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chankya neeti चाणक्य निति (पुत्र और पिता को कैसे होने चाहिए )

                                                        (पुत्र और पिता को कैसे होने चाहिए )                                                         ते पुत्र पितुभरकता स पिता यस्तु फोसक;                                                      तन्मित्रं यस्य विश्वाश: सा भार्या यत्र नीरवती भवार्थ -  पुत्र वे है जो पिता के भक्...

राष्ट्र की आराधना। rastra ki aaradhna

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  सच्ची राष्ट्र की आराधना  गणतंत्र दिवस राष्ट्र की आराधना का पर्व है। भूखंड, उस पर  रहने वाले लोग, वहां की सभ्यता और संस्कृति मिलकर किसी राष्ट्र का निर्माण करती है, परंतु राष्ट्र की वास्तविक पहचान देश के नागरिकों से होती है। जिस देश के नागरिक जागृत होकर देश के योग क्षेम का ज्ञान रखते हैं, उस देश की एकता और अखंडता को कभी खतरा नहीं हो सकता। अतः गणतंत्र की सफलता के लिए राष्ट्र में विवेकपूर्ण जन का भागीदारी आवश्यक है। जिनमें सच्ची राष्ट्रभक्ति हो और जिन का चिंतन तुच्छ स्वार्थों के लिए नहीं, बल्कि राष्ट्रमंगल के लिए हो। इसलिए राष्ट्र की संप्रभुता की रक्षा का भार केवल सैनिकों पर नहीं, बल्कि सभी नागरिकों पर होता है। जब देश का हर नागरिक सजग प्रहरी होगा, तभी सच्चे अर्थ में राष्ट्र की आरधना हो सकेगी। यजुर्वेद में कहा गया है, हम राष्ट्र के लिए सदा जागृत रहे। संत स्वामी रामतीर्थ कहते हैं, कन्याकुमारी मेरे चरण, हिमालय मेरा मस्तक है। मेरे केसों से गंगा यमुना निकलती है। विंध्याचल मेरी मेखला है। पूर्वोत्तर और पश्चिमोत्तर मेरी भुजाएं तथा कोरोमंडल एवं मालाबार मेरे पांव हैं। मैं संपूर्ण भार...

मृत्यु भय। mrityu bhay

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मृत्यु भय गीता में भगवान श्री कृष्ण अर्जुन से कहते हैं की हे अर्जुन! इस संसार में जो जन्म लेता है वह एक न एक दिन मरण को अवश्य प्राप्त होता है। यद्यपि जो मरता है, उसका पुनर्जन्म भी होता है। क्योंकि यह दोनों क्रियाएं बहुत अधिक दुख देने वाली होती हैं इसलिए हर व्यक्ति अपने मरण के भय से भयभीत रहता है।व्यक्ति अपना संपूर्ण जीवन इसी इच्छा में बिता देता है कि उसका कभी मरण ही न हो, किंतु सहज भाव में ना तो जन्म मरण को रोका जा सकता है और ना ही व्यक्ति मरण के भय से मुक्त हो सकता है। हालांकि इस सबसे मुक्त होने का एक मार्ग अवश्य आचार्यों ने बताया है कि जो निरंतर भगवान नाम समरण में लीन रहता है, अवश्य एक दिन ऐसा आता है जब जन्म मरण के भयानक भय से बचकर मुक्ति प्राप्त कर लेता है। शास्त्रों के अनुसार जन्म से और मरण से भयभीत होने का मुख्य कारण यह है कि हम उस सच्चिदानंद के स्वरूप को भूल जाते हैं, जो ना कभी जन्म लेता है और ना ही मृत्यु पाता है। हम यह भी ध्यान नहीं रखते कि हम भी उसी परमात्मा के एक अंश है। इसलिए जब वह जन्मता और मरता नहीं है तो हम भी न मरते हैं और ना जन्म लेते हैं। हमारा जो यह पंच भूतआत्मक शरीर ...

वाणी का महत्व। vani ka mahtv

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   वाणी का महत्व जब वाणी ऋत, हित और मीत होती है तो सबको प्रिय लगती है। अर्थात समय अनुसार बोलना, दूसरों के हित के लिए बोलना और मीठा (मधुर) बोलना। जैसे सत्तू को पानी में घोलने से पहले छलनी में छान कर देख लेते हैं की कोई ऐसी अभक्ष्य वास्तु पेट में ना चली जाए जो विकार उत्पन्न न करें, उसी प्रकार बुद्धिमान व्यक्ति शब्द रूपी आटे को मंत्र रूपी छलनी से छानना जानते हैं। ऐसे ही पुरुष तथा स्त्रियों की वाणी में लक्ष्मी, शोभा और संपत्ति निवास करती है। महर्षि व्यास जी लिखते हैं कि इसलिए पूरी छानबीन करके सब प्राणियों की भलाई करने वाले को सत्य बोलना चाहिए। आप सत्य बोले, लेकिन वह कड़वा नहीं होना चाहिए। ऐसा सत्य बोलने से किसी का हृदय घायल नहीं होगा। अर्थात प्राणी मात्र के लिए हितकारी होगा। कुछ लोग मित भाषण का अर्थ कम बोलना समझते हैं। मीत शब्द संस्कृत की मांड धातु से बना है जिसका अर्थ है नाप तोल। इस प्रकार मीत का अर्थ है नापतोल कर बोलना ना आवश्यकता से अधिक बोला जाए। और ना ही इतना कम कि शब्दों के कहे का अर्थ ही न निकले। अथर्ववेद में कहा गया है कि मेरी वाणी के अग्रभाग में मधु रहे और जीभ की जड़ अर्थ...

