gautam buddh vaani - गौतम बुद्ध वाणी

भगवान गौतम बुद्ध 

 भारत की पवित्र भूमि पर महापुरुषों ने जन्म लिया है।  उन्हें महापुरुष इसलिए कहा गया , क्योकि वे सांसारिक सुखो में लिप्त नहीं हुए। उन्होंने संसार के सभी भोगो को  ठोकर मारी और एक साधारण मनुष्य से बढ़कर कष्ट सहे।  ससर के लोगो को सत्य , ज्ञान , अहिंसा व्  कलयाण का मार्ग दिखाया।  दिन - दुखियों की सहायता व्  प्रेरणा दी तथा अंत में ईश्वर के परमधाम को लौट गए।  ऐसे ही एक महान अवतार थे भगवान गौतम बुद्ध।  उनके बचपन का नाम  सिद्धार्थ था।  उनका जन्म प्रकृति की अनूठी गोद लुम्बिनी वन में हुआ था।  उनके पिता शुद्धोधन कपिलवस्तु के राजा थे।  उनकी दो माताए थी।  जन्म देने वाली माँ का नाम महामाया था , जबकि पालन - पोषण करने वाली मां का नाम प्रजावती था।  राजकुमार होने के कारण सिद्धार्थ को  सारे सुख प्राप्त थे। लेकिन उनका मन प्रायः उदास रहता था। ससर के सभी सुख सुख उन्हें तुच्छ लगते थे। एकांत में रहकर  वे न  क्या - क्या सोचा करते थे।  सिद्धार्थ के पिता महाराज शुद्धोधन ने जब अपने पुत्र को संसार से विरक्त होते पाया तो  उन्होंने उसका विवाह यशोधरा नामक एक सुन्दर राजकुमारी से  करवा दिया।  यशोधरा से सिद्धार्थ को पुत्र - रत्न की प्राप्ति हुई , परन्तु वे प्रसन्न न रह सके।  वे सत्य व् ज्ञान मार्ग खोजना चाहते थे तथा संसार के लोगो का कल्याण करना चाहते थे।  एक दिन सिद्धार्थ ने तपस्वी का जीवन बिताने का निश्चय किया और अर्धरात्रि को राजमहल के सभी सुखो को ठोकर मारकर वन की और चल दिए।  वे सिद्धार्थ से गौतम बुद्ध  गए।  उन्होंने लोगो को सत्य ,ज्ञान , दया , अहिंसा व् कल्याण का मार्ग दिखाया।  बोधि वृक्ष के निचे उन्हें दिव्य ज्ञान की प्राप्ति हुई।  कई वर्षो तक उन्होंने कठिन तपस्या की , उनकी इसी कठिन तपस्या द्वारा उनके मुखमण्डल पर एक तेज विद्धमान हो गया था।  भगवान् बुद्ध ने मानव को दया , स्नेह और करुणा अपनाने को कहा और दुर्गुणों को सदा स्वयं से दूर रखने को कहा , उन्होंने पशु - पक्षियों पर दया करने का उपदेश दिया।  जाती - पाती का उन्होंने खंडन किया और प्रेम को सबसे बड़ी शक्ति बताया।  भगवान बुद्ध ने अपने प्रेम - बंधन में सभी को बाँध लिया , अपने समय के महान सम्राट अशोक भी बौद्ध धर्म से बहुत प्रभावित हुए।  भगवान बुद्ध दया और प्रेम की मूर्ति थे।  क्रोध तो उनको कभी छू भी नहीं पाया।  उन्होंने अपना सम्पूर्ण जीवन मानव कल्याण में  बिताया। उनके उपदेश इतने प्रभावशाली थे की सुनने वाले मंत्रमुग्ध हो जाते थे। उनके उपदेशो का भारतवर्ष पर ही नहीं पुरे  विश्व पर प्रभाव पड़ा।  जापान , थइलैंड और चीन जैसे वैज्ञानिक विचारधारा वाले देश भी भगवान्  बुद्ध के परम अनुयायी हैं।  भगवान बुद्ध जैसा विरला पुरुष हजारों वर्षो में एक बार ही जन्म लेता है। हमें उनके दिखाए सदमार्ग पर चलकर अपना जीवन सफल बनाना चाहिए।   

1- आदमी को किसी भी वस्तु के प्रति आसक्त नहीं होना चाहिए वस्तु विशेष की हानि से दुःख पैदा होता है।  जिन्हे न किसी से प्रेम है और न ही घृणा व बंधन मुक्त है।  

2- जिस प्रकार लोहे से उतपन्न हुआ जंग लोहा को ही खा जाता है उसी प्रकार पापी के अपने कर्म ही उसे दुर्गति तक ले जातें हैं।  

