Hanuman bhasya by (Acharya kashyap) part 1.
'अर्थ श्री गुरु स्तुति महात्म्य'
श्री गुरु चरण सरोज रज, निज मनु मुकरु सुधारि||
बरनउँ रघुबर बिमल जसु, जो दायकु फल चारि||
श्री महाराज के चरण कमलो की धूलि से अपने मनरूपी दर्पण को पवित्र कर मैं श्री रघुवीर के निर्मल यश का वर्णन करता हूँ , जो चारो फल (अर्थ, धर्म, काम और मोक्ष) देने वाला हैं |
तुलसी दास जी कह रहे हैं कि 'श्री गुरु चरण' रूपी कमल की रज से अपने मन रूपी दर्पण (मुकुर) को साफ़ करके मैं 'श्री राम' के विमल यश का वर्णन कर रहा हूँ, जो इस सृष्टि में चरों फलों - अर्थ , धर्म,काम, मोक्ष का प्रदाता हैं।
तुलसी दास जी हनुमान चलिसा में सर्वप्रथम 'श्री गुरु ' की चरण रज के प्रताप की और इंगित कर रहे हैं | कह रहे हैं यह चरण रज 'श्री युक्त ' है| एक 'श्री ' में ही लक्ष्मी , दुर्गा सरस्वती तीनो की शक्ति समाहित है | अतः 'श्री गुरु' के चरण रूपी कमल की रज यदि मिल जाये तो मनरूपी दर्पण साफ हो जाए और आप बादशाह बन जाओ | बादशाह न बनने का कारन यह है | यह मन चंचल है, चोर है, विशुद्ध ठगाहार है जन्मोजन्म से केवल ठग रहा है | 'ई मन चंचल, इ मन चोर , इ मन शुध्द ठगाहार ", यह मन ही आपको गुलाम बनाए हुए है | मन को आप समझे ही नहीं | यहीं आपके गुलाम या बादशाह बनने का कारन है " बादशाह बनना है या गुलाम दोनों आप पर निर्भर है | हमारे बंधन और मोक्ष का कारण भी यह मन ही है | 'मन एव मनुष्याणां कारण बंधन मोक्षयो | ' जब सबकी जड़ यह मन ही हैं तो इस मन को गुरु चरण रज से साफ़ कर लो | तुलसीदासजी इसी की तकनीक , सूत्र, फार्मूला यहां बता रहे हैं संत तो निर्देशित करते हैं | प्रयोग की विधि तो गुरु बताते हैं |
आगे कह रहे हैं- 'बरनउँ रघुबर बिमल जासु, जो दायकु फलचारी |, जब आपके मन का दर्पण श्री गुरु के चरण कमल की रज से यानि धूल से साफ हो जाएगा तब आप रघुबर यानि श्री राम के विमल यश का गुणगान करने में सछम हो जाओगे जो चारों फलों अर्थ, धर्म,काम और मोक्ष का प्रदाता है | चार ही फल होते हैं अर्थ, धर्म, काम,मोक्ष | सब कुछ यही प्राप्त हो गया शेष कुछ रह गया बताओ पाने के लिए | अर्थ से मोक्ष तक सब कुछ श्री गुरु की चरण रज से मन के शुद्ध होते ही प्राप्त हो गया | यही तुलसीदासजी इंगित कर रहे हैं | इश्का मतलब हनुमान चलिशा अभी शुरू भी नहीं हुई और समाप्त हो गई | गुरु की इस महंता का वर्णन करने के लिए तुलसीदासजी अयोध्याकाण्ड की पहली चौपाई को हनुमान चालीसा में लेकर आए हैं | वे हनुमान जी की गुरु रूप में ही स्तुति कर रहे हैं |
हमसे अक्सर लोग कहते हैं हमने शिवजी को गुरु मान लिया हैं, हनुमानजी को गुरु मान किया हैं या फलना को गुरु मान लिया है| कोई अपने मन से गुरु को मान लेता है तुम वहा-वहा गुरु मान लेते हो जहाँ-जहाँ तुम्हारे अहंकार की रक्षा हो| तुम अपने अहंकार की रक्षा में सदैव तत्पर्य रहते हो | चुकीं परत्यक्ष गुरु मिलने पर तुमको डाट सकता हैं, मार सकता हैं , फटकार सकता है | तुम्हारा अहंकार यहाँ पर विलीन होने का डर है | इसलिए समर्थ जीवन सद गुरु से डर लगता है |
