Hanuman bhashay -part 2 by (Acharya kashyap)

 ,ज्ञान -गुण सागर,



जय हनुमान ज्ञान गुन सागर। 

जय कपीस तिंहु लोक उजागर।।

हे केसरीनन्दन! आपकी जय हो ! आपके ज्ञान और गुन  की कोई सिमा नहीं है।  हे कपिवर ! आपकी जय हो।  तीनों लोकों (स्वर्ग -लोक, भू-लोक और पताल लोक ) में आपकी कीर्ति उजागर है। 


यहां हनुमान जी की प्रशंसा कर रहे हैं तुलसीदासजी।  जब तुम को किसी से काम कराना होता है तो तुम भी पहले उसकी प्रशंसा करते हो।  यदि किसी से काम लेना है और तुम उससे कह दो की तुम चोर हो , बदमाश हो , गुण्डा  हो , लफंगा हो फिर उससे अपना कोई काम करने के लिए कहो तो वह काम करेगा या मार कर भगा देगा।  चोर को भी कहना पड़ेगा आप तो महान हो।  साधु हो।  आप जैसा कोई साधु ही नहीं देखा आज तक लेकिन यहाँ तो हनुमान जी साधुओ के रक्षक हैं।  बाए भुजा असुर  मारे दाहिने भुजा संत जन तारे।। हनुमान जी असुरो को मारते है तो साधुओ की रक्षा भी करते है ,ज्ञानियों में भी अग्रगण्य  है।  बुद्धि मानो में भी आगे है।  शक्ति में भी आगे हैं।  अकेले ऐसे देवता हे जो भक्ति में अमर हैं।  पहले भी थे  अब भी हैं।  तुम पूछेोगे कैसे?  हमारे साथ भी मिलते हैं।    अभी कुछ दिन पहले की घटना हे।  राजस्थान में एक बाबा ने किसी पांच सात  साल के लड़के को दीक्षा  दी।  व श्री राम जय राम जय जय राम का कृतन करने के लिए बता दिया।  दस दिन बाद जब गुरूजी जाने लगे तो वह बोला -गुरूजी हमको भी साथ लेलीजिये।  नहीं माना पीछे -पीछे लग गया तो गांव के बाहर संयोग से एक हनुमान जी का मंदिर मिला गुरु जी ने कहा की -तू इसी मंदिर में रह जब तक नहीं लौटता हु।  वह लड़का सुनसान मंदिर में रह गया देखो यहीं संकल्पशक्ति हैं।  तुम रोज संकल्प लेते हो की आज के बाद गुटका नहीं खाऊंगा सिगरेट नहीं पिऊंगा।  शाम होते- होते कहते हो चलो आज पि लेते हे कल से नहीं पिएंगे।  कोई भी सराबी दिन भर कस्मे खाता हे और शाम होते ही सराब खाने पहुंच कर कहता हे आज पि लेते  हे कल देखा जायेगा।  जितने नसेड़ी हे उनमे सबसे बड़ी कमजोरी यही हे की उनमे संकल्पसक्ति नहीं हैं।  इच्छा सकती नहीं हैं।  यदि उनमे इस्छा सकती आजाये तो उनका विषय में कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता वह छोटा सा लड़का उसकी इच्छाशक्ति जाग्रत हो गई और वह मंदिर में रह कर श्री राम जय राम करने लगा।  शाम को उसके घर के लोग ले जाने आए तो बोला - में नहीं जाऊंगा गुरु जी ने कहा हे यहीं पर रहो अकेले।  तुम दर जाओ गे।  भाग जाओगे।  कि गुरु जी कही साप निकल आया तो।  अरे तुम साप से दर रहे हो या अपने मन से दर रहे हो।  इच्छाशक्ति  नहीं हे।  जब हम यहाँ दूमड़ी पड़ाव वाराणसी के इस आश्रम अश्थल पर आए तब यह सबसे ख़राब जगह थी यहाँ मर्डर होता था।  यहाँ स्मैक भी पिया जाता था।  जुआ भी खेला जाता था। हमारे आने जाने रहने से अंतर आया।  वह महात्मा जी यहाँ अकेले रहना सुरु किए खाना बनाने के लिए लकड़ी भी नहीं थी पानी  भी दूर गांव से लाते थे और रहते -रहते धीरे -धीरे आज आये चमन बन गया आज यहाँ सबकी निगाहें  लग गई।  आज न यहाँ स्मैकि हे ,न सराब पिने वाला, न मर्डर हो रहा हैं।  यही हे श्री नाम का प्रभाव श्रद्धा और भक्ति से इस संसार में कुछ भी किया जा सकता हैं।  यदि श्रद्धा आप में नहीं हे आप को  कोई भी मंत्र दिया जाए कोई भी विधि दिया जाये कुछ संभव नहीं है।  