Hanuman bhashya part-9 by (Acharya kashyap)
प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया।
रामलषन सीता मन बसिया।।
आप श्रीराम का गुणगान सुनने में आनंद लेते हैं। माता सीता व् लक्ष्मण सहित भगवान् श्रीराम आपके ह्रदय में बसते हैं।
तुलसीदासजी कह रहे हैं - हनुमानजी राम का काज करते हुए प्रभु राम के चरित्र गुणगान के ही रसिया हो गए हैं। जो राम काज में लग जाएगा वह प्रभु के चरित्र वर्णन को सुनने का रसिया हो जाएगा। वह अब केवल सेवा -सुमिरण -भक्ति की ही बात कहने -सुनने में रूचि लेगा। वह राम के चरित्र के सिवा दूसरा कुछ नहीं सुनेगा। आप लोग भी राम का काज करो। राम के चरित्र का ही गुणगान करो। क्यों आलतू -फालतू बात करते हो ? गुरु -गोविन्द की , भक्ति की बात करो , सेवा- सुमिरन करो। क्यों करते हो उसकी शिकायत, इसकी शिकायत , कोई फायदा नहीं है। गुरु के आश्रम में जाकर प्रभु चरित्र सुनते हो और बाहर निकलते ही किसी और का चरित्र पढ़ने लगते हो। करते हो न। दिल्ली का एक व्यक्ति इंटरव्यू के लिए गया। इंटरव्यू में पूछ गया की दुनिया की सबसे आश्चर्यजनक बात बताओ। किसी ने कुछ बताया , किसी ने कुछ बताया। वह आदमी बोला स्टेशन पर दो औरतें पास -पास बैठी थीं और चुप थीं। इंटरव्यू लेने वाले बोले -दो औरतें आस -पास बैठी हों और चुप हों यह संभव ही नहीं है वह बोला -यही आस्चर्यजनक घटना है। चुप रहना आपके लिए संभव नहीं है तो कम से कम सार्थक बात करो , तन्त्व की बात करो जो आपको परमात्मा से जोड़ दे।
राम लषन सीता मन बसिया।।
तुलसीदासजी आगे कह रहे हैं की हनुमानजी प्रभु चरित्र के गुणगान के रसिया हैं चूँकि राम-लक्ष्मण जानकी उनके हृदय में , अंतःकरण में निवास करते हैं। जो जिसके मन में बसा होगा वह उसकी ही तो बात करेगा। यदि तुम्हारे मन में धन -दौलत पाने की आकांक्षा है हो तुम उसी की बात करोगे, यदि परमात्मा पाने की आकांक्षा है तो तुम परमात्मा की बात करोगे। यदि किसी के मन की बात को जानना है तो उससे बात करो। जो मन में बैठा होगा वह बाहर निकल आएगा। घुमा फिरा कर किसी तरह वह बोलेगा तो अपने मन की बात ही बोलेगा। यदि किसी साहित्यकार को जानना है तो उसके साहित्य को पढ़ो ,उसके साहित्य में डूब जाओ। जिसे जानना है उसके साहित्य में डुबो तो यह मालूम हो जाएगा की यह आदमी है कैसा ? वह घुमाफिरा कर के अपने ही बारे में लिखता है। हनुमानजी के मन में भी राम-लखन-जानकी ही बैठे हैं इसलिए ये उनके ही चरित्र का गुणगान करते हैं। अपने रोम-रोम में श्रीराम नाम लिख लिया है। वे हर्ष -शोक से निवृन्त होकर समदर्शी बन गये हैं।-
सम दर्शी इच्छा कछु नाही।
हर्ष शोक भय नहीं मन माहि।।

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