Hanuman bhashya part-10 by (Acharya kashyap)

सूक्ष्म रूप धरि सियहिं दिखावा। 

बिकट रूप धरि लंक जरावा।। 




आपने अति सूक्ष्म धारण कर माता सीता को दिखाया तथा भयंकर रूप धारण कर रावण की लंका को जलाया। 

 

तुलसीदासजी कहते हैं-सूक्ष्म रूप धरी सियहिं दिखावा।  हनुमानजी जब सीताजी से मिलने गए हैं तो लेंका में प्रवेश करने से लेकर उनके सामने अशोक वाटिका में प्रत्यक्ष होने तक मसक का सूक्ष्म रूप ही धारण किए रहते हैं।  हनुमानजी माता समान जानकी के समक्ष सूक्ष्म रूप में ही जाते हैं क्योकि कोई भी पुत्र चाहे कितना ही बलवान शक्तिशाली क्यों न हो, माता पिता के समक्ष तो वह छोटा ही होता है।  लेकिन जब शत्रुओं के सामने जाना है तो उसका वही रूप विकराल रूप मे बदल जाता है जानकी उन्हें सूक्ष्म रूप में देखकर बोलीं - अरे बेटा !तुम इतने छोटे हो यहां लंका में तो बड़े-बड़े राक्षस हैं, मार डालेंगे।  इतने तुम छोटे हो , पैर से दबा देंगे, तो मर जाओगे।  हनुमानजी बोले-माताजी यह तो समय बताएगा।  अभी तो हमको कुछ खाने की आज्ञा दे दीजिए।  भूख लगी है।  जानकी बोली - तुम क्या खाओगे ? एक फल खाओगे तो तुम्हारा पेट ही भर जाएगा।  वह बोले - माता जी हमारा दूसरा भी रूप है।  विकत रूप जब दिखाया तब जानकी आश्चर्य में पड़ गयीं।  यह सब सिध्दियां हैं अपने आपको बहुत छोटा ,बहुत हल्का, बहुत भारी आप बना सकते हैं।  हनुमानजी के पास भी ये सब अष्ट सिध्दियां हैं।  भक्त का यह प्रथम लक्षण है की वह अपने आराध्य के यहां अति लघु रूप में जाता है व् दर्शन करता है जबकि अहंकार व्यक्ति विकत विकराल रूप एवं कर्कश वाणी से अपने गुरु के पास भी जाता है।  प्रत्येक  व्यक्ति को लघुरूप में माता-पिता के लिए, और विकट रूप शत्रुओं के लिए होना चाहिए। हनुमानजी की यह बात अपने में उतार लेने पर आपको समाज में सफलता मिल सकती है।  

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