यह श्री राम जय राम मंत्र ही बनता हे चाहे साधू के रूप में रहो या ग्रहस्त के रूप में या सन्यासी के रूप में आप राजा की तरह रहो गे वह बालक सचमुच मंदिर में जाकर मंत्र का जाप करने लगा।  तुलसीदासजी भी कहते हे -गुरु के वचन प्रतीत जेहि , जिसको अपने गुरु के वाचन पर विस्वास नहीं हैं। , सपनेहु सुगम न शुख  सीधी तेहि।। उसे सपने में भी कुछ सिध्दि नहीं मिलती हैं।  साधू कबीर भी कहते हे जो गुरु के वचन पर विस्वास  नहीं करता वह चौरासी तब तक घूमता हे जब तक सूर्य चाँद  हैं  -गुरु दोही अउ मन मुखी नारी पुरुष बेविचार।  ते नर चौरासी भरमिहे ,जो लोग चंदीवाकर ।  उस बालक ने पांच वर्ष की उम्र में प्रतीत कर ली विस्वास कर लिया और हुनमान जी के मंदिर में रहने लगा घर वालो ने शमझाया और भुझाया  चलने का आग्राह किया।  यह - २०-२५ वर्ष पूर्व की ही बात होगी।  पौराणिक बात नहीं है।  लड़के ने काहा गुरु जी का आदेश है , अब हम यहीं रहेंगे।  वह लड़का अटल विशवास के साथ उस मंदिर में रह गया।  बिस वर्ष तक रहा।  उम्र पच्चीस की हो गई।  यही है एकतरफा विशवास।  एकतरफ़ा श्रद्धा पर चलता है यह काम।  आसपास के लोग कहते तुमने श्री राम जय राम बिस साल तक किया जवान भी हो गया।  जवानी बर्बाद हो रही है।  चलो शादी -  विवाह कर लो।  माँ बाप बच्चे की शादी नहीं कर देते और जब तक शादी के बाद वह अपनी पत्नी से पिट नहीं लेता तब तक उसको चैन नहीं आता।  चूँकि माँ बाप दूसरे से बदला ले  नहीं सकते अपने बच्चों से ही ले सकते हैं।  जब बच्चा पिट लेता है तब बड़े प्रेम से चादर ओढ़ कर सोते हैं।  कोई अपने बच्चे को ध्रुव नहीं बनाता , प्रलाद नहीं बनता।  यह  लड़का अडिग रहा।  शुरू में परिवार फिर गांववालों ने खिलाया - पिलाया।  जब लड़का दो -चार दस साल रह गया तब आस- पास के लोग दौड़ने लगे की सचमुच ये लड़का गजब है , बाबाजी बन गया।  उससे मिलने कोई पंडित आया , कोई विद्वान आया।  जो भी विद्वान होता है वह तर्क करता है।  वह कहता - अरे मुर्ख तुमको फंसाकर गुरु जी चले गए।  तुम्हारी एक बार भी खोज खबर ली , याद किया।  एक टेलीफोन भी किया, तुम क्यों उनके चक्कर में पड़ें हो ? अक्सर यह संशय लाते हैं विद्वान लोग।  लड़के को जब संशय हुआ तो सोचा  क्या करें , आखिर गुरूजी ने परिचय तो केवल हनुमान जी से कराया था।  अतः हनुमानजी की मूर्ति से बोला  - हे हनुमानजी ! आपने  त्रिलोकपति को अपने वश में किया आप इतने सक्षम हैं , क्या हमारे गुरुजी को लाने में सक्षम नहीं है , यदि सुबह तक हमारे  लीए गुरूजी नहीं लाये कहीं  से तो आपकी मूर्ति को उठाकर मंदिर से बाहर कर देंगे।  देखो सब भावना का ही खेल है।  कहीं न कहीं सूक्ष्म जगत से तुम नियंत्रित हो रहे हो।  तुम्हारा रिमोट तुम्हारे हाथ में नहीं है।  तुम्हारा रिमोट  कहीं ऊपर है वहां  से कंट्रोल हो रहा है।  तुम सन्यास जब ले लेते हो , तुम्हारे जितने शुभचिंतक हैं , आत्मीय मित्र हैं , पूर्वज हैं , बड़े प्रसन्न होते हैं।  जब ये प्रसन्न होते हैं तो तुम्हारे घर पर ख़ुशी की बौछार करने लगते हैं।  एक यह घटना हो सकती है।  दूसरी यह भी घटना हो सकती है जो तुम्हारे व् तुम्हारी आत्मा के घोर शत्रु हैं , जो प्रेतात्माएं हैं वे कष्ट देने लगेंगे ताकि तुम यह सब छोड़ दो चुकीं जब तुम संन्यास ले लोगे पूजापाठ में ही रहोगे तो उन लोगों को कष्ट होगा।  प्रेतात्माएं जान जाएंगी की यह हमारा असिस्तत्व समाप्त कर देगा।  