स्वामी रामतीर्थ भारत की पावन भूमि पर अनेक महापुरुषों ने जन्म लिया है , जिन्होंने अपने उपदेशों द्वारा मानव जाती का कल्याण किया। ऐसे ही एक महापुरुष थे स्वामी रामतीर्थ , जिन्होंने अपने ज्ञान रूपी प्रकाश द्वारा संपूर्ण विश्व में फैले अज्ञान रूपी अंधकार को दूर किया। 22 अक्टूबर , 1873 को स्वामी रामतीर्थजी का जन्म हुआ। उनके पिता का नाम हीरानंद था। वे जब लगभग एक वर्ष के हुए तो उनकी माता का निधन हो गया। उनके पिता हीरानंद की एक बहन धर्मदेवी थीं। उन्होंने रामतीर्थ का लालन - पालन किया। स्वामी रामतीर्थ के बचपन का नाम रामतीर्थ था। रामतीर्थ के गुरु का नाम धन्नाराम था।वे उनसे बड़े प्रभावित थे।उनका समस्त जीवन अत्यंत विलक्षण , प्रेरणादायक तथा स्फूर्तिदायक था। उन्होंने अद्वैत वेदांत को अति सरल करके , मनुष्य मात्र के समक्ष इस प्रकार रखा की साधारण बुद्धि वाला मनुष्य उससे लाभवन्तित हो सकता है। उन्होंने संसार को सत्य का मार्ग निर्मल और स्वच्छ रूप से दर्शाया। उन्होंने त्याग , आत्मविश्वास , कर्म , निष्ठां , निर्भयता , द्रढ़ता , एकता और विश्वप्रे...
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रामकृष्ण परमहंस
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रामकृष्ण परमहंस रामकृष्ण परमहंस पोथी पंडित , ज्योतिषी या विचारक नहीं थे , बल्कि वे एक आत्मदर्शी पुरुष थे। उन्होंने आम व्यक्तियों की तरह मोहमाया में न फंसकर परम सत्य की प्राप्ति स्वयं को मां जगदम्बा के चरणों में समर्पित किया। मां जगदम्बा के निर्देश पर ही उन्होंने इस नश्वर संसार की भलाई हेतु अपना जीवन न्योछावर कर दिया। रामकृष्णजी का जन्म 17 फरवरी , 1836 को एक निर्धन परिवार में हुआ था। उनका माता - पिता द्वारा रखा नाम गदाधर था , लेकिन आगे चलकर वे स्वामी रामकृष्ण परमहंस के नाम से प्रसिद्ध हुए। उनका बचपन बड़े दुखों में बिता , और वे अपना पूरा समय आराधना और जगत के उत्थान में लगाने लगे। उनकी द्रिष्टि में ऊंच - नीच का कोई भेद नहीं था। उन्होंने किसी नए धर्म या पंथ की स्थपना नहीं की , वरन अपने जीवन के अनुभूत तथ्यों का ही वर्णन किया। स्वामी रामकृष्णजी का विवाह शारदामणि देवी के साथ हुआ था। रामकृष्णजी ऐसे महापुरुष थे , जिन्हे प्रत्येक स्त्री में मां जगदम्बा के दर्शन होते थे। यहां तक उन्होंने अपनी पत्नी को भी मां जगदम्बा मानकर पूजन किया। रामकृ...
स्वामी दयानंद सरस्वती
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स्वामी दयानंद सरस्वती भारत की पवित्र भूमि पर अनेक महापुरुषों ने जन्म लिया है , जिनमे एक नाम स्वामी दयानन्द सरस्वती का भी है बात सन 1824 की है। गुजरात राज्य में सदियों पहले एक जिला काठियावाड़ था। काठियावाड़ में एक गांव था टंकारा। यह एक छोटा सा गांव था। इस गांव में कृष्णलालजी तिवारी का परिवार रहता था। एक दिन तिवारीजी की पत्नी ने एक अबोध बालक को जन्म दिया। बालक के मुख पर एक अनोखा तेज व्याप्त था। यही बालक आगे चलकर स्वामी दयानन्द सरस्वती के नाम से प्रसिद्ध हुआ। बालक के माता - पिता उसे प्यार से मूलशंकर कहकर बुलाते थे। मूलशंकर की बचपन में भगवान पर आस्था थी , लेकिन एक दिन जब उन्होंने एक चूहे को भगवान् की मूर्ति पर चढ़कर प्रसाद कहते हुए देखा तो उन्हें मूर्ति - पूजा व्यर्थ प्रतीत हुए। सच्चे ज्ञान की प्राप्ति के लिए उन्होंने घर - बार छोड़ दिया। उन्होंने समस्त भारत का भ्रमण किया , वन - वन घूमे , अनेक कष्ट सहे ,...
