sugrvhin raajpad dinha - सुग्रवहिं राजपद दीन्हा

 तुम उपकार सुग्रवहिं कीन्हा। 

राम मिलाय राजपद दीन्हा।।



आपने वानरराज सुग्रीव का श्री रामचन्द्रजी से मिलन कराकर उन पर उपकार किया।  उन्हें राजा बनवा दिया। 


सुग्रीव सूर्य के लड़के हैं।  हनुमान सूर्य के शिष्य हैं।  गुरु दक्षिणा में सूर्य ने कहा -मेरे पुत्र की रक्षा करना।  हनुमानजी बाली को गुरु मानकर राजनीति विद्या सीखने किष्किंधा गए।  वहां सुग्रीव को उन्होंने शिष्य बना लिया और यही मंत्र दिया श्रीराम जय राम जय जय राम।  इस मंत्र के प्रताप से सुग्रीव किष्किंधा के राजा बने।  जो सिद्ध गुरु से प्राप्त करके इस मंत्र का जाप करेगा उसे इसका फलाफल अवश्य मिलेगा।  मंत्र तो वही है।  यह मंत्र  लिखा है चारों और यहां -वहां यत्र -तत्र सर्वत्र लेकिन तुम जाकर दो पैसे की माला लेकर जपने लगो तो उससे  कुछ फलाफल नहीं मिलेगा।  जैसे पीपल , पाकड़ बरगद का पेड़ देखते हो इनके बीज को जब तक पक्षी खाकर बिट में नहीं नीकालेगा तब तक वह अंकुरित नहीं  होगा इसलिए इनको हरी संकरी वृक्ष कहा गया है।  दस बीस किलो भी यदि मिट्टी में सीधे गाड़ दो तो एक बीज भी वृक्ष नहीं बनेगा  सब सड़ जायेगा। उसी तरह से जो गुरु इस मंत्र को सिद्ध कर चूका है दीक्षा के समय तुम्हारे सास्त्रार को खोल कर यह मंत्र उसमे स्थापित कर देता है हस्तांतरित कर देता है तो समय आने पर यह मंत्र फलने फूलने लगता है। अब इसमें फूल लगेगा ध्यान का और फल लगेगा समाधी का इसलिए सिद्ध गुरु  की  जरुरत होती है  कनफूका  गुरु से काम नहीं चलेगा।  कान फुका गुरु हदद का , बेहद का गुरु और।  बेहद का गुरु जब मिलै ,लहै ठिकाना ठौर।।  

संसार का काम चलने के लिए कान में फुक कर स्थाई प्रमाण पत्र दिया जाता है।  जैसे गाडी चलाना सीखने के लिए दिया  जाता है।  उस प्रमाण पत्र को लेकर तुम राष्ट्रिय राजमार्ग पर नहीं निकल सकते हो।  हाइवे पर यदि वह लाइसेंस दिखाओ गे तो गिरफ्तार कर लिए जाओगे।  इसी तरह तुमको नित्य कर्म करने के लिए -पूजा पाठ -यज्ञ  करने के लिए पुरोहित प्रमाण पत्र पकड़ा देता है की लो तुम बिना इसके पूजा पाठ नहीं कर सकते हो।  मंदिर गुरुद्वारा नहीं जा सकते हो। यज्ञ में सम्लित नहीं हो सकते हो।  लेकिन यदि तुम उसी प्रमाण पत्र  लेकर घूमते रहो तो उससे काम नहीं चलेगा।  वह कन फुका गुरु लर्निंग लाइसेंस हुआ।  अस्थाई प्रमाण पत्र वह है जो समर्थ सद्गुरु देता है।  गुरु सद्गुरु में अंतर होता है।  गुरु शास्त्र पकड़ा देता है लो शास्त्र पढ़ो रटो और इससे काम चलालो।  सद्गुरु के यहाँ जाओगे वह शास्त्र सब छीन लेगा।  कहेगा शास्त्र की जरूरत नहीं है।  उस रसायन को तुम्हारे अंदर लगा देगा जिस रसायन से तुम्हारा जीवन बदल जायेगा।  गुरु सद्गुरु में अंतर यही है।  गुरु तुम्हे विद्वान् बनाता है।  सद्गुरु विद्यावान बनाकर अपने समान कर लेता है। 


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