अपने सारे पूर्वजों को तार देगा।  आने वाली पीडियों को  तार देगा।  इसलिए वे प्रेतात्माएं भी कष्ट  देंगी लेकिन थोड़े समय तक तुम्हारे विस्वाश के परीक्षण में।   लेकिन जब तुम टिक जाते हो , सन्यास , पूजा-  पाठ,योग -ध्यान  में तब सूक्ष्म जगत से ही ऐसा होगा की तुम ध्यान  में जो भी सोचोगे जैसे  की नौकरी लग जाए , लग जाएगी , बहन की शादी हो जाए हो जाएगी , कोई सत्रु तुमसे परास्त हो जाए हो जाएगा।  इस सबमें तुम्हारा हाथ नहीं है कहीं।  यह सूक्ष्म जगत से कंट्रोल हो रहा है।  इसमें गुरु की अनुकम्पा होती है।  सूक्ष्म जगत के लोग कहते है ऐसा न हो की   घर   वापिस चला जाए और पुनः मारपीट में फंस जाए चलो इसका काम ही कर दें।  किसी न किसी माध्यम से करा देंगे।  तुम संन्यास पर अडिग रहो।  तुम्हारे अडिग रहने पर क्या होगा ? तुम्हारी यही सुक्ष्मात्माएं जो नर्क में गई हुई हैं उन्हें तुरंत स्वर्ग में भेज दिया जाएगा।  यदि तुम लौट गए पुनः सन्यास को वस्त्र उतारकर चले गए तब हमारे इसी समाज को बड़ा कठोर कहा गया है , दण्डित किया जाता है , तब सारे पितर २१ पुस्त तक जितने स्वर्ग में गए हैं सबको नर्क में ढकेंल दिया जाता है। नर्क में जाकर यही पितर तुम्हें श्रापित करने लगते हैं।  तुम्हारे खानदान  में जाने और अनजाने विल्पव से आने लगता है , कष्ट  कठिनाई आने लगती है।  यह हमारा अपना प्रत्यक्ष देखा हुआ है।  हमारे जितने शिष्य सन्यास छोड़कर गए कहीं न कहीं अभी तक विल्पव से घिरे हुए हैं।  चूँकि तुम सूक्ष्म जगत से ही नियंत्रित होते हो।  तुम मत समझो की तुम्हीं सब कुछ हो।  तुम जितने यहां हो उससे अनंत गुना सूक्ष्म जगत में हो।  इसलिए महापुरुष जब शरीर छोड़ते है तो उन्हें ले जाने के लिए सूक्ष्म जगत से आत्माएं आती हैं , वहीँ उनके आगमन पर स्वागत करती है , जैसे यहाँ तुम किसी के आगमन पर उसका स्वागत  करते हो , उसे लेने जाते हो।  जब हमारे गुरूजी शरीर छोड़ रहे थे तब हम पतना में थे।  मन बैचेन हुआ तो सियालदाह एक्सप्रेस पकड़ कर पहुंचे।  उस समय फोन नहीं था जो कोई सुचना देता।  बी एच यु गए तो देखा वहां जय गुरु देव जय जय गुरुदेव हो रहा है।  मुझे देख गुरुदेव बोले अच्छा तू आ गया।  अब मैं जा रहा हूं  मुझे ले जाने  हजारों आँख वाला आ गया है , बंदगी कर रहा है , प्रणाम कर रहा है , गुरुदेव आपका समय पूरा हो गया, चलिए।  हजार आँखों वाला परमात्मा को कहा गया है लेकिन तुम लोग चित्रगुप्त को भी कहते हो , चित्रगुप्त को हजार आँखों वाला नहीं कहा गया है।  वह परमात्मा ही हजारों आँख वाला , हजारों हाथ वाला , हजारों कान वाला है पुरुष सूक्त में तुम गाते हो ,ॐ सहस्त्र शीर्षा पुरुषः सहस्त्राक्षः , गुरुदेव बोले-देखो वह आ गया है पालकी लेकर, अपना विमान लेकर, हमको चलने दो। देवी - देवता सब अगवानी करने के लिए तैयार है।  इसके विपरीत दुष्ट आत्माएं जब जाती हैं तब काल दिखाई पड़ता हैं जो किसी का भी बुरा सोचती हैं।  जो ऐसा सोचेगा उसका आभा मंडल इतना नकारात्मक हो जाएगा की मरते समय वह काल दिखाई पड़ने लगेगा।  जब तुम सबके प्रति मंगलमय भावना रखते हो तब तुम्हारा आभा मंडल , तुम्हारी सोच इतनी सकारात्मक हो जाएगी की मरते समय  वह  परमात्मा दिखाई देगा।  इसलिए तुम लोगों को अपने प्रति सजग रहना चाहिए की हम क्या सोच रहे हैं , क्या कर रहे हैं, क्या नहीं कर रहे हैं ? 

