jam kuber जम कुबेर

जम कुबेर दिगपाल जहाँ ते।

कबि कोबिद कही सके कहाँ ते।। 




  यम , कुबेर आदि तथा सब दिशाओं के रक्षक , कवी , विद्वान् कोई भी आपके यश का संपूर्ण वर्णन करने में सक्षम है। 

तुलसीदासजी बता रहे हैं की हनुमानजी जो की ज्ञान के , गुण के सागर हैं।  अतुलित बल के धाम हैं।  जिनसे तीनो लोक उजागर हैं।  जो कुमति का निवारण कर सुमति प्रदान करते हैं।  महावीर  विक्रम बजरंगी हैं।  रामदूत बनकर उनके काज संवारते हैं।  सूक्ष्म रूप रखकर सीता का पता लगाते हैं।  विकराल रूप धारण कर लंका को जलातें  हैं।  भीम रूप में असुरों का संहार करते हैं। और अब संजीवनी बूटी लाकर लखन को जिला रहें हैं अतः  इनकी प्रशंसा करने में , इनका गुणगान करने में सभी देवी-देवता अपने को असमर्थ महसूस कर रहे हैं।  यहाँ तक की मृत्यु के देवता यम , धन के देवता कुबेर , दसो दिशाओं के दिशा रक्षक , कवी , आदिकवि वाल्मीकि तक यह कह रहे हैं की कहाँ तक हम इनका गुणगान करें, ये इतने गुणी हैं।  इनके गुणों का वर्णन करने में कोई भी समर्थ नहीं है।  इतना अंजनिपुत्र , पवनसुत हनुमानजी का तेज  प्रताप है की स्वयं प्रभु रामजी को ही अब इनकी प्रशंसा करनी पड़ रही है।वे कहते हैं  

सुनु कपि तोहि समान उपकारी। 

नहीं कोउ सुर नर मुनि तनुधारी।।

प्रति उपकार करौं का तोरा। 

सनमुख होई न संकत मन मोरा।।

सुनु सूत तोहिं उरिन मैं नहीं। 

देखेउँ करि बिचारि मन माहीं।।


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