बहुत लोग हनुमान चालीसा का पाठ करते रहते हैं फिर आते हैं गुरु जी हमारा काम ही नहीं हो रहा हैं | कुछ बन हीं नहीं रहा | जब तुम गुरु के चर्णनों मैं ही नहीं गए | सरन में ही नहीं गए | गुरु ने तुम्हे आदेश ही नहीं दिया की तुम इसका पाठ करो या ना करो | तुम केवल पाठ के लिए जा रहे हो , कुछ मिलेगा ? अब मान लो की डायबटीज की कोई दवा अच्छी हो अब तुम पहले से ही दवा खाने लगो की अमुक व्येक्ति खा रहा है , उसको डायबटीज है , हम पहले से खा रहे हैं इस लिए हमको डायबटीज नहीं होगी | क्या यह उचित हैं ? यही हम लोग करते आरहे है | कही से कोई किताब मिल जाएगी पाठ करना सुरु कर देंगे | न उसका तत्व जानेगे न रहस्य | काहे भाई ? वह कर रहा है तो हम भी कर रहे हैं | यह देखा देखि पाप देखा देखि पुण्य नहीं होगा |
एक स्कूल मैं मास्टर साहब बच्चो को पढा रहे थे | हिसाब का एक प्रश्न मास्टर जी ने बच्चो से- बच्चो दस भेड हैं यदि एक भेड कुए में गिर गई तो बताओ कितनी बचीं ? बच्चे एक स्वर में बोले- यह कौन मुश्किल सवाल है गुरु जी, एक गिर जाएगी तो नव भेड़े बचेंगी उनमे एक गड़ेड़िये का बच्चा भी था उसने भी हाथ उठाया | मास्टर जी बोलो- तुम तो कभी कुछ बताते नहीं | वह बोलै - मास्टर जी इसका उत्तर ठीक-ठीक हम ही बता सकते हैं यह लोग नहीं बता पीएंगे | मास्टर जी बोले - अच्छा बताओ| वह बोला - मास्टर जी यदि एक भेड़ कुए में गिर गई तो सारी गिर जाएगी एक भी नहीं बचेगी हम गड़ेड़िये हैं भेद आगे आगे चलती है तो सब उसके पहिचे आँख बंद करके उसके पीछे चलती है एक गिर जाएगी तो सब गिर जायेंगे | एक नहीं बचेगी नव कहा से बचेगी ? हिन्दू धर्म में भी लगभग यही िस्थति हैं | एक बार एक व्यक्ति आम की गठरी लेकर जा रहा था | बबुल के पेड़ के पास उसने विश्राम किया गठरी में से एक आम गिर गया | संयोग से दूसरा व्यक्ति वहा से गुजरा उसे वह आम मिला | उसने समझा की वह पेड़ से आम गिरा है (प्रत्यक्ष क्रीम परमाणाम ) | अब वह सब रोज सुबह-सुबह जा कर आम खोजते है की आम मिलेगा | आम मिले न मिले बबुल का काटा जरूर गड जायेगा | पैर से खून जरूर निकल जायेगा | झूठ भी नहीं मान सकते| जिसको मिला उसने दिखाया है | इसलिए प्रत्यक्ष देखा हुआ भी सच नहीं होता है देखा हुआ भी सच नहीं होता है | प्रत्यक्ष सुना हुआ भी सच नहीं होता है | जब तक से तुम समर्थ सद गुरु की चरण में नहीं जाते हो समर्थ सद गुरु से विधि नहीं जानते हो तब तक इधर-उधर भटकने से , दौड़ने से तो अच्छा है कुछ मत करो | तुम गंगा के तट पर पहुच गए हो गंगा दिखाई पड रही है पर तुम जानते नहीं यही गंगा हैं | दो कदम बढ़ने पर तुम गंगा में पहुंच जाओगे केवल इतनी दूर है लेकिन किसी गैर जानकार से या अपने जैसे ही किसी दूसरे व्यक्ति से पूछ लेते हो बंधू | , गंगा देखि है ? वह कह देगा- हाँ , यहाँ से रिक्सा पकड़ लो मुगलसराय चले जाना | मुग़लसराय से ट्रैन पकड़ना दिल्ली चले जाना | दिल्ली से ट्रैन पकड़ना रामेश्वरम चले जाना | वही गंगा का दर्शन होगा | जितना तुम चलोगे उतना दूर खोते चले जाओगे | इस संसार का भटकाव तो फिर भी ठीक है पर अध्यात्म का भटकाव इतना खतरनाक है की जन्मो - जन्म आप का चला जायेगा | जब की अध्यात्म में ही गुरु जगह - जगह मिलते हैं | एक कोड़ी निकालोगे कशी में तीन गुरु खड़े मिलेंगे | प्रत्येक कहेगा हम सारे शास्त्र जानते है , हम रामायण जानते है , गीता जानते है , भागवत जानते है विद्वान् है , सब कुछ जानते है दुशरा तो नीपड़ है गवार है, कुछ नहीं जनता है | तुम भी अक्सर कहते हो वह गुरु बहूत शास्त्र जानते है , बहुत रामारण , गीता बोलते हैं | अच्छे हैं | यदि इन्हे तुम विद्वान कहते हो तो रट्टू मल किसे कहोगे | विद्वान् तो वह है जिसे आत्मा और परमात्मा का ज्ञान हो गया हो |
nice
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