पच्चीस वर्ष के उस युवक ने भी हनुमानजी के सामने गुरुदेव के क दर्शन करने का संकल्प लिया और रात्रि में हनुमानजी की मूर्ति का पैर पकड़कर सो गया की रात्रि में इनको कही जाने नहीं देंगे।  भाग जाएंगे तब ? गुरु जी नहीं आए तो सुबह उठाकर फेकेंगे यहीं से।  निपढ़ आदमी में अटल  विशवास होता है।  पकड़ लिया तो पकड़ लिया।  जितना पढ़ा -लिखा आदमी होगा उतना तनाव में होगा।  वह बहुत सोचता है , यहाँ की बात वहाँ -वहां की बात यहां।  की कहीं हमको भुलवा तो नहीं रहा है।  फिर क्या होगा।  अब बाद में क्या होगा ? सुबह चार बजे वह उठ गया की अब तो इन्हे  फेकना होगा।  तब हनुमानजी की उस पथ्थर की मूर्ति से वाणी निकली बेटा जाओ तुम्हारे गुरु आगए हैं जाकर स्वम जगाओ वह दौड़ता हुआ बाहर आया देखा चौकी पर एक तख्त पर तोसक तकिया मसहरी लगी है वहां एक आदमी चादर ओढ़ कर सोया हैं।  पाहचानता था नहीं उसने जाकर पैर पकड़ लिया की यहीं गुरूजी होंगे अतः पुकारा गुरूजी -गुरूजी उठिये।  गुरूजी उठे।  वह भी फेर में पड़े चारो और देख कर की कहाँ हम आगये सुनसान जगह पर।  वह वहां से २५० -३०० किमी दुरी पर राजस्थान में सीकर से आगे किसी मंदिर में ठहरे थे।  सत्यसंग हो रहा था।  यहाँ आने की सूचि भी नहीं थी।  अब देखा तो बोले के हम कहाँ आगये ? वह युवक बोलै गुरूजी हम है आप के शिष्य बलराम।  आप ने हमें दीक्षा दी थी और मंदिर में श्री राम जय राम का जाप करने को कहा था।  अब गुरु जी बड़ा चक्कर में पड़  गए कौन बलराम कहाँ हम आगये ? गुरु जी ने ध्यान लगाया।  ध्यान लगाने पर मालूम हुआ की इस भक्त की भावना की प्रबलता के कारण  हनुमानजी रात्रि में हम जहाँ सोये थे वहां प्रकट हुए और हमें तख्त समेत सोते हुए ही यहाँ उठकर कर के आएं।  हनुमानजी कभी राम जी को लेकर चलते थे आज हमको कंधे पर लेकर आए।  गुरूजी बड़ा खुश हुए की तुम्हारे जैसा युवक हमारा भक्त हैं लेकिन साथ हीं रोते भी थे की हनुमानजी हमारे इष्ट है सारे जीवन हमने उनकी भक्ति की सेवा की उन्ही के कपाल पर बैठाया हमको।  तो यह हनुमानजी की अमरता के विषय में हमने बताया।  साथ ही तुम्हारी श्रदा तुम्हारा विस्वाश तुम्हारा निश्च्या ही फल देता हैं।  इसलिए उनके मंत्र श्री राम जय राम जय जय राम का तुम जो अनुष्ठान कर रहे हो यह बड़ा सार्थक और कारगर है तुमको इस लोक में भी सफलता देगा और उस लोक में सफलता प्रदान करेगा।  