Hanuman bhashya part-12 by (Acharya kashyap)
लाय सजीवन बूटी लखन जियाये।
श्री रघुबीर हरषि उर लाये।।
आपने संजीवनी बूटी लाकर लक्ष्मण जी के प्राणों की रक्षा की और श्रीराम ने हर्षित होकर आपको ह्रदय से लगा लिया।
सुना है कृष्णावतार में कृष्ण घर विद्रोह उत्पन्न हो गया था। रुक्मणी बोली -शासन तो हम चलाते हैं कृष्ण तो दिन भर घूमते हैं बासुरी बजाते है रास रचाते हैं कुछ काम धाम तो करते नहीं। यदि हम नहीं रहेंगे तो शासन नहीं चलेगा। प्रत्येक व्यक्ति ऐसे ही चलतें हैं की मेरे बिना काम नहीं चलेगा। उस परम सत्य से हम विस्वास उठा लेते हैं। यहाँ भी कहा जा रहा है लाए सजीवन लखन जियाये यानि हनुमानजी संजीवनी बूटी लाकर लखन को जिला रहे हैं। अब आप कहियेगा भगवान राम ने तो कुछ किया ही नहीं। कहते ही है साधू बाबा बने हैं जरा फुक दीजिये तो यह रोग दूर हो जाये यह संकट दूर हो जाए। चमत्कार कर दीजिये। भगवान राम चमत्कार नहीं कर रहें हैं। चमत्कार तो राक्षस करते हैं। रावण रूप बदल लेता था। मारीची, कालनेमि ,मेघनाथ यह सभी रूप बदलने के कला में माहिर हैं। भगवान् राम का रूप अपरिवर्तित है। स्थिर है। सीता का रूप भी बदलता नहीं है। जब रूप स्थिर हो जाये बदले ही नहीं वहीं अरूप वहीं परमात्मा सरूप है जब छड़ -छड़ रूप बदलता हो तब समझ जाएं वही राक्षस है। परमात्मा का रूप नहीं बदलता है। जब कृष्ण के घर में विद्रोह हुआ रुक्मणि ने कहा की सब शासन हम चलाते रहतें हैं। कृष्ण तो कुछ करते नहीं। रुक्मणि के साथ चक्र सुदर्शन भी था वही पर। वह भी बोला -आप ठीक कहरही हैं यदि हम इनके साथ न जाए तो एक युद्ध न हो। में जाता हुं युद्ध में तब हाथ में लेकर मारते है और में सामने वाले का सिर काट कर आ जाता हूं नाम हो जाता है की भगवान कृष्ण ने मार दिया। गरुड़जी ने भी उनकी हां में हां मिलाई की आप ठीक कह रहे हैं। लोग समझते वह स्वयं प्रकट अंतर ध्यान हो जाते हैं लेकिन बात तो असल में यह है की में इनको अपनी पीठ लेकर उड़ता हु एक बार पंख हिलाता हु तो एक हजार किलोमीटर पार कर जाता हु और माना जाता है की यह छड़ भर में कहीं पहुंच जाते हैं। बहुमत से भगवान कृष्ण के खिलाफ प्रस्ताव पारित हुआ। कृष्ण भी कुछ नहीं कर पाए। बाहर तो लड़ लेते लेकिन भीतर घर में कैसे लड़े , कृष्ण भगवान् ने बहुत सोच विचार किया। एक दिन कृष्ण जी बोलें -गरुड़ जी एक काम कीजिए -गंधमादन पर्वत पर हनुमानजी तप कर रहें हैं जाकर उनसे कहिये की कृष्ण भगवान बुला रहें हैं। गरुड़ जी गए देखा एक बूढ़ा बन्दर श्रीराम जय राम जय जय राम का जाप कर रहा है। गरुड़ जी बोले - अरे बानर चलो भगवान् कृष्ण बुला रहें हैं। हनुमानजी बोले -कौन भगवान् कृष्ण ? हम किसी भगवान कृष्ण को नहीं जानतें। कह कर पुनः जाप में मग्न हो गए। गरुड़ जी लोट कर आ गये। कृष्ण से बोले यह भगवान बड़ा उदण्ड बानर है कहता है आपको नहीं जानता। यदि आप का आदेश हो तो पूछ पकड़ कर घिसिटते हुए ले आते है और आप के सामने पटक देते हैं। भगवान कृष्ण बोले -अच्छा एक बार भीर जाओ। इस बार कहना की भगवान् राम बुला रहें हैं। गरुड़जी फिर गए बोले - हे कपि भगवान् राम बुला रहें है। हनुमानजी ने पूछा - भगवान् राम कहां हैं भगवान् राम ? गरुड़जी बोले द्वारका में। कहां -चलो हम आ रहे हैं। गरुड़जी भगवान् राम ? गरुड़जी बोले -तुम इतने बूढ़े हो की तुमसे उठा नहीं जा रहा है और कह रहे हो की हम चले जाए तुम अपने आप आ जाओगे। चलो आओ हमारी पीठ पर बैठ जाओ। लेकर चले। हमुमान बोले - देखो हम वृद्धा हैं। पहले तुम निचे बैठ जाओ तो तुम पर अपना पैर रखें। गरुड़ जैसे ही निचे बैठे तो हनुमानजी ने अपना बायां पैर उनपर रखा। केवल इतने में ही गरुड़जी चिल्लाने लगे। मुँह से खून निकलने लगा। बाप -बाप करने लगे। हनुमानजी बोले क्या हुआ अभी तो पूरा पैर भी नहीं रखा इतना ही दम है हमको कैसे लेके चलोगे। बाएं पैर से मार दियें धक्का। आपने देखा होगा हनुमानचट्टी बद्रीनाथ के पहले। यहीं पर धक्का मार दिया। निचे गंगा है अलकनन्दा उसमे गिर गए। बद्रीनाथ -केदारनाथ से पहले हनुमानचट्टी आरती हैं। देखा होगा। कहा गया न -राम दुआरे तुम रखवारे। राम द्वार के ये ही रखवाले हैं। हनुमानजी ने वहीँ से जय श्री राम कहा। छलांग लगाई और द्वारका में आ गयें। दरवाजे पर आए तो देख रहें की यहाँ चक्र सुदर्शन जी पहरा दे रहें हैं। हनुमानजी चक्र सुदर्शन से बोले - ज़रा हमको प्रभु राम से मिला दो। हम हिमालय पर्वत से आये हैं। चक्र सुदर्शन भीड़ गए बोले - पहले अपना परिचय दो। हनुमान बोले - हम राम के भक्त हनुमान हैं। भक्त भगवान् के बिच में नहीं पड़ना चाहिए। बड़ा महंगा पड़ जाता है। चक्र सुदर्शन अड़ गए बोले - तुम महंगा सस्ता जानते हो। जानते नहीं हमारा परिचय। किसी को मारकर वापस आ जाते हैं। भगवान् का युद्ध हम ही लड़ते हैं। अपनी डिंक हांकने लगे की हम ही यह चक्र सुदर्शन हैं। अपना अंहकार खूब दिखाया। हनुमानजी सोचने लगे बड़ा उदण्ड सेवक हैं। हनुमानजी ने धीरे से हाथ बढ़ाया और पकड़ लिया। मुँह में खैनी की दबा लिया और द्वार में प्रवेश कर गए। अंदर जाके भगवान् कृष्ण को प्रणाम किया। बगल में रुक्मणि खूब बनाव- श्रृंगार किये बैठी थीं। भगवान् कृष्ण को प्रणाम कर बोले - भगवान् माता जानकी कहां हैं। यह किसे बगल में बैठा लिया है रुक्मणि बिगड़ी आपको हममें जानकी नजर नहीं आ रहीं। हनुमानजी बोले - जानकी तो माता हैं। माता का हृदय वातसल्य से भरा होता हैं। वह होती तो तुरंत पूछती -पुत्र हनुमान इतनी दूर से आये हो पहले कुछ जलपान तो कर लो। आप को देख कर प्रतीत हो रहा है कुछ मंत्र पड़ कर देगीं हम मर हीं जाएगें। कृष्ण ने पूछा हनुमान तुम्हे किसी ने द्वार पर रोका नहीं। हनुमान बोले - प्रभु एक मक्खी बैठी भनभना रही थीं उसे हमने खैनी की तरह मुँह में दबा रखा है। कृष्ण बोले छोड़ दो उसे। यह हमारा चक्र शुरदर्शन हैं। पहरे दार है। हनुमान जी ने थूक दिया चक्र सुदर्शन दूर जा कर गिरा हाथ पैर उसके टूट गए। मलहम पट्टी हुई। तब तक मलहम पट्टी करा कर गरुड़जी भी आगये। दोनों एक दूसरे की मलहम पट्टी देख कर चोट लगने का कारण पूछने लगे। गरुड़ जी बोले - में तो गया था उस वानर को बुलाने पर यह तो बड़ा उदण्ड है लात मार दिया। हमारा टूट गया। सुदर्शन बोलै - हमको भी वही घायल किया है। अब अंदर भगवान् कृष्ण के पास गया है यह माता रुक्मणि को अशब्द कहा है। ये सब भगवान कृष्ण की लीला थी। चालाकी से तीनो का