Hanuman bhashya part-13 by Acharya kashyap
रघुपति किन्हीं बहुत बढ़ाई।
तुम्ह मम प्रिय भरतिहिं सम भाई।।
हे अंजनीनंदन ! भगवान श्रीराम ने आपकी बहुत प्रशंसा की और कहा की तुम मुझे भ्राता भरत समान प्रिय हो।
रामजी हनुमानजी की प्रसंशा करते हैं। प्रसंशा किसकी की जाती है ,जो शिष्य सार्थक होगा उसकी। जो शिष्य सार्थक होगा वह अपने गुरु के कार्य में उसकी सोच से बढ़कर मदद कर देता हैं। गुरु यदि एक गिलास पानी माँगा तो एक शिष्य वह भी होगा जो पानी गन्दगी है या गिलास गन्दा है यह नहीं देखेगा बस पानी लाकर रख देगा। सार्थक शिष्य उसी गिलास को पहले साफ़ करेगा फिर फ़िल्टर पानी भर कर ऊपर से निचे से ढक कर लाएगा, दोनों के लाने में अंतर हो गया न। काम तो एक ही है। एक शिष्य उस कार्य औपचारिकता की तरह पूरा कर रहा , सार्थक शिष्य श्रध्दा का , भक्ति का परिचय दे रहा है। उसी कार्य में एक आशीर्वाद प्राप्त करता है तो दूसरा श्राप। काम तो एक ही है। रामजी भी हनुमान जैसे सार्थक शिष्य के कार्य से अत्यंत प्रसन्न हैं। बहुत तरह से बड़ाई कर रहे हैं की - हे हनुमान ! तुम भरत के सामान ही मेरे भाई हो , उसी के सामान मुझे प्रिय हो। बड़ाई तो हृदय से ही निकलती है और भगवान् राम ने यदि अपने मुख से किसी की बड़ाई की है तो हनुमानजी की ही बढ़ाई की है। इसलिए हनुमानजी की सर्वतत्र पूजा होती है। जितने राम के मंदिर नहीं होंगे उससे ज्यादा हनुमानजी के मंदिर हैं। भगवान राम के ही पुत्र लव- कुछ हैं उनका कहीं मंदिर नहीं देखा होगा लेकिन हनुमानजी का मंदिर सर्वतत्र है यह उनकी सेवा का प्रतिफल है।

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