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isa masih - ईसा मसीह अनमोल विचार

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ईसा मसीह  आज से लगभग दो हजार वर्ष पूर्व 25 दिसंबर को बैथलेहम ( फिलिस्तीन ) में एक यहूदी परिवार में एक बालक का जन्म हुआ जो आगे चल कर लोगो के लिए भगवान बन गया उस बालक का नाम ईसा मसीहा ( जीजस क्राइस्ट ) था।  उनके पिता का नाम युसूफ और माता का नाम मरियम था।  ईसा मसीह अत्यंत निर्धन परिवार  से थे।  उनके पिता बढ़ई का काम करके अपने परिवार का भरण पोषण करते थे।  जिस समय ईसा मसीह जन्म लिया उस समय यहूदीयों के राजा हेरोदस का यहुदियों के प्रति दासो सा व्यवहार था।  गरीब जनता पर इतने अत्याचार किये जाते थे की कोई राजा के विरुध्द आवाज न उठा सके।  इन परिस्तिथियों से ईसा मसीह भली भाती परचित थे।  उन्होंने अपना बढ़ई का पैतृक काम छोड़ दिया और मानव जाती के लिए आगे आए।  उन्होंने लोगो को सान्ति तथा सबको आपसी भाई चारे के साथ मिलकर रहने का  सन्देश दिया।  लोग भी ईसा मसीह की अहिंसा की बातों पर गौर करते धीरे - धीरे उनकी प्रसिद्धि पुरे राज्य में होने लगा।  लोग उनके भाषणों से प्रभावित होकर उन्हें यहूदियों का राजा कह कर पुकारने लगें किन्तु राज्य के कुछ धनिक शा...

anmol vaani mahattv - संतो की वाणियो का महत्त्व

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संतो की वाणियो का महत्त्व   भारत में समय - समय पर अनेको महापुरुषों , ऋषि - मुनियो  और संतो का अवतरण हुआ है।  हमारी भारतीय संस्कृति में संतो की अनमोल वाणियों का अपना अलग ही महत्त्व है।  उनकी वाणियां हमें जीवन जीने की कला सिखाती हैं , हमे जीवन की सच्चाइयों से रूबरू कराती हैं।  महँ संतो के क्रिया - कलाप और कथन में सफलता का अनोखा और चमत्कारी भाव छिपा होता है। उनके कथन और क्रिया - कलाप ,देश  काल , सभ्यता , संस्कृति , धर्म और मर्यादा आदि सभी को अपने प्रभाव से अभिभूत करने की अभिभूत करने क्षमता रखते हैं।  संतो के अनमोल वचनो  सफलता का अथाह समंदर ठाठें मारता रहता हैं।  उनको वचनो में क्रांति की ऐसी तीव्रतम ज्वाला प्रज्वलित रहती है , जो पल - भर में युगांतकारी परिवर्तन का भी आहवाहन कर बैठती है।  इन वचनो के अर्थपूर्ण भीषण ज्वालामुखी से निकले लावे को संसार का कोई भी बाँध नहीं सकता।  ऐसा ही कुछ अजीबो - गरीब है इन संतो की दिव्य वाणियों का प्रताप।  महानता का अर्थ ही तुच्छता से ऊपर उठना है।  ऐसा तभी होता है, जब जाती , वर्ण धर्म यहाँ तक ...

pavan tany sankt haran mangal murti rup - दोहा - पवन तनय संकट हरन ; मंगल मूरती रूप राम लखन सीता सहित। हृदय बसहु सुर भूप

