Hanuman bhashya part-11 by (Acharya kashyap )

भीम रूप धरी असुर संहारे। 

रामचंद्र के काज संवारे।। 




आपने भयंकर रूप  धारण कर राक्षसों का संहार किया और भगवान श्रीराम के उद्देश्य को सफल बनाने में सहयोग दिया। 


यहां तुलसीदासजी कह रहे हैं -पवनपुत्र हनुमानजी भीम के समान सबल सशक्त होकर  असुरों का संहार करते हैं और प्रभुराम द्वारा प्रदन्त काज को संवारते हैं, पूरा करते हैं।  मजबूत  में , सबल में , सशक्त में भीम  का नाम आता है।  भीम भी पवन पुत्र हैं।  भीम को भी पवनपुत्र ही कहा गया है।  पवन का एक अर्थ होता है प्राणवायु।  तुमको एक खास विधि बता। दें  स्वरोदय के अनुसार तुम अपने पवनको ,  स्वर को इतना नियंत्रित कर लो  जब  ध्यान में बैठो तो तुम्हारा यह शरीर पृथ्वी से तीन-चार फिट ऊपर उठ जाए।  यह पवन विद्या  कहलाता है। सुना होगा वह पवन भक्षण करके तपस्या कर रहा है।  पवन भक्षण यानी पवन खाया जाता है कहीं? योग में यह प्राणायाम की एक तकनीक है।  स्वरोदय की एक तकनीक है।  तुम जो दवा खाते हो वह सीधे रोग तक नहीं जाती है।  ठोस से वह तरल बनती है।  तरल से फिर ऊर्जा में रूपांतरित होती है।  ऊर्जा जाकर उस  रोग को ठीक करती है।  न की तुम्हारे कपाल में दर्द है तो गोली सीधे कपाल में चली जाएगी।  पहले ऊर्जा में  वह बदलती है।  इसलिये हमने जो दिव्य गुप्त विज्ञान ,  दिया है वह ऊर्जा रूप में दिया है , इसकी ऊर्जा  जाकर कैसे तुम्हारे शारीरिक -मानसिक रोगों को ठीक करती है , दिव्य गुप्त विज्ञानं के द्वारा तुम कैसे अपने को सबल -सशक्त बना लेते हो, इसे सीखकर अनुभव कर लो।  उसी में एक विद्या है पवन विद्या।  पवन विद्या सिख कर सीधे प्राण को ही ले लो तो तुम्हारा शरीर सबल -सशक्त हो जाएगा।  जैसे पहले रेलगाडी चलती थी तो उसमें कोयला जैसे ठोस ईंधन प्रयोग किया जाता था जिससे उसकी गती काम थी।  वजन ढोने की क्षमता भी काम थी।  पांच -सात बोगी ही खिंच पाती थी।अब जैसे ही ईंधन बदला, ठोस से तरल हुआ , कोयला से डीजल में बदला तो रेलगाड़ी की क्षमता बढ गयी।  उसकी बोगियां भी बढ़ गयीं।  जैसे ही तरल ईंधन भी हटा दिया गया सीधे ऊर्जा से , बिजली से जोड़ दिया गया तो अब देखो ६०-७० बोगियां जुड़ गयीं साथ ही उसकी माल ढोने  की क्षमता भी बढ़ गयी।  ऊर्जा  स्रोत जैसे -जैसे ठोस से गैस में रूपांतरित होता है वैसे -वैसे तुम्हारी ऊर्जा बढ़ती जाती है।  उसी तरह से तुम लोग जो १-२  किलो भोजन करते हो  उससे तुम्हारा शरीर सबल- सशक्त नहीं होगा।  यह सबल -सशक्त होगा जब तुम सीधे प्राण रूपी ऊर्जा ग्रहण करोगे।  जब तुम पवन लेने में सक्षम हो जाओगे , प्राण लेने में सक्षम हो जाओगे , इसीलिए हम लोग प्राणायाम कहते हैं।  प्राण शब्द का कोई  अंग्रेजी शब्द  नहीं है, यह विशुध्द भारतीय शब्द। है  विज्ञान ने खोज लिया है की तुम श्वास लेते हो वह प्राण नहीं है , वह केवल ढोता  है प्राण को।  जैसे ही प्राण, अंदर जाता है , ह्रदय फेफड़ें उसको रोक लेते हैं , जो  निकलती है हवा बाहर वह दूषित है। यह श्वास तो केवल प्राण का वाहन है ढोकर ले जाता है।  प्राण को अंदर तक  जहां प्राण सोख लिया जाता है।  अब जो श्वास बाहर निकलता है  वह बिना प्राण का निकलता है जिसे तुम कार्बन डायआक्साइड (co 2 )  कहते हो  प्रदूषित वायु है।  जैसे ही जैसे ही तुम सीधे प्राण को ग्रहण  करने की तकनीक जान  जाओगे तो तुम भी पवनसुत बन सकते हो।  पवनसुत का अर्थ तुम ठीक-ठीक समक्ष लो कथा कहानी से काम नहीं चलेगा।  श्रीराम नाम लेकर निष्काम से युद्ध में भी उतरोगे तो वह पूजा हो जाएगा , समाधी घटित हो जाएगी। सभी काम श्रीराम का होगा।  वह सुन्दर होगा। यही उपदेश भगवान् कृष्ण भी गीता में अर्जुन को दे रहे हैं।  हनुमानजी सदैव योगयुक्त रहते हैं।  अतः राम का कार्य करने में , संवारने में सफल होते हैं।  

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