ऑपरेशन एक साथ करा दिया। हनुमानजी भी उनका हाल - चाल पूछ लिया। हनुमानजी बोले - प्रभु ? हम तो आप के भजन में मस्त रहते हैं। कृष्ण बोले - ठीक है जाओ लोट जाओ। जब जरूरत होगी फिर बुला लेंगे। हनुमानजी बिदा लेकर चले गए। उधर से बाहर निकले तो चक्र सुदर्शन और गरुड़ जी वही खड़े थे। दोने जाकर उनके चरण पकड़ लिए। हनुमानजी बोले - क्यों पैर पकड़ रहे हो ? यदि इस बार पैर रख दिया दोनों का नामो निशान मिट जाएगा। हम नहीं समझ पा रहे तुम जैसे कायर नपुंसक लोगो से काम चला रहें हैं। तुम लोगो को तो कोई एक तामचा भी लगा देगा तो तुम्हारी जान नहीं बचेगी। इसका मतलब पुरषार्थ उन्ही का है यदि वह चाहे तो एक तिनके से भी काम करा सकते हैं। दोनों का घमंड चूर -चूर हो गया। दोनों ने पूछा -हनुमानजी आखिर आप की शक्ति का स्त्रोत क्या है। आप वृध्दा अवस्था में भी इतने शक्ति साली कैसे हैं। इस अवस्था में तो सभी शक्तिहीन हो जाते हैं। हनुमानजी बोले - ठीक - ठीक बताऐं। राम रसायन तुम्हरे पासा सदा रहो रघुपति के दासा। हमारे पास राम रूपी रसायन है इस रसायन से हम कभी वृद्धा होते ही नहीं। हम तो राम के दास है और दास को अहंकार होता नहीं है। जिसको अहंकार नहीं होगा वही दास है। दास प्रथा हनुमानजी द्वारा प्रारम्भ हुई। अहंकार ही आप के और परमात्मा के बिच में दीवार है। योग -जप - त्याग - तपस्या जो कुछ हम करते हैं सब अहंकार मिटाने के लिए ही है। जैसे आप का अहंकार गिरता है राम आप में प्रवेश कर जाते हैं। आप राममय हो जाते हैं। अब संसार की कोई कार्य करने में सक्षम वह सफल हो जाते हैं। लाए सजीवन लखन जिआए। श्री रघुबीर हर्षित उड़ लाये।।
यहाँ हनुमानजी संजीवनी बुटी ला रहे हैं घायल लक्ष्मण को जिलाने के लिए। तुम लोग तो कहते राम जी को फूंक देना चाहिए था लक्ष्मण जी तुरंत ठीक हो जाते परन्तु यहाँ संजीवनी बूटी हनुमानजी को लानी पड़ रही है संजीवनी लेने में उन्हें विलंम हो गया तो रामायण मे यह भी आया हैं अर्धरात्रि गई कपि नहीं आयु। राम उठाई अनुज उर लाउ।। राम रो रहे हैं। सूत बीत नारी भवन परिवारा। होहिं जग बारहिं बड़ा।। सब विचारी जियें जागहु ताता। मिलइ न जगत सहोदर भ्राता।। पुत्र - पत्नी धन भवन परिवार ये सब तो पुनः प्राप्त हो जाएगा पर सहोदर भाई पुनः प्राप्त नहीं होगा। राम सहोदर भाई के लिए रो रहें हैं। उनको तो नहीं रोना चाहिए। जो आदमी ठीक-ठीक अपने जीवन को ऐसे जी लेता है की मालूम होता है नाटक है और नाटक को ऐसा कर लेता है की मालूम हो वह जीवन है बस उसका जीवन सार्थक हो गया। जीवन को नाटक की तरह जिओ। दिखाई दे की आप स्टेज पर हैं। लीला कर रहे हैं। इसलिए राम लीला कहा गया है। भगवान इतनी बड़ी लीला कर रहे हैं इसीलिए संजीवनी बुटी लेने भेज रहे हैं। सुना है एक बार बंगाल के कलकत्ता में रामलीला का मंचन हुआ रविंद्रनाथ टैगोर उसमें मुख्य अतिथि थे। जब रावण सीता को अपहरण कर ले जाने लगा तो उस दर्दनाक द्रिश्य को देखकर रविंद्रनाथ टैगोर ने अपना जूता निकाल और रावण पर दे मारा। अपना पार्ट पूरा होने पर रावण बना अभिनेता जुता लेकर अंदर चला गया। जब रामलीला समाप्त हुई पर्दा गिरा तो रविंद्रनाथ टैगोर को होश आया की हम तो लीला देखने आए थे , रावण