Posts

raam duare tum rakhware - राम दुआरे तुम रखवारे होत न आज्ञा बिनु पैसारे

Image
 राम दुआरे तुम रखवारे।  होत न आज्ञा बिनु पैसारे।। आप श्री रामचंद्र के महल के द्वार के रखवाले हैं, आप की आज्ञा के बिना जिसमे कोई प्रवेश नहीं कर सकता।   यह दिव्य गुप्त ज्ञान में बताया जाता है की परमात्मा सहस्त्रार में बैठा हुआ है।  साधक है त्रिकुटी संगम पर।  दोनों के बिच में कूटस्थ पर्वत है , गुरुद्वारा है।  नानक इसी गुरुद्वारा की बात करते हैं।  कबीर साहब भी इसे  गुरु पर्वत कहते हैं।  उपनिषद कूटस्थ ब्रह्म कहता है।  गुरु यहीं जिव आत्मा और परमात्मा के बिच में बैठ  जाता है। द्वार बन जाता है।  उस द्वार में प्रवेश करने  पर ही तुम गोविन्द प्राप्त कर पाते हो।  बिना गुरु की कृपा के तुम गोविन्द तक पहुंच नहीं सकते हो।  इसीलिए गुरु द्वार है।  गुरु को ठीक से समझो।   साहब भी कहते हैं - गुरु  गोविन्द दोऊँ खड़े ,काके लागू पाव।  बलिहारी गुरु आप ने गोविन्द  दिया बताय।। यहाँ तुलसीदासजी हनुमानजी की गुरु रूप  हीं वंदना कर रहे है की जब आप की कृपा  होगी तभी गोविन्द मिलेंगे। कहीं तुम जात...

durgam kaaj jagat ke jete - दुर्गम काज जगत के जेते सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते

Image
दुर्गम काज जगत के जेते।  सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते।।  संसार के कठिन से कठिन काम आपकी कृपा से सहजता से पुरे हो जाते है।  प्रत्येक कार्य  संसार का तुम्हारे लिए दुर्गम है।  जहाँ तुम काम के लिए हाथ डालते हो , कहते हो नहीं हो रहा है , चिंतित हो जाते हो लेकिन हनुमान जी का नाम  लेते ही वह सुगम हो जाएगा। इनका नाम लेकर राम रसायन के मंत्र का जाप करो तुम्हारा सब काम सुगम हो जाएगा।  तुम इस सृष्टि में भी सफल हो जाओगे और उस सृष्टि में भी।  दुर्गम काज को सुगम बनाना तो हनुमानजी के बाएं हाथ का खेल  है।  रामजी के सभी  दुर्गम काज हनुमानजी ने ही सुगमता से पुरे किए।  विपदाओं - आपदाओं का सामना करते हुए प्राण हथेली पर लेकर समुद्र लांघना , मृत्यु के साए में रावण की नगरी लंका में प्रवेश करना , सीता का पता लगाना , उन्हें प्रभु मुद्रिका देना , लंका में आग लगाना , घायल लक्ष्मण को जिलाने के लिए संजीवनी बूटी लाना , ये सभी तो दुर्गम काज थे।  जो उन्होंने सुगमता से पुरे किए।  और तो और जिस सूर्य की और आप नजर उठाकर देख तक नहीं सकते , हजारों योजन दूर उस...