जय हनुमान ज्ञान गुण  सागर।  जय कपीस तिहु लोक उजागर।। यहाँ से हनुमान जी का गुणगान किया जा रहा हैं।  तुलसी दास जी कह रहे है -हे हनुमानजी आप ज्ञान के गुण के सागर हो।  ज्ञान और गुण दोनों का सागर कह रहे हैं ज्ञान से भी काम चल जाता।  ज्ञानी उसे कहते जिसने आत्मा का साक्षात्कार कर लीया है परमात्मा को प्राप्त कर लिया है बुध्दत्व को प्राप्त कर लिया हैं।  गुणी कहा जाता है उसे जो विभिन्न प्रकार के गुण कार्यो को करने में समर्थ और सक्षम हैं।  समाज में वह विभिन्न प्रकार के लोगो से मिलते है और विभिन्न प्रकार के कार्य करते है इसलिए उन्हें ज्ञान गुण दोनों का सागर कहा गया है।  यह स्तुति तुलसीदासजी ने अपने लिए लिखी है न की आप के लिए लेकिन आप लोग भी अपने लिए करना चाहते हो करो।  तुलसीदासजी के गुरु थे नरहरिदास।  नरहरिदासजी को  कहा गया है की वह हनुमान जी के अवतार थे।  इसलिए तुलसीदासजी हनुमानजी की अपने गुरु रूप में ही स्तुति कर रहे है की जय जय जय हनुमान गोसाई कृपा करहु गुरु देव के नाही।  हे हनुमानजी आप हनुमान की तरह कृपा मत करो मेरे गुरुदेव नरहरिदासजी जो आप के अवतार है उन्ही की तरह कृपा करो।  आप भी वही बात दोहराए जा रहे हो इस पर विसेष  ध्यान होगा।  आप अपने लिए कर रहे हो तो अपने बारे में सोचना होगा चुकीं  यह स्तुति भाव प्रधान है।  जब आप की भावना बदल जाये गी तो इसका अर्थ भी बदल जायेगा।  जय कपीस तिंहु लोक उजागर।। कपीस अर्थार्थ कपीस के इस यानि बानरो के राजा।  ये केसरी के पुत्र हे राज कुमार है तीनो लोग को उजागर करने वाले है।  जिसको ज्ञान प्राप्त हो जाये गा जो बुध्दत्व को प्राप्त हो जायेगा  वह तीनो लोक में उजियारा कर सकता हैं।  भगवान् बुध्द को भी जब ज्ञान प्राप्त हुआ तो तीनो लोक के देवता उनकी प्राथना करने आगए।  तुम कितना भी गुणी  बन जाओ गुणी का मतलब इंजिनीयर डाक्टर भी तो गुणी  हैं बहुत प्रोफेसनल भी तो गुणी  है लेकिन उनके गुण से तीनो लोक उजागर नहीं होगा।  जहाँ वह काम करते है वहीं  उजागर नहीं होगा।  जब तक से तुम बुध्दत्व प्राप्त नहीं करलेते हो परमात्मा को प्राप्त नहीं कर लेते हो तुमसे तीनो लोक उजागर नहीं होगा।  हनुमान जी स्वयं सिद्ध हैं।  रामायण में आया है -

सुमरि पवनसुत पावन नामु। 

अपने बस करि राखे रामु।। 





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