3- जो निर्दोष और अहानिकर प्राणियों को कष्ट देता है वह  भोगता है। 

4- जिस प्रकार सुनार क्षण  - क्षण करके थोड़ा - थोड़ा करके चांदी के मैल को दूर कर देता है उसी प्रकार बुद्धिमान आदमी को चाहिए की क्षण - क्षण कर के थोड़ा - थोड़ा करके वह अपने चिंत्त के मैल को दूर कर दे।  

5- सबसे पहले आपने आप को ठीक मार्ग पर लगाएं तब दुसरो को उपदेश दें। बुद्धिमान आदमी को चाहिए की कोई ऐसा अवसर न दें जिससे दूसरे ही उसे कुछ कह सकें।  

6- जागने वाले की रात लम्बी होती है।  थके आदमी का मार्ग लम्बा  है और धर्म न जानने वालो व्यक्ति का जीवन  लम्बा होता है।  यदि आदमी को अपने से श्रेष्ठ या अपने समान साथी न मिले तो उसे अकेले हीं अपने जीवन पथ पर आगे बढ़ना चाहिए। मुर्ख आदमियों की संगति अच्छी नहीं होती।  

7- जिसमे सत्य है , शील है , करुणा है , संयम है, शुद्धि है तथा बुध्दि है वही वास्तविक बुद्ध है।  

8- जाती पाती का भेद भाव त्याग दो।  सभी मनुष्य एक ही सृष्टिकर्ता की संताने हैं।  

9- सभी से प्रेम करो।  मीठा बोलो।  कठोर वचन ह्रदय को कष्ट पहुंचते हैं।  दुःख की उत्पत्ति पाप से होती है।  

10- मानव को अपनी शक्ति का प्रयोग समाज के हित मे करना चाहिए। 

11- वह वीर नाही , जो हजारो को जीतता है , वह वीर जो मन को जीतता है।  

12- जो जाग गया है वह भय मुक्त है वह बुद्ध बन गया है।  वह अपनी सारी चिंताओं को अपनी महत्वकांक्षाओं और उसमे दुखो का भी निस्तरता जानता है।  

13- जिस प्रकार महासागर का केवल एक स्वाद नमक स्वाद होता है उसी प्रकार मेरे मत का केवल एक ही सुवास है और वह है मुक्ति सुवास।  

14- जिस तरह खौलते पानी में अपना प्रतिबिंब दिखाई नहीं दे सकता इसी तरह क्रोधी मनुष्य यह नहीं समझ सकता की उसकी भलाई किसमें है।  

15- मंगलमयी कोमल वाणी वाला मनुष्य प्राणियों को आनंदित करता है।  

16- शील ( सदाचार ) की सुगंध चंदन तगर और मल्लिका सबकी सुंगध से बढ़कर है।  धुप और चंदन की सुंगंध कुछ ही दूर तक जाती है किन्तु शील की सुगंध बहुत दूर तक जाती है।  

17- जो आदमी अत्यंत सहनशील होता है , वह अपने आपको उस स्थिति में पहुंचा देता है जहाँ उसके शत्रु उसको चाहने लगते हैं उसी  प्रकार जैसे अकाशबेल वृक्ष को घेरे रहती है।  

18-  एक आदमी युद्ध में हजारों - लाखों को जित ले , परन्तु स्वयं का मन न जित  सके तो उसे सच्चा संग्राम - विजयी नहीं कहा जा सकता।  

19- जिसने स्वयं को वश में कर लिया है , संसार की कोई भी शक्ति उसकी विजय को पराजय में नहीं बदल सकती।  

20- शुभ कर्मो में आलस्य न करें।  बुरे विचारों का दमन करें।  जो शुभ कर्म करने में ढील करता है , उसका मन पापों में रमण करने लगता है।  

21- क्रोध न करो।  शत्रुता को भुल जाओ।  अपने शत्रुओ को मैत्री से जित लो।  

22- जो मनुष्य मन में उठे क्रोध को दौड़ते हुए रथ के समान शीघ्र रोक लेता है , उसी को मै सारथि समझता हूं , क्रोध के अनुसार काम करने वाले को केवल लगाम रखने वाला कहा जा सकता है।  

23- जितनी भलाई माता - पिता या दूसरे भाई - बंधू नहीं कर सकते , उससे अधिक भलाई ठीक मार्ग पर लगा हुआ चिंत्त करता है और वह व्यक्ति का उन्नयन करता है।  


सम्पूर्ण आत्मज्ञान awakeningspiritual.blogspot.com पर मिलेगा।  

Comments

Popular posts from this blog

pavan tany sankt haran mangal murti rup - दोहा - पवन तनय संकट हरन ; मंगल मूरती रूप राम लखन सीता सहित। हृदय बसहु सुर भूप

durgam kaaj jagat ke jete - दुर्गम काज जगत के जेते सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते

jo yah padai hanuman chalisa - जो यह पढ़ै हनुमान चालीसा होय सिद्धि साखी गौरीसा - hanuman chalisa padne se kya hota hai