prabhu mudrika meli mukh - प्रभु मुद्रिका मेली मुख माहीं जलधि लांघी गए अचरज नहीं

Image
 प्रभु मुद्रिका मेली मुख माहीं।  जलधि लांघी गए अचरज नहीं।। आपने श्रीराम द्वारा दी गई अंगूठी मुंह में रख समुन्द्र पार किया।  परन्तु आपके लिए ऐसा करना कोई आश्चर्य की बात नहीं है।  भगवान् राम ने जो मुद्रिका यानि अंगूठी दी थी उसे लेकर हनुमानजी मसक का रूप धरकर  सीताजी के पास गए।  मसक यानी मच्छर नहीं।  लघुरूप को लक्षणाअलंकार द्वारा मसक कहा गया है यह लघिमा , गरिमा आदि अष्ट सिद्धि नव निधि में आता है।  सिद्धियां तो गुरुभक्त की चेरी होती है।  जब गुरुभक्त पर गुरु अनुकम्पा होती है तब वह कूटस्थ पर्वत से अपने अंदर प्रवेश कर आज्ञाचक्र की तरफ चलता है।  वहीँ से कुछ ही दुरी पर सप्त सागर है।  जो कमल दलों से प्रकाशित है।  उसका प्रकाश अति सम्मोहक है।  मध्य में बैठी है आत्मा।  मधुर स्वादिष्ट जल ही क्षीर सागर , दधि सागर का जल है।  जिसे गुरुभक्त खेचरी मुद्रा से ग्रहण करता है।  वह जल धार बनकर उसके शरीर के कण -कण का पोषण कर नई उमंग से भर देती है।  नवजीवन देती है।  सिद्धियों का आगमन स्वयं हो जाता है।  या सिद्धियां उसे घ...

jug sahsr jojan par bhanu - जुग सहस्र जोजन पर भानु लील्यो ताहि मधुर फल जानू

Image
 जुग सहस्र जोजन पर भानु।  लील्यो ताहि मधुर फल जानू।। जो सूर्य हजारों योजन पर दूर है , जहां तक पहुंचने में हजारो युग लग जाते हैं , उस सूर्य को आपने मीठा फल समझकर निगल लिया।    तुलसीदासजी संस्कृत के विद्वान थे। वे यहां  लक्षणाअलंकार का प्रयोग कर  हैं। अतिश्योक्ति की बात कह रहे हैं , जिसे तुम सत्य मान रहे हो।  वह मुस्लिम काल था।  मुसलमानों के नबी ने प्रचारित किया की हमारा एक नबी ने प्रचारित किया की हमारा एक नबी ऐसा था जो दाहिना हाथ बढाकर समुद्र से मछली पकड़ लेता था।  , फिर हाथ बढाकर सूर्य में उसको पका लेता था।  मुसलमानों का नबी इतना बड़ा है तो यह सुनकर हिन्दुओं का पलायन शुरू हो गया , वे ही तुलसीदासजी ने यहां लक्षणा अलंकार का सहारा लेकर उनको अपने भगवान् की महत्ता दर्शायी की तुम्हारा नबी जो चमत्कार करता है उससे बढ़कर कार्य तो हमारे भगवान् का शिष्य जो  एक वानर है वही कर देता है।  वह हजारों योजन ऊपर जो सूर्य है जो पृथ्वी से भी कई गुना बड़ा है , उसे बचपन में ही उसने अपने मुख में निगल लिया।  ऐसी लंबी छलांग लगाई की सीधा सूर्य तक पह...

Lankeshwar bhaye vibhishan - तुम्हरो मंत्र विभीषण माना लंकेस्वर भए सब जग जाना

Image
तुम्हरो मंत्र विभीषण माना।  लंकेस्वर भए सब जग जाना।। आपके परामर्श का विभीषण ने अनुसरण किया , जिसके फलस्वरूप वे लंकापति बने ,यह बात सारा संसार  जानता है।  हनुमानजी को जो महामंत्र भगवान् शंकर  ने दिया , हनुमानजी ने उसे सिद्ध किया और सबसे पहले सुग्रीव  को दिया।  सुग्रीव बहुत कमजोर व्यक्ति थे लेकिन इस मंत्र के प्रभाव से  बाली जैसे बलवान राजा को मार कर किष्किंधा के राजा बन  गए। दूसरी बार यह मंत्र हनुमानजी ने विभीषण  को दिया।  विभीषण से भी कमजोर कोई नहीं था लंका में। रावण  जैसे शक्तिशाली राजा को वो कभी परास्त नहीं  कर सकते थे। लेकिन उनमें भी वही खूबी थी जो सुग्रीव में थी। उन्होंने हनुमान रूपी  सद्गुरु को मन -कर्म वचन से धारण कर लिया।  उनसे वह मंत्र ले लिया।  राम  रसायन की तकनीक जान ली।  राम रसायन की तकनीक ऐसी आ गयी की उस समय  धुरंधर ,वीर , प्रतापी राजा को परास्त  कर दिया और क्षण भर में  वे राजा  बन गए।  आखिर क्या खूबी है इस  मंत्र में जो उन्होंने सुग्रीव को यह मंत्र दिया तो ...