को नाहक ही जूता मार दिया। पहुंचे रावण बने अभिनेता के पास की भईया हमारा जूता तो वापिस कर दो , हमें घर जाना है। वह अभिनेता बोलै-आपका जूता तो मेरा ईनाम हुआ। पारितोषिक हुआ। आप जैसे विद्वान् साधु-महात्मा भी यदि रावण का अभिनय की जीवन्तता पर अपनी सुध -बुध ऐसे खो दे की यह कलाकार नहीं रावण ही है और अपना जूता दे मारे तो इसका यही अर्थ है की रावण का अभिनय अति उत्तम है इसलिए मैंने यह जूता पारितोषिक समझकर रख लिया। इसका मतलब वह आदमी रावण नहीं है। लेकिन रावण का ही पार्ट मिल गया खेलने के लिए तो ऐसे खेला की वही रावण हो और रविंद्रनाथ टैगोर जैसा प्रतिभावान जागृत व्यक्ति भी सुध-बुध भूल गया। लेकिन तुम लोग को जो जीवन में अपना पार्ट मिला है उसको नहीं करते हो ठीक से और जब पार्ट में फेल हो जाते हो तो रोने लगते हो। हनुमान चलीसा में भी भगवान राम रो रहे है। जिसको तुम भगवान् कह रहे हो , सर्व समर्थ कह रहे हो , परमपिता कह रहे हो , वह रो रहे हैं। हनुमानजी संजीवनी बूटी लेने गए हैं। यही है लीला।
सूक्ष्म लोक एवं संत अपमान।
आपने सुना होगा शबरी के झूठे बेर राम ने खाए। हम भी जब मातंग ऋषि के आश्रम गए। शबरी वहां बेर लेकर आयी। यह हम पहले भी बता चुके हैं। सबने बेर खाए। बहुत मीठे थे। चूंकि सब शाश्वत है इस संसार में। आप जब शरीर छोड़ते हो , मरते हो तब आपसे जिस प्रकार की ऊर्जा निकलती है उसी के अनुसार अन्य लोकों में आप चले जाते हो। जितने इस संसार में लोक हैं , उससे विस्तृत लोक है सूक्ष्म लोक,जिसका हमने अपनी कृति रहस्यमय लोक , व् लोक-परलोक , में वर्णन किया है। आप जितनी सुख -सुविधा में यहां हो , उसी तरह की ऊर्जा के निकलने पर , उसी प्रकार सुख सुविधापूर्ण घर का निमार्ण वहां भी होता रहता है सूक्ष्म लोक में आपके लिए। आप यहां पर रहकर भी अपने घर का निर्माण जो सूक्ष्म लोक में होता है उसको ध्यान के द्वारा देख सकते हैं। ध्यान में यदि सबल नहीं हैं तो सजग होकर सो जाओगे तब उस तुरीयावस्था में जीवात्मा शरीर से निकल कर जाएगा और अन्य लोकों का भ्रमण करेगा। आप कहोगे इस तरह के द्रिश्यों में हम चले गए हैं जो यहीं पर नहीं हैं और स्वप्न समझकर भूल जाओगे। यह और कुछ नहीं आपका अपना घर है जो आप सूक्ष्म लोक में छोड़कर आ गए हैं या वहां सूक्ष्म लोक में जाने वाले हैं इसलिए वहां आपके लिए घर का निर्माण ऊर्जा के द्वारा हो रहा है। यह सब ऊर्जा का खेल है। हम यदि यहाँ किसी से द्वेष कर रहे हैं , किसी से घृणा कर रहे हैं तो हमारे शरीर से घृणा की तरंग निकलेगी। वह तरंग उसी तरह का निर्माण करेगी। उसी तरह कि प्रतिक्रिया होगी। जो यहां आप का गुरु है वहां भी आपकी मदद करेंगे। वहां भी अच्छी आत्माए है , आप वहाँ भी रोते हैं , चिल्लाते हैं। वहां पर भी आप का इलाज होता है। वहां पर भी जब आप जाते हैं तो पूर्व जन्म या वहां के नाते -रिस्तेदार आपका स्वागत करते है।
भीतर बाहर का एकै , जस भीतर तस बाहर देखा।
