवस्था में महा समाधि लेली वह आज नहीं है परन्तु उनके द्वारा दिए गए उपदेश आज भी सम्पूर्ण विश्व में ज्ञान का प्रकाश फैला रहा है।

1- निर्बलता ही सब पापों का जड़ है।  

2- उठो , जागो , तब तक रुको नहीं जब तक लक्ष्य पर न पहुंच जाओ।  

3- यदि तुम अपनी ही मुक्ति के लिए प्रयत्न करो तो नरक में जाओगे।  तुम्हे दुसरो की मुक्ति की प्रयास करना चाहिए।  

4- संसार में रहो किन्तु संसार से माया मोह से निर्लिप्त रहो।  

5- कार्य तुच्छ नहीं।  यदि मनपसंद कार्य मिल जाए तो मुर्ख भी उसे पूरा कर सकता है किन्तु बुद्धि मान पुरुष वही जो प्रत्येक कार्य को  पाने लिए रुचिकर बना ले।  

6- जिसने स्वयं को वश में करलिया , संसार की कोई भी शक्ति विजय को पराजय में नहीं बदल सकती।  

7- अगर अपने किसी जरूरतमंद की सेवा की तो धन्यवाद के पात्र आप नहीं वह जरूरतमंद व्यक्ति है क्योकि उसने आप को सेवा का मौका दिया।  

8- तुम्हे जो शिक्षा मिल रही उसमे कुछ अच्छाइयां अवश्य है , पर उसमे एक भयंकर दोष है जिससे यह सब अच्छी बाते दब गई है।  सबसे पहली बात यह है उसमे मनुष्य बनाने की शक्ति नहीं है।  वह शिक्षा नितांत भवनाविहीन है।  भवनाविहीन शिक्षा मृत्यु से बुरी है।  

9- कुछ मत मांगो , बदले में कुछ मत चाहो।  तुम्हे जो देना है , दे दो , वह तुम्हारे पास लौटकर आएगा , पर अभी उसकी बात मत सोचो।   वह बर्धित होकर वापस आएगा , पर ध्यान उधर ना जाना चाहिए।  तुममें केवल देने की शक्ति है।  दे दो , बस बात वहीं पर समाप्त हो जाती है। 

10- जो शास्त्रों को पढ़कर उनका अपने जीवन में आचरण नहीं करते उन पर यह बात पूरी तरह लागू होती है , यथा खरशचनंदन भारवाही , भरस्य वेत्ता न तू चन्दनस्य , जिस प्रकार गधा अपनी पीठ पर लाडे चन्दन के भार को जानता है।  उसके मूल्य को नहीं।  अर्थात ज्ञान के  मूल्य को वह नहीं जानता।  

11- अगर तुम्हारा अंहकार चला गया है तो किसी और धर्म - पुस्तक की एक पंक्ति भी बांचे बगैर , किसी भी मंदिर में पैर रखे बगैर , तुमको जहाँ बैठे हो वहीं मोक्ष प्राप्त हो जाएगा।  

12- पहले हम स्वम देवता बने और फिर दुसरो के देवतका बनने में सहायता दें।  बनो और बनाओ , बस यही हमारा मंत्र होना चाहिए।  

13- मेरे साहसी युवको ! यह विश्वास रखो की तुम्हीं सबकुछ हो , महान कार्य करने के लिए इस धरती पर आए हो।  गीदड़ - घुड़कियों से भयभीत न हो जाना , चाहे वज्र भी गिरे तो भी निडर हो खड़े हो जाना और कार्य में लग जाना।  

14- आज हमारे देश को जिस चीज की आवश्यकता है , वह है लोहे की मांसपेशियां और फौलाद के स्नायु - प्रचंड इच्छाशक्ति , जिसका अवरोध दुनिया की कोई ताकत न करे सके , जो जगत के गुप्त तथ्यों और रहस्यों को भेद सके और जिस उपाय से भी हो अपने  लक्ष्य की पूर्ति करने में समर्थ , हो फिर चाहें समुद्र तल में ही क्यों न जाना पड़े, साक्षात् मृत्यु का  ही सामना क्यों न करना पड़े।  

15- यदि तुम लगातार चौदह वर्ष तक अखंड रूप से  कठोरता के साथ सत्य का पालन कर सको , तो तुम जो कुछ कहोगे , लोग उसी पर पक्का विश्वाश कर लेंगे।  

16- जब तक किसी देश के नागरिकों में राष्ट्र के लिए बलिदान होने की प्रेरणा नहीं होगी तब तक उस देश का विकाश नहीं होगा।  

17- यह संसार कायरों के लिए नहीं है।  भागने का प्रयत्न मत करो।  सफलता और असफलता की परवाह मत करो।

18- हम जितना ध्यान साध्य पर देते हैं , उससे अधिक  साधना पर दे तो सफलता अवश्य मिलेगी।  साधन जब तक उपयुक्त ठीक तथा बलशाली न होगा , तब तक ठीक परिणाम मिलना असंभव है।  

19- क्या तुम पर्वतकाय विघ्न - बाधाओं को लांघकर कार्य करने को तैयार  हो ? यदि सारी दुनिया हाथ  में  नंगी तलवार लेकर तुम्हारे विरोध में खड़ी हो जाए , तो भी क्या तुम जिसे सत्य समझते हो , उसे पूरा करने का साहस करोगे ? यदि तुम्हारे पत्नी - पुत्र तुम्हारे प्रतिकूल हो जाएं , भाग्य लक्ष्मी तुमसे रूठकर चली जाए , नाम कीर्ति भी तुम्हारा साथ छोड़ दे , तो भी तुम उस सत्य से अलग तो न होंगे ? फिर भी उससे लगे रहकर अपने लक्ष्य की और सतत बढ़ते रहोगे न ? 

20- जब तक नारियों का उत्थान तथा जनता को जगाने का काम नहीं किया जाएगा तब तक राष्ट्र - कल्याण की बात करना व्यर्थ होगा। 

21- स्त्रियां जब शिक्षित होंगी , तभी तो उनकी सन्तानो द्वारा देश का मुख उज्जवल होगा।  

22- स्त्रियों की स्थिति में सुधार न होने तक विश्व के कल्याण का कोई मार्ग नहीं है।  किसी पक्षी का केवल एक पंख के सहारे उड़ना नितांत असंभव है।  

 


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