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दोहा - पवन तनय संकट हरन ; मंगल मूरती रूप।  राम लखन सीता सहित।  हृदय बसहु सुर भूप।। हे पवनपुत्र ! आप सभी संकटो का हरण करने वाले हैं , आप मंगल मूरत वाले हैं।  मेरी प्रार्थना है की आप श्रीराम , श्री जानकी एवं लक्ष्मणजी सहित सदा मेरे हृदय में निवास करें।    तुलसीदासजी कह रहे हैं - हे पवन तनय आप तो हर संकट को हर लेने वाले हो अप्रतिम शरीरिक क्षमता , मानसिक दक्षता व् सर्वविध चारित्रिक उचाईयों के उत्तुंग शिखर  हो आप के सद्रश मित्र , सेवक , सखा ,कृपालू वह भक्त परायण मिलना असंभव है।  आप की मंगल की ही  मूरत हो , आप से अमंगल की संभावना नहीं है।  हर समय मंगलमय हो।   मंगलम भगवान् विष्णु , मंगलम गरुड़ध्वजा ,   मंगलाय पुंडरीकाक्ष , मंगलाय तनो हरि।  भगवान विष्णु मंगल हैं उनका वाहन भी मंगल है पुण्डरीकाक्ष भी मंगल  है।  सब मंगल ही है।  इसी तरह पवन तनय  आप भी मंगल ही हैं।  आप का रूप मंगलमय है।  आप से अमंगल संभव नहीं है।  अतः अब आप अपने ह्रदय में बसे राम , लखन सीता सहित हमारे ह्रदय में निवास करें।  राम लख...

tulsidas sada hari chera - तुलसीदास सदा हरि चेरा कीजै नाथ हृदय महं डेरा

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तुलसीदास सदा हरि चेरा।  कीजै नाथ हृदय महं डेरा।। हे मेरे नाथ हनुमानजी! तुलसीदास  सदा ही श्रीराम के  दास हैं , इसलिए आप उनके हृदय में सदा निवास कीजिए।  हनुमान चालीसा तुलसीदासजी द्वारा रचित अपने गुरु की वंदना है , स्तुति है।  तुलसीदासजी भक्त है , परमात्म भाव से लीन रहना उनका स्वभाव है।  और जो परमात्म भाव में लीन रहता है उसके मुख जो निकलता है उसे आप कविता कहो या श्लोक कहो।  कविता कहना लक्ष्य या उदेश्य नहीं।  वह तो अंतः प्रेरित स्वतः प्रस्फुटिक परमात्मा स्तुति  है जिसकी ऊर्जा से वह ओत - प्रोत है।  यह ऊर्जा उनका उद्धार कर सकती है और उनके माध्यम से उनके शिष्यों का।  हनुमान  चालीसा का हर एक चौपाई ऊर्जा का श्रोत है पर केवल उनके लिए जो गुरु के माध्यम से इसे पाने में सक्षम है।  जैसे विघुत का नियम है की ग्राहक अपनी आवश्यकता अनुसार आवश्यक ट्रांसफार्मर से ही विघुत प्राप्त कर सकता है।  एक छोटा सा बल्ब यदि एक लाख वाट ऊर्जा से जोड़ दिया जाए तो वह बल्ब तो नष्ट होगा ही , उसके साथ - साथ विघुत उपकरण भी नष्ट हो जाएगा।  जिससे घर में आग...

jo yah padai hanuman chalisa - जो यह पढ़ै हनुमान चालीसा होय सिद्धि साखी गौरीसा - hanuman chalisa padne se kya hota hai

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  जो यह पढ़ै हनुमान चालीसा।  होय सिद्धि साखी गौरीसा।। गौरी के पति शंकर भगवान् ने यह हनुमान चालीसा लिखवाया इसलिए वह साक्षी हैं की जो इसे पढ़ेगा उसे निशचय ही सिद्धि प्राप्त होगी।  जो इस हनुमान चालीसा को जिस तरह मैंने बताया समझकर बूझकर पाठ करता है, होही सिद्धि साखी गौरीसा , वह साधक सिद्ध हो जाता है।  यह गौरीसा कह रहे हैं गौरीसा यानि गौरी के ईस।  यह स्थान ( सद्गुरु आश्रम डुमरी पड़ाव गंगा तट उत्तर प्रदेश ) गौरी का क्षेत्र है।  गौरी का ईस यहीं है।  वही कह रहा है , वह सिद्ध हो जाएगा। ;हमारे जीवन का सारा दुःख अपना है।  हम हर चीज को अपने में बांधना चाहते हैं।  यहीं से दुःख  शुरू होता है।  सारा दुःख सीमाओं का ही दुःख है।   में पूरा नहीं हूं, अधूरा हूं।  मुझे पूरा होने के लिए न मालूम कितनी - कितनी चीजों की जरुरत है।  जैसे - जैसे चीजे मिलती जाती है, मैं पन का विस्तार होता जाता है  अधूरा पन कायम ही  रहता है।  सब कुछ मिल जाने पर भी मैं अधूरा ही रह जाता है।  जब तक मई किसी भी काम म...

