Hanuman bhashya part-5 by (Acharya kashyap)
सुंदरता -कुरूपता
कंचन बरन बिराज सुबेसा।
कानन कुण्डल कुंचित केसा।।
आपका रंग कंचन जैसा है। सुन्दर वस्त्रो से तथा कानों में कुण्डल और घुंघराले बालों से आप सुशोभित हैं।
तुलसीदासजी ने सर्व प्रथम अपने गुरु की वंदना की फिर बल बुध्दि और ज्ञान गुण का सागर कह कर हनुमान जी की गुण गान किया अब उनके व्यक्तिगत रूप पर आ गए हैं। हाला की हनुमानजी ने अपने विषय में स्वयं कहा हे की हमारा रूप ऐसा है जो प्रात: काल हमारा नाम लेलेगा उसे भोजन नहीं मिलेगा। प्राप्त नाम जो लेहीं हमारा। जो दिन तहिं न मिलहिं अहारा।। इसलिए उनके रूप का नहीं गुणों का वर्णन किया गया हैं। अमेरिका के विज्ञानिको का नवीनतम शोध भी आया की जो लोग सुन्दर नहीं होते बल्कि कुरूप होते है उनमे परमात्मा कहीं न कहीं ऐसी प्रतिभा दे देता है ऐसी छमता दे देता हे की वह अपने प्रतिभा व क्षमता से लोगो को प्रभवित कर देता है। जिसका शरीर सुन्दर होता है लेकिन प्रतिभा की कमी होती है उसका भी चुनाव कर लिया जाता है क्यों की उसकी व्यक्तिगत पर्सनेलिटी काम कर जाती है। लेकिन शोध से ये निष्कर्ष भी सामने आया की जितने प्रतिभा संपन्न लोग है दुनिया में अक्सर अपने रूप रंग में असुंदर होते है चाणक्य भी कुरूप थे। इतने काले की उनके दांत तक काले थे। हनुमानजी की रूप आप अभी देख ही रहे हो। हनुमानजी की ही रूप मिल गया था न नारद जी को जब स्वयंवर रचाने गए थे। रिजेक्ट हो गए थे। लेकिन यह भी सत्य है की सुंदरता कुरूपता शरीर में नहीं रहती है तुम्हारे आँखों में रहती है। लोग कहते हें लैला बहुत सुन्दर नहीं थी लेकिन यह मजनू की आँखों में बस गई थी। उसका पिता बहुत कहता था की तुमको हम लैला से ज्यादा सुन्दर ला देगें लेकिन मजनू की आंख में कोई और नहीं समा रही थी। सुंदरता तुम्हारे आँखों में बस्ती हैं। तुलसीदासजी की आँखों में अपने गुरु रूप हनुमानजी की सुंदरता समा गई है। कह रहें है कंचन बरन विराज सुबेसा, यथार्थ कंचन यानी सोना जैसा रंग है। तुलदासजी के लिए यह बहुत सुन्दर है लेकिन आज के सन्दर्भ मे किसी का रंग सोने जैसा होगा तो कोई पूछेगा पीलिया रोग हो गया है क्या ?लेकिन तुलसीदासजी की आँखों में यही उनको सुंदरता है। तुलसीदासजी लो कंचन वर्णन ही बहुत सुन्दर लग रहा है। सुंदरता तुम्हारे अंदर की बात है। हिर्दय की बात है। तुम्हारा हिर्दय जिससे मिल गया यह तुम्हारे लिए सुन्दर हो गया जिससे तुम्हरा हिर्दय नहीं मिल रहा है यह कुरूप है जब तुम गहरे ध्यान में जाओगे तब तुम्हारे शरीर से जो आभा निकलती है यह स्वर्ण मय (कंचनयुक्त ) ही निकलती है आप किसी भी महापुरुष के फोटो में इसे देख सकते है। तुलसीदासजी गहरी श्रध्दा एवं भक्ती के द्रिष्टि से देख रहे है। जिसका वर्णन उनकी लेखनी से स्वतः स्फूर्त हो गया है। कानन कुण्डल कुंचित कैसा।।
आगे बढ़ाई किये जा रहे हैं उनका मुख देख कर की कान में भी कुण्डल है सोने का। हजारो हजार बन्दर देखें होंगे क्यों कुण्डल पहन कर घूमते है। देखा है भी। कुण्डल यदि पहना भी दो तो पेड़ पर चढ़ते हुए उसके लिए यह घातक हो जाएगा। यह कुण्डल फस जाएगा किसी डाली से या तो कान जाएगा या कुण्डल जाएगा। इस लिए यह समझ लो की ये राज कुमार थे। ये बन्दर नहीं थे तुमने बन्दर बना दिया। बानर जाती है। अभी भी झारखण्ड के आदिवासी अपने को हनुमानजी का ही गोत्र मानते है। हनुमानजी को ही अपना पूर्वज मानते है। कुछ लोग जामवंत को अपना पूर्वज मानते है। ऐसी बहुत सारी आदिवासी जातियां मिलेगी भारत में जगह जगह।
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