Hanuman bhashya part-6 by (Acharya kashyap)
कपि ध्वज - विजय का प्रतिक
हाथ बज्र औ ध्वजा बिराजै।
कंधे मुंज जनेऊ साजै।।
आपके हाथों में वज्र और ध्वजा है तथा आपके कांधे पर मुंज का जनेऊ शोभायमान है
आगे तुलसीदासजी वर्णन कर रहे है की हनुमानजी के हाथ में बज्र है और ध्वजा है। बज्र यानी इनकी गदा ही बज्र के सामान है। और दूसरे हाथ में ध्वजा यानी झंडा है। जहाँ भी विजय प्राप्त करना होता है वहां हनुमानजी का झंडा सूर्य स्वर में ले जाकर गाड़ दिया जाता है। यह तकनीक है। इसके बाद बीर से बीर भी आएगा तो हनुमानजी की बज्र गदा के सामने मारा जायेगा। ध्वजा विजय का प्रतिक। राजनीति में भी जो पार्टी जीतती है अपना झंडा फहरा देती है। जिस देस के लोग जीतते है अपना झंडा फहरा देते है। स्वतंत्रता प्राप्त के बाद सबसे पहले हमने ब्रिटिश झंडा उतार कर अपना झंडा फहराया। कपिध्वज यह हनुमानजी का यह वचन है की जब तुम संकटो से घिर जाओगे शत्रु तुम्हे घेर लेंगे तब में हुंकार करूँगा। मेरी हुकांर मात्र से सत्रु पक्ष दहल जायेंगे भागने लगेंगे। इस प्रकार में सदैव तुम्हारी रक्षा में रहूँगा ऐसा ही वचन उन्होंने महाभारत युद्ध से पहले पवनपुत्र के नाते अपने छोटे भाई भीम को दिया। इस लिए महाभारत युद्ध में अर्जुन के रथ पर हनुमानजी का झंडा फहरया गया। उसमे हनुमानजी स्वयं बैठे थे। और कृष्ण सार्थी थे। झंडा कृष्ण जी ने लगाया था। अर्जुन उस झंडे की कीमत नहीं समझ रहे थे। जब युद्ध हो रहा था तो अर्जुन बोले ये झंडा हवा रोक रहा है इसे निकाल दे भगवन। उस समय कर्ण से युद्द हो रहा था। कर्ण बाण चलाता तो अर्जुन का रथ पांच हाथ पीछे चला जाता था। अर्जुन जब बाण चलाता तो कर्ण का रथ सौ हाथ पीछे चला जाता। लेकिन जब कर्ण बाण चलाता तो भगवान् कृष्णा कहते - वाह कर्णबीर वाह ! अर्जुन को बड़ा दुःख लगता। यह बोला - भगवान् हम तीर चलाते है तो कर्ण सौ हाथ पीछे चला जाता है। कर्ण तीर चलाता है तो हम पांच हाथ पीछे जाते है। वह वीर हुआ या हम वीर। कृष्ण बोले -अर्जुन वह वीर। तुम्हारे रथ पर तो में भी बैठा हूँ। तुम्हारे रथ पर तो हनुमनजी भी बैठे है उसके बाद भी तुम्हारा रथ पांच हाथ कैसे पीछे चला जाता है। अर्जुन बोला - आप के बैठने से क्या होता है। आप को तो बासुरी बजाने से ही फुर्सत नहीं है। एक बन्दर के झंडे पर बैठने से कुछ होगा। कृष्ण भगवान् चतुर थे। बोले जरा रथ हाको हमको लघुशंका लगी है। और रथ से उतर गये। अब बाताओ युध्द में लघुशंका लगती है। वहां क्या टॉयलेट बाथरूम बना है। लेकिन घोड़े की लगाम अर्जुन के हाथ में पकड़ा कर कृष्ण रथ से उतर गये और हनुमानजी को इसारा किये की आप भी आजाइये पानी पिलीजिए। हनुमानजी भी साथ चले गये। दोनों के अनुपस्थिति में जब कर्ण मारता है बाण इसबार तो अर्जुन का रथ आकाश में घूमने लगता है। पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण क्षेत्र से बाहर जाने लगता है की अर्जुन प्राथना करते है - त्वमेव माता च पिता त्वमेव । त्वमेव बंधू शचसखा त्वमेव।।त्वमेव विद्या द्रविणं त्वमेव।।त्वमेव सर्व मम देव।।
यह उस समय की प्राथना है अर्जुन की में अपना पराक्रम जान गया प्रभु। दिन बनन की देर है दिन नाथ मत हेर। जैसे ही तुम दिन बनते हो दीनानाथ स्वयं आ जाते है। कृष्णजी भी हनुमानजी से बोले -हनुमानजी चाय पानी पीलिया तो वापस चले। हनुमानजी कृष्ण भगवान को अपने कंधे पर बैठा कर छलांग लगाकर ऊपर पहुंचे गये जैसे ही कृष्ण भगवान् ने बैठ कर रथ की लगाम हाथ में पकड़ा और हनुमानजी ध्वजा पर विराजमान हुए वैसे ही रथ निचे आगया। यही हनुमानजी के झंडे का महत्त्व है इसलिए तुलसीदासजी लिखते है -हाथ वज्र अरु ध्वजा विराजे काँधे मुंज जनेऊ साजै।काँधे में मुंज का जनेऊ है। जब ब्रह्मचारियों का जनेऊ संस्कार होता है तो मुंज का जनेऊ ही पहनाया जाता है। अब सूत का जनेऊ भी पहना देते है। मुंज का जनेऊ कहने से तात्पर्य है की वे ब्रह्मचारि हैं सन्यासी हैं और सेवा का ब्रत ले चुके हैं। यह मुंज का जनेऊ सेवा के ब्रत का प्रतिक है। सूत का जनेऊ ग्रहस्त धर्म के ब्रत का प्रतिक है। इसलिए उन्हें मुंज का जनेऊ धारण किया है की राम सेवा राम का काज ही हर काज है। और तुम भी राम काज समझ कर जो भी कार्य करोगे तुमको असफलता कभी नहीं मिलेगी। जब तुम अपना काम समझकर करोगे तो पग-पग पर असफलता मिलेगी। यह बात समझ लेना तुम लोग।

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