jo sat bar path kar koi - जो सत बार पाठ कर कोई छूटहि बंदी महा सुख होइ

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  जो सत बार पाठ कर कोई।  छूटहि बंदी महा सुख होइ।। जो व्यक्ति शुद्ध हृदय दसे प्रतिदिन इस  हनुमान चालीसा का सौ बार  पाठ करेगा वह सब सांसारिक बन्धनों  से मुक्त हो  जाएगा और उसे परमानन्द की प्राप्ति होगी।   यदि आप को बहुत बड़ा कष्ट है , दुःख है , बन्धन है तो गुरु की आज्ञा लेकर शुक्ल पक्ष के मंगलवार को सुबह गंगा में स्नान कर  हनुमान जी को अखण्ड दीप जला दे घी का या तील के तेल का।  सुबह  शत बार इसका पाठ करले उसमे चार घंटा लगाता है।  तो आप किसी भी तरह के बन्धन से मुक्त हो जाते हैं।  संकट से मुक्त हो जाते हैं।  यदि हनुमानजी का मंदिर हो गंगा तट हो पीपल का वृक्ष हो तुलसी का पेड़ हो और गाय हो तो समझ लें वहां मंगल ही मंगल है।  यह सब इस जगह का जिन्दा ब्रह्म कहा गया है।  रामानंद जी ने इन्हे पृथ्वी के जीवित ब्रह्मा स्वरूप कहा है।  एक छोटी से विधि और बता रहें हैं।  यदि आप का मनोकामना पूर्ण न हो रही हो या कोई मुश्किल आन पड़ी हो तो किसी भी शुक्ल पक्ष का शुभ दिन देख कर मंगलवार से इक्कीस दिन तक एक छोटा सा अनुष्ठान करे इक्...

jai jai jai hanuman gosai - जय जय जय हनुमान गोसाईं कृपा करहु गुरुदेव की नाईं

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जय जय जय हनुमान गोसाईं।  कृपा करहु गुरुदेव  की नाईं।।  हे वीर हनुमानजी ! आपकी सदा जय हो , जय हो , जय हो  आप मुझ पर श्री गुरूजी के समान कृपा करें।     हनुमान चालीसा  रचयिता तुलसीदासजी  के गुरु हैं नरहरिदासजी, वे हनुमानजी के अवतार कहे जाते हैं।  तुलसीदासजी यहां हनुमानजी से प्रार्थना  कर रहे हैं की - हे हनुमानजी ! आप मुझपर कृपा करें पर असुरों का संहार करने वाले  संहारकर्ता हनुमान देवता  रूप में कृपा न करें।  आपका बायां हाथ असुरों संहार करता  है तो दायां हाथ संतो को  तारता है।  बाएं भुजा असुर दाल मारे, दाहिने भुजा संतजन तारे। , असुरों की तरह संहार करना यह भी तो  कृपा ही है। पर वह ऐसी कृपा से घबरा रहे हैं कहीं उन  पर भी ऐसी ही कृपा न कर दें हनुमानजी। अतः प्रार्थना कर रहे हैं की आप मेरे परम स्नेही , करुणा  सागर गुरुदेव के समान ही मुझ पर कृपा करें।  कृपा करहु गुरुदेव की नाई।  कह रहे हैं हमारे गुरुदेव नरहरिजी की हम पर बहुत कृपा है।  जब हम अबोध थे तभी बाल्यावस्था में ही माता -...