स्वामी विवेकानंद
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स्वामी विवेकानंद स्वामी विवेकानंद एक ऐसा नाम है जिस पर समूची मानव जाती को गर्व है। वे भारत में जन्मे और पले - बढे हैं तथा भारतीय संस्कृति एवं दर्शन में पारंगत हुए। उन्होंने मानव जीवन के मर्म को समझा तथा धर्म के वास्तविक रहस्य को शोध कर उजागर किया और धर्म की एक सर्व - स्वीकारीय परिभाषा तैयार की। अमेरिका के शिकागो शहर में आयोजित सर्वधर्म सभा में विश्व के कोने - कोने से आए विभिन्न धर्म - प्रतिनिधयों तथा अमेरिका व् यूरोप के सचेतन नागरिको के समक्ष उन्होंने धर्म पर भाषण दिया और विश्व समुदाय के सामने यह साबित करके दिखा दिया की भारत की पवित्र भूमि पर सनातन हिन्दू धर्म ही वह धर्म है ,जो समूची मानव जाती की समस्त समस्याओं का समाधान प्रस्तुत कर मानव सभ्यता को वास्तविक विकास के लक्ष्यों की और ले जा सकता है। उस महापुरुष का जन्म 13 जनवरी 1863 को कोलकाता में हुआ था उनका बचपन का नाम नरेन्द्रनाथ था। उनके पिता नाम विश्वनाथ दत्त और माता नाम भुनेश्वरी देवी था। वह बड़ी विनम्र स्भाव की महिला थी। स्वामी विवेकानंद जी शुरू से ही बड़े कर्म...
संत कबीर - sant kabir
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संत कबीर संत कबीर का जन्म आज लगभग 600 वर्ष पूर्व हुआ था। उस समय में पाप अपनी चर्म सिमा पर पहुँच चूका था। जाती - पाती , ऊंच - नीच , अन्धविश्वाश धर्म के नाम पर मार - काट आदि ने मानव जाती को अपने वश में किया हुआ था। संत कबीर के माता - पिता का नाम तो अज्ञात है। वे वाराणसी के पास लहरतारा तालाब के पास निरु नामक व्यक्ति को मिले। वह निःसंतान था। उसकी पत्नी का नाम नीमा था। निःसंतान होने के कारण दोनों ने उस बालक का पालन पोषण का निश्चय किया। जुलाहा दंपति मुसलमान थे। बालक का नामकरण किया गया और कबीर नाम रखा गया। कबीरदास बालयवस्था से ही साधू - संतो की संगत करते थे , उन्हें उनके आचार - विचार बहुत भाते थे। बाल्यावस्था से ही उन्हें भजन - कीर्तन में बहुत आनंद आता था। रामानंदजी से कबीरदासजी बहुत प्रभावित थे। वे उन्हें अपना गुरु बनाना चाहते थे। रामानंदजी प्रतिदिन भोर होने से कुछ पहले स्नान करने गंगा के घाट पर जाते थे। एक दिन कबीरदासजी रात्रि में ही गंगा के घाट की सीढ़ियों पर...
भगवान महावीर
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भगवान महावीर भारत की इस पावन भूमि पर समय - समय पर अनेक महापुरुषों ने जन्म लिया है। जिन्होंने सदुपदेशों द्वारा न केवल इस देश का बल्कि समूचे विश्व का कल्याण किया है। ऐसे ही महापुरुष ने आज से लगभग ढाई हजार वर्ष पूर्व जन्म लिया था उनका जन्म बिहार की प्रसिद्ध नगरी वैशाली के निकट बसे कुंडग्राम (कुंडलपुर ) में हुआ। उनके पिता राजा सिद्धार्थ थे तथा माता महारानी त्रिशला देवी थीं। जब महारानी त्रिशला देवी गर्भस्थ थीं तब महाराज सिद्धर्थ के यहां धन - धान्य की बृद्धि होने , लगी इसलिए उनका नाम वृद्धमान रखा गया। आगे चलकर ये भगवान महावीर के नाम से प्रसिद्द हुए। भगवान महावीर जैन धर्म के चौबीसवें एवं अंतिम तीर्थकर थे। उस समय समाज को अनेक बुराइयों ने आ घेरा था। सर्वत्र , हिंसा छल - कपट , अन्याय , अत्याचार , पाखंड व् बाह्म आडंबरों का बोलबाला था। चोरी , डकैती , लूट - खसोट अपनी मानवता जैसे लुप्त - सी हो गई थी। इन विषम परिस्थितियों में मानव जाती के कल्याण हेतु भगवान महावीर...
gautam buddh vaani - गौतम बुद्ध वाणी
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भगवान गौतम बुद्ध भारत की पवित्र भूमि पर महापुरुषों ने जन्म लिया है। उन्हें महापुरुष इसलिए कहा गया , क्योकि वे सांसारिक सुखो में लिप्त नहीं हुए। उन्होंने संसार के सभी भोगो को ठोकर मारी और एक साधारण मनुष्य से बढ़कर कष्ट सहे। ससर के लोगो को सत्य , ज्ञान , अहिंसा व् कलयाण का मार्ग दिखाया। दिन - दुखियों की सहायता व् प्रेरणा दी तथा अंत में ईश्वर के परमधाम को लौट गए। ऐसे ही एक महान अवतार थे भगवान गौतम बुद्ध। उनके बचपन का नाम सिद्धार्थ था। उनका जन्म प्रकृति की अनूठी गोद लुम्बिनी वन में हुआ था। उनके पिता शुद्धोधन कपिलवस्तु के राजा थे। उनकी दो माताए थी। जन्म देने वाली माँ का नाम महामाया था , जबकि पालन - पोषण करने वाली मां का नाम प्रजावती था। राजकुमार होने के कारण सिद्धार्थ को सारे सुख प्राप्त थे। लेकिन उनका मन प्रायः उदास रहता था। ससर के सभी सुख सुख उन्हें तुच्छ लगते थे। एकांत में रहकर वे न क्या - क्या सोचा करते थे। सिद्धार्थ के पिता महाराज शुद्धोधन ने जब अपने पुत्र को ...