इस पूरी सृष्टि का एक ही लेखा है। कहीं न कहीं लक्ष्मणजी में थोड़ा सा घृणा का भाव आ गया की एक भीलनी का जूठा बेर हम खाएंगे। वह बेर फेंक देते हैं। यदि परमात्मा भी तुम्हारे साथ हैं तो वे गलती करने पर क्षमा नहीं करेंगे बल्कि और कठोरता से दंड देंगे। यही कारण है लक्ष्मणजी को शक्तिबाण लगा और वही बेर संजीवनी बूटी के रूप में हनुमानजी द्वारा लाया गया जिसे सुषेण वैद्य ने घिसकर पिलाया तब वे श्रीराम जय राम जय जय राम कहते हुए अर्धचेतना से पूर्णचेतना में आए हैं। सच पूछो यह संत के अपमान का ही प्रतिफल था। संत का कोई भी रूप हो अपमान नहीं करना चाहिए। जब तुम किसी संत का अपमान करते हो तो वह अपमान प्रकृति बरदाश्त नहीं करती है, परमात्मा बर्दाश्त नहीं करता। परमात्मा और कुछ नहीं , कहां खोज रहे हो ?परमात्मा का ही अंतिम छोर यह संसार है और संसार का केंद्र बिंदु ही परमात्मा है। आत्मा का ही बाहरी रूप यह शरीर है और शरीर का ही केंद्र बिंदु आत्मा है। संसार परमात्मा का ही बाहरी विस्तार है। वह परमात्मा विस्तृत होते -होते संसार हो गया। आप संसार को पकड़ लेते हैं। केंद्र बिंदु को छोड़ देते हैं। वह केंद्र बिंदु है। कबीर साहब कहते है - साधु -साधु मुख कहें, पाप भसम हो जाय। साधु सब्द का भी यदि मुख से उच्चारण करते हो तो पाप भस्म हो जाता। साधु में दो पंख लगे होते हैं ज्ञान और वैराग्य के। इन पंखो के सहारे वह ऊपर उड़ जाता है। तुम गाली देते रहो, अपमान करते रहो। न तुम्हारी वह गाली ले जायेगा, न अपमान ले जायेगा। न वह तुम्हारा स्वागत ले जायेगा। लेकिन तुमने जो किया है वह प्रकृति ने पकड़ लिया। प्रत्येक क्रिया की विपरीत प्रति क्रिया होती है , आपको फला फल मिल जायेगा। यदि परमात्मा की अनुकंपा है तो तुरंत मिल जायेगा , यदि अनुकंपा नहीं है तो हो सकता है विलम्ब से मिले, अगले जन्म में मिले या हो सकता है यह दौर जन्मो जन्म चलता चला जाए।
श्री रघुबीर हरसि उड़ लाये।।
रघु इस शरीर रूपी किले को भी कहा जाता है यह शरीर भी एक किला है। इसका भी पति यानी मालिक है। यह पति रघुपति हो जाता है। आप अपने शरीर को ठीक से समझ लोगे तो उस रघुपति को भी समझ लोगे। दिव्य गुप्त विज्ञान भी शरीर को समझने की क्रिया है। इसमें बताया जाता है तुम्हारे अंदर कहां -कहां कौन से देवता हैं , कहां इस रघुपति का किला है ? रघुपति हरषि उड़ लाये , अर्थात राम , हनुमान को संजीवनी बूटी लाने पर हर्षित हो कर हृदय से लगा रहे हैं की हे हनुमानजी यदि तुम नहीं रहते तो आज लखन जी बचते नहीं। सारा श्रेय तुम्हारा है। तुमने हमारी भी लाज रख ली है अन्यथा कौन सा मुँह लेकर अवध पुर जाते। आया है रामायण में -
जैहउँ अवध पवन मुँहू लाइ। नारि हेतु प्रिय भाई गंवाई।।
अर्थात हे हनुमानजी पत्नी के लिए बंधू गवा कर कौन सा मुख लेकर अवध पुर जाता। तुमने दोष से मुक्त करा दिया। इसी कारण अत्यंत हर्षित हो कर हनुमानजी को राम जी को अंक में भर लेते है। दिव्या गुप्त विज्ञान में हगिंग थैरेपी बताई जाती है। हगिंग थैरेपी ऐसी थैरपी है इसमें जो गुरु पूर्ण रूप से उर्जावंतित हो गया है और शिष्य कार्य पर प्रसन्न हो कर उसे अंक में भर लेता है तो उस शिष्य को साधना करने की जरूरत नहीं है , उसी समय तत्काल वो पूर्णत्व को प्राप्त कर लेता है। राम के हनुमानजी को अंक भरते ही यही घटना घटित हो गई एवं वो पूर्णत्व को प्राप्त कर गए।

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