sugrvhin raajpad dinha - सुग्रवहिं राजपद दीन्हा

Image
 तुम उपकार सुग्रवहिं कीन्हा।  राम मिलाय राजपद दीन्हा।। आपने वानरराज सुग्रीव का श्री रामचन्द्रजी से मिलन कराकर उन पर उपकार किया।  उन्हें राजा बनवा दिया।  सुग्रीव सूर्य के लड़के हैं।  हनुमान सूर्य के शिष्य हैं।  गुरु दक्षिणा में सूर्य ने कहा -मेरे पुत्र की रक्षा करना।  हनुमानजी बाली को गुरु मानकर राजनीति विद्या सीखने किष्किंधा गए।  वहां सुग्रीव को उन्होंने शिष्य बना लिया और यही मंत्र दिया श्रीराम जय राम जय जय राम।  इस मंत्र के प्रताप से सुग्रीव किष्किंधा के राजा बने।  जो सिद्ध गुरु से प्राप्त करके इस मंत्र का जाप करेगा उसे इसका फलाफल अवश्य मिलेगा।  मंत्र तो वही है।  यह मंत्र  लिखा है चारों और यहां -वहां यत्र -तत्र सर्वत्र लेकिन तुम जाकर दो पैसे की माला लेकर जपने लगो तो उससे  कुछ फलाफल नहीं मिलेगा।  जैसे पीपल , पाकड़ बरगद का पेड़ देखते हो इनके बीज को जब तक पक्षी खाकर बिट में नहीं नीकालेगा तब तक वह अंकुरित नहीं  होगा इसलिए इनको हरी संकरी वृक्ष कहा गया है।  दस बीस किलो भी यदि मिट्टी में सीधे गाड़ दो तो एक ब...

jam kuber जम कुबेर

Image
जम कुबेर दिगपाल जहाँ ते। कबि कोबिद कही सके कहाँ ते।।     यम , कुबेर आदि तथा सब दिशाओं के रक्षक , कवी , विद्वान् कोई भी आपके यश का संपूर्ण वर्णन करने में सक्षम है।  तुलसीदासजी बता रहे हैं की हनुमानजी जो की ज्ञान के , गुण के सागर हैं।  अतुलित बल के धाम हैं।  जिनसे तीनो लोक उजागर हैं।  जो कुमति का निवारण कर सुमति प्रदान करते हैं।  महावीर  विक्रम बजरंगी हैं।  रामदूत बनकर उनके काज संवारते हैं।  सूक्ष्म रूप रखकर सीता का पता लगाते हैं।  विकराल रूप धारण कर लंका को जलातें  हैं।  भीम रूप में असुरों का संहार करते हैं। और अब संजीवनी बूटी लाकर लखन को जिला रहें हैं अतः  इनकी प्रशंसा करने में , इनका गुणगान करने में सभी देवी-देवता अपने को असमर्थ महसूस कर रहे हैं।  यहाँ तक की मृत्यु के देवता यम , धन के देवता कुबेर , दसो दिशाओं के दिशा रक्षक , कवी , आदिकवि वाल्मीकि तक यह कह रहे हैं की कहाँ तक हम इनका गुणगान करें, ये इतने गुणी हैं।  इनके गुणों का वर्णन करने में कोई भी समर्थ नहीं है।  इतना अंजनिपुत्र , ...