अमृत और विष । नकारात्मक विचार से बचें

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                          अमृत और विष                                     पौराणिक कथा है कि देवताओं और असुरों के बीच संयुक्त प्रयास से जब समुद्र मंथन हुआ तो उसमें अमृत भी निकला और विष भी। अमृत तो देव और असुर दोनों पीना चाहते थे, मगर विष पीने के लिए कोई पक्ष तैयार न था। अंत में देवाधिदेव महादेव ने विषपान किया। महादेव ने उसे कंठ में ही रोक लिया। हृदय तक नहीं जाने दिया। हृदय असल में शरीर का वह महत्वपूर्ण अंग है जो रक्त को पहले मस्तिष्क में भेजता है, और मस्तिष्क आवश्यकतानुसार उसका वितरण पूरे शरीर को करता है। ऐसी ही परिस्थितियां प्रत्येक मनुष्य के समक्ष भी आती हैं। जब मनुष्य मां के गर्भ में पलता है तब वह अमृत पान करता है। उसमें सर्वप्रथम मेरुदंड बनता है और उसके बाद मस्तिष्क। जन्म के बाद से शिशु रोता है, क्योंकि मां के गर्भ में हो रहे अमृत पान से वह वंचित होने लगता है। नवजात शिशु जन्म लेते बाहरी घात प्रतिघात का शिकार होने लगता है। प्रारंभिक...
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  स्वामी रामतीर्थ    भारत की पावन भूमि पर अनेक महापुरुषों ने जन्म लिया है , जिन्होंने अपने उपदेशों द्वारा मानव जाती का कल्याण किया।  ऐसे ही एक  महापुरुष थे स्वामी रामतीर्थ , जिन्होंने अपने ज्ञान रूपी प्रकाश द्वारा संपूर्ण विश्व में फैले अज्ञान रूपी अंधकार को दूर किया। 22 अक्टूबर , 1873 को स्वामी रामतीर्थजी का जन्म हुआ। उनके पिता का नाम हीरानंद था। वे जब लगभग  एक वर्ष के हुए तो उनकी माता का निधन हो गया। उनके पिता हीरानंद की एक बहन धर्मदेवी थीं। उन्होंने रामतीर्थ का लालन - पालन किया। स्वामी रामतीर्थ के बचपन का नाम रामतीर्थ था। रामतीर्थ के गुरु का नाम  धन्नाराम था।वे उनसे बड़े प्रभावित थे।उनका  समस्त जीवन अत्यंत विलक्षण , प्रेरणादायक तथा स्फूर्तिदायक था। उन्होंने अद्वैत वेदांत को अति सरल करके , मनुष्य  मात्र के समक्ष इस प्रकार रखा की साधारण बुद्धि वाला मनुष्य  उससे लाभवन्तित हो सकता है। उन्होंने संसार को सत्य का मार्ग निर्मल और स्वच्छ रूप से दर्शाया। उन्होंने त्याग , आत्मविश्वास , कर्म , निष्ठां , निर्भयता , द्रढ़ता , एकता और  विश्वप्रे...

रामकृष्ण परमहंस

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रामकृष्ण परमहंस    रामकृष्ण परमहंस पोथी पंडित , ज्योतिषी या विचारक नहीं थे , बल्कि वे एक आत्मदर्शी पुरुष थे। उन्होंने आम व्यक्तियों की तरह मोहमाया में न फंसकर परम सत्य की प्राप्ति   स्वयं को मां  जगदम्बा के चरणों में समर्पित किया। मां जगदम्बा के निर्देश पर ही उन्होंने इस नश्वर संसार की भलाई हेतु अपना जीवन न्योछावर कर दिया। रामकृष्णजी का जन्म 17 फरवरी , 1836 को एक निर्धन परिवार में हुआ था। उनका माता - पिता द्वारा रखा नाम गदाधर था , लेकिन आगे  चलकर वे स्वामी रामकृष्ण परमहंस के नाम से प्रसिद्ध हुए। उनका बचपन बड़े दुखों में बिता , और वे अपना पूरा समय आराधना और जगत के उत्थान में  लगाने लगे। उनकी द्रिष्टि में ऊंच - नीच का कोई भेद नहीं था। उन्होंने किसी नए धर्म या पंथ की स्थपना नहीं की , वरन अपने जीवन के अनुभूत तथ्यों का ही वर्णन किया। स्वामी रामकृष्णजी का विवाह शारदामणि देवी के साथ हुआ था। रामकृष्णजी ऐसे महापुरुष थे , जिन्हे प्रत्येक स्त्री में मां  जगदम्बा के दर्शन होते थे। यहां  तक उन्होंने अपनी पत्नी को भी मां  जगदम्बा मानकर पूजन किया। रामकृ...